वर्गवार जनसंख्या संतुलन बनाए रखना क्यों आवश्यक है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
विश्व के कई देश पूर्व में जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए कठोर नीतियां लागू कर चुके हैं। जैसे चीन, जापान आदि। अब ये देश युवाओं की संख्या बढ़ाने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं और ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहन स्कीम चला रहे हैं।
भारत में भी जनसंख्या वृद्धि तेजी से गिर रही है। गिरावट अब इस स्तर तक पहुंच गई है या पहुंचने वाली है, जहां इस बात का खतरा है कि देश की जनसंख्या कम होने लगेगी और बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ेगी।
सामाजिक संतुलन के लिए क्या है जरूरी?
एक अनुमान के मुताबिक, भारत की आबादी 145 करोड़ के आसपास है। यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो विस्थापन की विभिन्न घटनाओं में प्राकृतिक आपदाओं के बाद विस्थापन का प्रमुख कारण जनसंख्या का कम होना सामने आता है। प्रायः यह देखा गया है कि सामाजिक संतुलन के लिए जनसंख्या का संतुलन में होना आवश्यक होता है।
वर्गवार जनसंख्या वृद्धि को संतुलित करना होगा
भारत में कई जातियां और समुदाय हैं। अगर हम कुल प्रजनन दर के बजाए इसे वर्गवार देखें तो एक अंतर दिखाई पड़ता है। हमें अतीत के दुष्प्रभावों से सीख लेते हुए वर्गवार जनसंख्या वृद्धि को संतुलित करना होगा।
चाहे यह संतुलन युवाओं व वृद्धों की संख्या के अनुपात का हो या विभिन्न वर्गों की जनसंख्या के अनुपात का हो। आज भारतीय राजनीति में जातिवार गणना, जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी, जैसे नारों के आलोक में जनसंख्या केवल संख्या नहीं है बल्कि यह एक अस्मिता के रूप में उभर कर हमारे सामने आती है।
लोकतंत्र में संख्या महत्वपूर्ण
वर्तमान में जो विमर्श उभर कर सामने आते हैं, उनमे प्रायः उन्हीं समूहों या उन्हीं वर्गों का अस्मितामूलक विमर्श ज्यादा हावी दिखता है, जिनकी संख्या अधिक है। लोकतंत्र में व्यक्तियों की राय से ज्यादा उनकी संख्या महत्वपूर्ण है। ऐसी स्थिति में किसी भी समुदाय की संख्या में अधिक कमी आना, उस समुदाय को उसके वाजिब हक से भी दूर कर देगा।
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