देश में एक साथ चुनाव कोई नई बात नहीं
देश में शुरुआती चार चुनाव एक साथ ही हुए थे
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
4 बार साथ हुए चुनाव
बयान के मुताबिक, ‘यही प्रक्रिया 1957, 1962 और 1967 में भी जारी रही। हालांकि 1968 और 1969 में कुछ राज्यों की विधानसभा के कार्यकाल पूर्ण होने से पूर्व ही भंग हो जाने पर यह क्रम टूट गया। वहीं 1970 में लोकसभा के चुनाव भी पहले करा लिए गए।
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विधानसभाएं हुईं समय पूर्व भंग
बयान में ये भी कहा गया कि राज्य की विधानसभाओं को भी यही समस्या झेलनी पड़ी, जिसमें कुछ को समय से पूर्व भंग कर दिया गया, वहीं कुछ का कार्यकाल बढ़ाना पड़ा। इन्हीं वजहों से एक साथ हो रहे चुनाव का क्रम बिगड़ गया और वर्तमान में हर समय चुनाव होते रहने जैसी स्थिति पैदा हो गई।
एक साथ चुनाव के पक्ष में सरकार
क्या कहती है विधेयक की धारा-दो की उपधारा-पांच?
विधेयक में उस स्थिति के लिए भी प्रावधान है जब संसदीय चुनावों के साथ किसी विधानसभा के चुनाव न हो पाएं। विधेयक की धारा-दो की उपधारा-पांच के अनुसार, ‘अगर चुनाव आयोग को लगता है कि किसी विधानसभा के चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ नहीं कराए जा सकते हैं तो वह राष्ट्रपति से एक आदेश जारी करने का अनुरोध कर सकता है कि उक्त विधानसभा के चुनाव बाद की तिथि पर कराए जा सकते हैं।’
इन अनुच्छेद में किए जा सकते हैं संशोधन
विधेयक के जरिये संविधान में अनुच्छेद-82ए (लोकसभा एवं विधानसभाओं के एकसाथ चुनाव) को जोड़ा जाएगा। जबकि अनुच्छेद-83 (संसद के सदनों की अवधि), अनुच्छेद-172 (राज्य विधानसभाओं की अवधि) और अनुच्छेद-327 (विधायिकाओं के चुनाव से जुड़े प्रविधान करने की संसद की शक्ति) में संशोधन किए जाएंगे।