आज ही के दिन नाथूराम गोडसे को हुई थी फांसी
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को विश्व इतिहास के महानतम नेताओं में शुमार किया जाता है। भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए महात्मा गांधी ने जीवन भर अहिंसा और सत्याग्रह का संकल्प निभाया, लेकिन उन्हें आजादी की हवा में सांस लेना ज्यादा दिन नसीब नहीं हुआ। भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ और 30 जनवरी 1948 की शाम नाथूराम गोडसे ने अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के सीने में तीन गोलियां उतार दीं। इस अपराध पर गोडसे को फांसी की सजा सुनाई गई और वह 15 नवंबर 1949 का दिन था, जब उसे फांसी दी गई। यह तथ्य अपने आप में दिलचस्प है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गोडसे महात्मा गांधी के आदर्शों का मुरीद था। मगर, एक समय ऐसा आया कि वह उनका विरोधी बन बैठा और उन्हें देश के बंटवारे का दोषी मानने लगा।
महात्मा गांधी की जिस वक्त हत्या हुई तब वह देश की राजधानी नई दिल्ली में प्रार्थना सभा के लिए निकले थे। बापू की हत्या के एक साल बाद ट्रायल कोर्ट ने फैसला सुनाया और गोडसे को सजा-ए-मौत दी गई। हाई कोर्ट में इस केस की सुनवाई हुई और सजा को बरकरार रखने का आदेश दिया गया। इसके बाद 15 नवंबर 1949 को नाथूराम गोडसे को फांसी दे दी गई। मालूम हो कि गांधी की हत्या के आरोप में गोडसे के साथी नारायण आप्टे को भी मौत की सजा हुई। बाकी 6 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
गांधी पर मुसलमान समर्थक होने का आरोप
38 वर्षीय नाथूराम गोडसे दक्षिणपंथी पार्टी हिंदू महासभा का सदस्य था। इस पार्टी का आरोप रहा कि गांधी मुसलमान समर्थक हैं। साथ ही, उनके पाकिस्तान के प्रति नरमी दिखाकर हिंदुओं के साथ विश्वासघात करने का भी आरोप लगा। गोडसे के व्यक्तिगत जीवन को लेकर कई सारी जानकारियां हैं। जैसे कि वह हाई स्कूल से ड्रॉपआउट था और दर्जी के रूप में काम कर चुका था। गोडसे फल भी बेचता था। इसके बाद वह हिंदू महासभा में शामिल हुआ जहां अखबार के संपादन का काम मिला।
अदालत में नाथूराम गोडसे का लंबा बयान
महात्मा गांधी हत्याकांड को लेकर चले मुकदमे के दौरान गोडसे ने अदालत में 150 पैराग्राफ का बयान पढ़ा। इसके लिए उन्होंने 5 घंटे से अधिक का वक्त लिया। उसका कहना था कि गांधी को मारने के लिए कोई साजिश नहीं रची गई। इस तरह उसने अपने सहयोगियों को दोषी मुक्त करने की कोशिश की। गोडसे ने कहा कि गांधी को गोली मारने से बहुत पहले वह संघ से अलग हो गए थे। उन्होंने इससे भी इनकार किया कि यह हत्या विनायक दामोदर सावरकर के मार्गदर्शन में की गई थी।
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