भापोल की हवा में मिथाइल आइसोसाइनेट जहर बहा था, क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 दो-तीन दिसंबर की आधी रात भोपाल के लोगों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थी। भापोल की हवा में मिथाइल आइसोसाइनेट नाम का जहर बहा था। यूनियन कार्बाइड के कारखाने के टैंक नंबर 610 से लीक हुई इस गैस ने पूरे शहर को श्मशान में बदल दिया। पांच लाख से अधिक की आबादी इसकी चपेट में आई। आसपास की बस्तियों में सो रहे लोग नींद में ही रह गए।

गलियों में भागते हुए गिरे और फिर कभी नहीं उठे

जो लोग दम घुटने से घबराकर जागे, वे गलियों में भागते हुए गिरे और फिर कभी नहीं उठे। जो कारखाने से कुछ दूरी पर थे, वे मौत की इस हवा से बचकर मीलों तक भागते रहे। आठ घंटे के बाद भोपाल की हवा से यह जहर खत्म हुआ। उसके बाद मरने वालों और गंभीर रूप से घायल लोगों की तलाश शुरू हुई।

अस्पताल की मर्चुरी में शवों को रखने की जगह नहीं थी

हालात ऐसे थे कि अस्पताल की मर्चुरी में शवों को रखने की जगह नहीं थी। मौतों का सरकारी आंकड़ा 3787 का है, लेकिन गैर सरकारी संगठन 25000 से अधिक लोगों की मौत का दावा करते हैं। तब सरकार ने गैस प्रभावितों के अलावा भोपाल से भी कई वादे किए थे।
हादसे के 40 साल बाद भी उनमें से कई वादे बस रस्मी वादे बनकर रह गए हैं। विशेषज्ञों ने जहरीली गैस का दुष्प्रभाव अगली पीढि़यों में जाने का खतरा बताया था। यूनियन कार्बाइड ने ऐसे किसी दुष्प्रभाव से अदालत में भी इन्कार किया था। बाद की पीढि़यों में बच्चे विकलांग पैदा होने लगे तो सरकार ने इनके पुनर्वास का वादा किया था, जो पूरा नहीं हो पाया। ऐसे बच्चों के लिए काम कर रहे संगठन चिंगारी ट्रस्ट के मुताबिक पिछले तीन सालों में ही गैस प्रभावितों के परिवार में 197 ऐसे बच्चों का जन्म हुआ है, जो निश्शक्तता से पीडि़त हैं।

विधवाओं को देनी थी पेंशन

सरकार ने गैस हादसे में मारे गए लोगों की पांच हजार विधवाओं को पेंशन देने का वादा किया था। बहुत लंबी और थकाऊ दावा प्रक्रिया के बाद पेंशन शुरू हुई, लेकिन यह पांच हजार महिलाओं को नहीं मिली। दावा है कि इसके लाभार्थियों की संख्या बेहद कम है।
इस वादे के तहत सरकार ने भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के अधीन संचालित छह अस्पताल और नौ औषधालय बनाए। समय बीतने के साथ ये अस्पताल भी औपचारिकता बनकर रह गए। अब सरकार ने आयुष्मान भारत ‘निरामयम’ मध्य प्रदेश योजना के अंतर्गत प्रदेश के सभी अनुबंधित अस्पतालों में भी गैस पीडि़तों को उपचार सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं। हालांकि गैस प्रभावितों का एक हिस्सा अब भी इस सुविधा से वंचित है।

गैस के असर से कैंसर और किडनी के रोगों से जूझ रहे लोगों के लिए सरकार ने मुआवजे की बात की थी। बाद में इसे आंशिक नुकसान की श्रेणी में डालकर ऐसी जानलेवा बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए 25 हजार रुपये का मुआवजा तय कर दिया गया। गैस प्रभावितों के लिए काम कर रहे संगठन इसे पांच लाख रुपये करने की मांग कर रहे हैं। इसके लिए उच्चतम न्यायालय में याचिका भी दायर है।

कचरा निपटाना था, वह कैंसर फैला रहा है

सरकार को यूनियन कार्बाइड परिसर में फैले जहरीले कचरे को वैज्ञानिक तरीके से निपटाना था। 40 साल बाद भी कचरा परिसर के एक तालाब में पड़ा है। इसकी वजह से आसपास की मिट्टी और पानी में कैंसरकारी तत्व बढ़ रहे हैं। पिछले साल केंद्र सरकार ने कचरा निपटान के लिए 123 करोड़ रुपये भी दिए, लेकिन कचरा नहीं उठा।

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