कैसे धर्म के आधार पर बंट गया पंजाब?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जब भारत के आगे पाकिस्तान ने किया सरेंडर
दरअसल, पहले पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश एक ही प्रांत थे-बंगाल। राजनीतिक फायदे के लिए अंग्रेजों ने 1905 में ‘फूट डालो-राज करो’ की नीति अपनाते हुए बंगाल का विभाजन कर दिया था। हालांकि, साल 1911 में बंगाल को फिर एक कर दिया गया था।इसके बाद साल 1947 में देश को आजादी तो मिली, लेकिन बंटवारे का दर्द भी सहना पड़ा। भारत से टूटकर पाकिस्तान बना।साल 1947 में आजादी के बाद पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में पाकिस्तान) और पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) का उदय हुआ।
जब एक झटके में बंट गया बंगाल
स्वतंत्रता के साथ ही 14 अगस्त को पाकिस्तान अधिराज्य (बाद में जम्हूरिया ए पाकिस्तान) और 15 अगस्त को संघ (बाद में भारत गणराज्य) की स्थापना की गई। ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रान्त को पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) और भारत के पश्चिम बंगाल (पश्चिम बंगाल) राज्य में बांट दिया गया। इसे बंगाल का दूसरा विभाजन भी कहा जाता है। बंगाली मुस्लिम बहुल पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश ) पाकिस्तान का एक प्रांत बन गया ।20 जून 1947 को बंगाल विधान सभा की बैठक हुई, जिसमें बंगाल प्रांत का भविष्य तय करने के लिए बैठक हुई, कि क्या बंगाल भारत या पाकिस्तान के भीतर एक संयुक्त बंगाल रहेगा या फिर पूर्वी बंगाल और पश्चिम बंगाल में विभाजित होगा। पश्चिम बंगाल के विधायकों की एक अलग बैठक में 58-21 के बहुमत से निर्णय लिया गया कि प्रांत का विभाजन किया जाना चाहिए।
पूर्वी बंगाल के विधायकों की एक अन्य अलग बैठक में 106-35 के बहुमत से निर्णय लिया गया कि प्रांत का विभाजन नहीं किया जाना चाहिए और 107-34 के बहुमत से निर्णय लिया गया कि विभाजन की स्थिति में पूर्वी बंगाल को पाकिस्तान में शामिल होना चाहिए। इसके बाद पूर्वी बंगाल को पाकिस्तान बनाने पर मुहर लगा दिया गया। इसी तरह ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रान्त को पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत और भारत के पंजाब राज्य में बांट दिया गया। इतना ही नहीं, ब्रिटिश भारत में से सीलोन (अब श्रीलंका) और बर्मा (अब म्यांमार) को भी अलग किया गया। हालांकि, इसे भारत के विभाजन में शामिल नहीं किया जाता है।
कैसे धर्म के आधार पर बंट गया पंजाब
3 जून 1947 को विभाजन की मंजूरी मिल गई थी। वहीं, 15 अगस्त को सत्ता हस्तांतरण किया जाना था। भारत को आजाद करने और नया राष्ट्र पाकिस्तान बनाने के लिए ब्रिटिश बेचैन थे। ब्रिटिश सरकार चाहती थी कि यह दोनों काम जल्द से जल्द निपटाया जाए।
वहीं, पंडित नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना भी चाहते थे कि दोनों देश का जल्द से जल्द बंटवारा हो। पंडित नेहरू ने तत्कालीन भारत के आखिरी वायसराय लुईस माउंटबेटन को चिट्ठी लिखा कि कि सीमा आयोग जल्द से जल्द देश के विभाजन का काम करे। हालांकि, मोहम्मद अली जिन्ना चाहत थे कि यह काम संयुक्त राष्ट्र संघ को सौंपा जाए।
देश का बंटवारा और रेडक्लिफ की मनमानी
सीमा निर्धारण के लिए वकील सर सिरिल जॉन रेडक्लिफ के नाम का सुझाव आया। पंडित नेहरू और जिन्ना इस नाम पर राजी हो गए। दिलचस्प बात है कि रेडक्लिफ कभी भारत नहीं आए थे। दोनों नेताओं को उम्मीद थी कि रेडक्लिफ निष्पक्ष होकर अपना काम करेंगे।
8 जुलाई को वो भारत पहुंचे। उन्होंने महज एक बार पंजाब और बंगाल का दौरा किया था। वो ज्यादा समय दिल्ली में रहकर दस्तावेजों और नक्शे का अध्ययन कर रहे थे। रेडक्लिफ ने 12 अगस्त को बंटवारे का पूरा प्लान तैयार कर लिया था। गौरतलब है कि जब 14 अगस्त पाकिस्तान का जन्म हुआ और 15 अगस्त को भारत को आजादी मिली तो दोनों देशों के लोगों को सीमा के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं थी।
अंत में जब 17 अगस्त को भारत और पाकिस्तान के नेताओं को सीमा रेखा के बारे में जानकारी मिली तो दोनों देश के नेता नाराज थे, लेकिन उनके पास अब कोई विकल्प नहीं था। रेडक्लिफ को भी आशंका थी कि उनके निर्णय से दोनों देशों के नेता नाराज हो सकते हैं, इसलिए वो 14 अगस्त को ही लंदन के लिए रवाना हो गए।
5 अक्टूबर 1971 में जब मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर ने रेडक्लिफ से भेंट की तो उन्होंने बंटवारे को लेकर कहा था कि उन्हें बंटवारे का फैसला जल्दी करना था। उनके पास जिले के नक्शे तक उपलब्ध नहीं थे। जो नक्शे थे भी वो सही नहीं थे। सिर्फ डेढ़ महीने में क्या कर सकते थे। जब कुलदीप नैयर ने उनसे पूछा कि उन्होंने जो किया उसका उन्हें पछतावा है तो उन्होंने कहा, नहीं। हालांकि, उन्होंने कहा कि अगर उन्हें कुछ और समय मिलता तो वो बेहतर ढंग से बंटवारा कर सकते थे।
रेडक्लिफ ने पाकिस्तान को लाहौर क्यों सौंप दिया?
सीमा रेखा पर पाकिस्तान की नाराजगी पर उन्होंने लाहौर का जिक्र किया था। बता दें कि लाहौर एक हिंदू-सिख आबादी वाला क्षेत्र था, लेकिन रेडक्लिफ ने इसे पाकिस्तान को सौंप दिया। दरअसल, जब रेडक्लिफ बंटवारे का प्लान तैयार कर रहे थे तो उन्होंने पहले लाहौर, भारत को सौंप दिया था, लेकिन फिर उन्हें लगा कि मुसलमानों को पंजाब में कोई बड़ा शहर देना होगा, क्योंकि उनके पास राजधानी नहीं थी। इसलिए मैंने लाहौर, पाकिस्तान को सौंप दिया।
भारत के विभाजन से करोड़ों लोग प्रभावित हुए। विभाजन के दौरान हुई हिंसा में करीब 10 लाख लोग मारे गए और करीब 1.46 करोड़ शरणार्थियों ने अपना घर-बार छोड़कर बहुमत संप्रदाय वाले देश में शरण ली।
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