आपने शेख अली के गुमटी पर कब्जा क्यों किया-सुप्रीम कोर्ट
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी में शेख अली के गुमटी मकबरे पर अवैध रूप से कब्जा करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज (मंगलवार, 12 नवंबर को) डिफेंस कॉलोनी वेलफेयर एसोसिएशन (DCWA) को कड़ी फटकार लगाई है और पूछा कि वहां घुसने की आपकी हिम्मत कैसे हुई। कोर्ट ने इस अवैध कब्जे को रोकने में विफल रहने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को भी कड़ी फटकार लगाई है।
जस्टिस सुधांशु धुलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने CBI द्वारा दायर एक स्थिति रिपोर्ट की जांच करने के बाद रेजिडेंट्स एसोसिएशन को बहुत ही कड़े शब्दों में फटकार लगाई। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस धुलिया ने पूछा, “आपने (डीसीडब्ल्यूए) इसमें प्रवेश करने की हिम्मत कैसे की? आपकी हिम्मत कैसे हुई?” इस पर डीसीडब्ल्यूए के वकील ने कहा, “हम दशकों से वहां थे।” यह सुनकर जस्टिस धूलिया और भड़क गए और उन्होंने पलटवार करते हुए कहा, “यह किस तरह का तर्क है?”
मामले में दखल देते हुए पीठ के दूसरे जज जस्टिस अमानतुल्लाह ने कहा, “इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। अगर जरूरत पड़ी तो हम आपको खुली अदालत में बेदखल कर देंगे।” इस पर डीसीडब्ल्यूए के वकील ने कहा, “असामाजिक तत्व आएंगे…” लेकिन यह सुनते ही खंडपीठ और भड़क गई। पीठ ने कहा, “आप औपनिवेशिक शासकों की तरह बोल रहे हैं। जैसे ‘अगर हम भारत नहीं आते तो क्या होता’।”
लोदी युग के मकबरे पर डीसीडब्ल्यूए द्वारा अवैध कब्जे की अनुमति देने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की भी कोर्ट ने खिंचाई की, जिसने उस मकबरे के अंदर झूठी छतें लगाई थीं और बिजली के पंखे और फर्नीचर लगवाए थे। जस्टिस अमानुल्लाह ने ASI से पूछा कि आपने केवल इसलिए कोई कार्रवाही नहीं की क्योंकि वहां बिजली का कनेक्शन था? उन्होंने कहा कि हम आपकी इन चालाकी भरी हरकतों को खूब समझते हैं। अब हम लोगों को ऊपर खींचकर ले जा रहे हैं! क्योंकि खिड़कियां और टेबल और झूठी छतें लगाई गई हैं।
जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि स्थानीय अधिकारियों को इस तरह से काम करने की अनुमति दी जा सकती है। हम बहुत हैरान हैं। उन्होंने कहा, “एएसआई ने अपने ही आदेश के विरुद्ध काम किया है! आप 700 साल पुराने लोदी युग के मकबरे के लिए ऐसा कैसे होने दे सकते हैं।” इसके बाद पीठ ने मकबरे को हुए नुकसान का अध्ययन करने और उसके जीर्णोद्धार का उपाय सुझाने के लिए एक विशेषज्ञ की नियुक्ति की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आपकी (आरडब्ल्यूए) इस मकबरे में दाखिल होने की हिम्मत कैसे हुई? आरडब्ल्यूए के वकील ने कहा कि हम वहां दशकों से थे. जस्टिस धूलिया ने कहा कि ये कैसा तर्क है? जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि इसकी मंजूरी नहीं दी जा सकती. इसके जवाब में वकील ने कहा कि हम नहीं होंगे तो असामाजिक तत्व वहां आएंगे. जस्टिस धूलिया ने कहा कि आप उन अंग्रेजी शासकों की तरह बोल रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में कहा गया था कि दिल्ली का नागरिक निकाय (Delhi Civic Body) मकबरे के इर्द-गिर्द मौजूद जमीन पर शॉपिंग प्लाजा और मल्टी-लेवल कार पार्किंग बनाने की कोशिश कर रहा है. इसी के बाद अप्रैल में ASI और सरकार ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने कभी भी DCWA को मकबरा आवंटित नहीं किया था.
कोर्ट ने ASI से भी पूछे सवाल
इस मामले में कोर्ट ने ASI से भी सवाल पूछा. कोर्ट ने कहा, ASI ने कैसे अवैध कब्जे के लिए डीसीडब्ल्यूए को इजाजत दी. आप 700 साल पुराने मकबरे के साथ ऐसा कैसे कर सकते हो. साथ ही कोर्ट ने कहा, डीसीडब्ल्यूए के अवैध कब्जे से मकबरे को कितना नुकसान हुआ है इस बात की जांच करने के लिए एक एक्सपर्ट को नियुक्त किया जाएगा जो इसकी स्टडी करेंगे. एक्सपर्ट को 6 हफ्ते में रिपोर्ट सौंपनी होगी.
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सीबीआई की रिपोर्ट पेश करने के लिए प्रशंसा की. कोर्ट ने कहा, बेशक सीबीआई ऐतिहासिक कार्यों को देखने के लिए एक्सपर्ट नहीं है, लेकिन उन्होंने इस ऐतिहासिक इमारत में हो रहे अवैध अतिक्रमण की जानकारी देने में अच्छा काम किया.
एक्सपर्ट को किया जाएगा नियुक्त
कोर्ट ने कहा, अवैध अतिक्रमण से मकबरे को किस हद तक नुकसान हुआ है और इसको कितना ठीक किया जा सकता है, यह तो कोई एक्सपर्ट ही बता सकता है. हम एक एक्सपर्ट को नियुक्त करेंगे, जो इन चीजों को लेकर 6 हफ्ते में रिपोर्ट देंगे. साथ ही कोर्ट ने कहा, रिपोर्ट की कॉपी और रिट, हलफनामे की कॉपियां एक्सपर्ट को सौंपी जाए. साथ ही हार्ड और सॉफ्ट रजिस्ट्री की कॉपी भी मुहैया कराई जाए.
क्या है पूरा मामला?
कोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता राजीव सुरी की भी तारीफ की. डिफेंस कॉलोनी में मौजूद गुमती मकबरा लोदी राजवंश के समय में बनाया गया मकबरा था. जोकि सालों पुराना मकबरा है. याचिकाकर्ता ने पहले इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी लेकिन वो खारिज कर दी गई थी. शीर्ष अदालत ने इसके खिलाफ अपील पर जुलाई 2019 में नोटिस जारी किया था.
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