भोजपुरी समाज के विलक्षण कलाकार भिखारी ठाकुर के जयंती पर शत-शत नमन!
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भिखारी ठाकुर – जयंती प विशेष जयंती – 18 दिसम्बर 1887 पुण्यतिथि – 10 जुलाई 1971
लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के जन्म 18 दिसम्बर 1887 में बिहार के सारण जिला के कुतुबपुर गांव में भइल रहे । अपना जनम प भिखारी ठाकुर लिखत बानी कि –
बारह सौ पंचानवे जहिया , सुदी पूस पंचिमी रहे तहिया ।
रोज सोमार ठीक दुपहरिया, जन्म भइल ओहि घरिया ॥
बारह सौ पंचानबे साल कहावल जब ।
कुतुबपुर के कहत भिखारी जन्म हमार तब ।
पुष महिना शुक्ल पक्ष मे पंचमी रोज सोमार ।
कहत भिखारी बारह बजे दिन मे जनम हमार ।
तेरह स सनतावन साल ह आज ह मंगल दिन ।
पंचमी कृष्ण आसाढ भइल मोर बासठ वर्ष के सीन ।
शुभ सम्वत 1144 शाके , 1801 तदनुसार 1265 फसलो आ सन् 1887 ई. पुस महीना के शुक्ल पक्ष के सोमार के दिने 12 बजे हमार जनम भईल रहे । आठ बरिस नहोशी ( नादानी / अज्ञानता ) मे बीतल आ नउवा बरिस से जीवन चरित रचि रहल बानी । जब एकावन साल के भईनी तब जीवन चरित रचाईल आ अब प्रेस मे छपववनी ।
शुक्रवार शुभ लग्न घडी , शुभ तारीख हुई पांच ।
उनईस स एकतालीस को दिया प्रेस मे सांच ॥
अपना जीवन चरित के बारे में भिखारी ठाकुर जी लिखत बानी कि 8 बरिस ले ‘ नहोशी’ में बीतल , नउवा साल पढे खातिर पाठशाला गइनी बाकि साल भर में ‘ राम गति ‘ लिखे ना आइल आ फेरु पढाई छोड़ देहनी । फेरु सरेही में गाई चरावल आ अपना जातिगत पेशा , लोगन के हजामत बनावल , इहे काम रहि गइल रहे । गांवही के बनिया के लइका भगवान से कुछ पढे के सीखला के बाद , रामायण के काथा में ढेर मन लागे लागल । ओकरा बाद कमाई खातिर खड़गपुर – कलकत्ता । ओजुगा दिन मे हजामत बनावल आ रात खा रामलीला देखल । रामलीला से मन में तमाशा के इच्छा जागल । जगन्नाथपुरी घुमला के बाद जब वापसी कलकत्ता भइल त संघतिया के गठरी में रामचरितमानस मिलल । ओहि के पढे में मन लाग गइल । ठाकुरद्वारा से खड़गपुर आ एहि बीचे रामायण के पाठ ( रामचरितमानस ) ।
फेरु वापसी गांव खाति भइल । गांवे अइला के बाद जेकरे से होखे ओकरे से कवित्त , छन्द , गीत , श्लोक सीखे पढे लगले । ओहि क्रम में खुद लिखहूँ के कोशिश होखे लागल । कैथी लिपि में भोजपुरी भाषा में रचना होखे लागल । गांव के संघतियन के सलाह प गांवही में कागज के मुकुट क्रीट बना के रामलीला शुरु हो गइल । ओहि घरी हमार बिआहो हो गइल रहे । बाद में अइसहीं रामलीला करत करत नाच पाटी बन गइल । घरे के लोग नाच पाटी से खुश ना रहे मना करत रहे बाकिर मन ना मानल आ नाच पाटी शुरु हो गइल । राम-कृष्ण के जय बोल के दोहा चौपाई कहिके उपदेश देत रहनी ।
ओह घरी भिखारी ठाकुर के नाच गाना बजाना कुछ के जानकारी ना बस , भोजपुरी में राम-कृष्ण के बारे में उपदेश । अपना तरिका से अपना भाषा में आपन बात कहत । माई भगवती के किरपा से नाव सगरे फइले पसरे लागल । नया-नया सृजन होखे लागल ।
भोजपुरी के समर्थ लोक-कलाकार , सामाजिक कुरितियन प अपना नाटकन से बरिआर चोट करे वाला लोकगीत , लोक भाषा के असली साधक रहले भिखारी ठाकुर । अपना समाज के धार्मिक , आर्थिक , पारिवारिक , सामाजिक चीजन के बहुत गहिर समझ राखत रहले , एहि वजह से हर चीझू के अपना नाटकन में उचित आ सही रुप दे के एगो सटीक अंजाम तक पहुंचवले बाडे । अतने ना लोकभजन , भक्ति-भाव , गंगा से जुड़ल भक्ति गीतन के एगो नया उंचाई मिलल बा भिखारी ठाकुर के रचना आ लेख से ।
भिखारी ठाकुर सम्पुर्ण कलकार रहले ह , लेखक , साहित्यकार , गीतकार , स्क्रिप्ट राईटर , अभिनेता , नर्तक , संवादी , निर्देशक यानि कि मय कला से भरल-पुरल । जन-चेतना खातिर ना खाली भक्ति बलुक हास्य व्यंग्य गाभी टिबोली के संगे संगे लोक से जुड़ल हर छोट से छोट बड़ से बड़ बात के सहारा ले ले बाडे भिखारी ठाकुर ।
दलित उत्थान , नारी उत्थान प भिखारी ठाकुर के प्रस्तुति अदभुत बा । भिखारी ठाकुर के मातृभाषा भोजपुरी ह । उ भोजपुरी के ही अपना काव्य आ नाटक के भाषा बनवले बाड़े । भोजपुरी गद्य में पुरहर काम भिखारी ठाकुर कइले बाडे । भोजपुरी भाषा में साहित्य के हर विधा में गोट काम भिखारी ठाकूर कइले बाडे ।
भिखारी ठाकुर के नाटक , उँहा के लिखल गीत भोजपुरिया समाज ही ना , भारत देश ही ना बिदेश में ले आपन एगो अलग स्थान बनवले बड़ुवे आ भोजपुरी भाषा साहित्य के विकास में आजुओ भरपुर योगदान दे रहल बड़ुवे ।
भिखारी ठाकुर ( खुंट परिवार के बारे में )
मूल रुप से आरा जिला ( भोजपुर ) के रहे वाला रहनी । बाकि इँहा के जनम से पहिले पुरा परिवार कुतुबपुर ( सारण ) चल आइल । सरजू गंगा के कछार प अइसन बदलाव आ पलायन बहुत आम बात ह ।
राधेश्याम बहार में भिखारी ठाकुर जी अपना परिवार आ खुंट के बारे में पुरा लिखले बानी । तबो अपना खुंट के बारे में बतावत भिखारी ठाकुर जी के हइ पंक्ति –
पहिले बास रहल भोजपुर में, मौजें अरथू अवारी ।
पुरखा पांच बसलन शंकरपुर जानत बा सब नर-नारी ।
एहि विस्थापन प भिखारी ठाकुर जी के एगो कवित्त बा –
आरा जिला ममहर ससुरार फुफहर, आरा जिला परोहित गुरु आरा परिवार है
आरा जिला राजा दिवान छड़िदार आरा डाकघर बबुरा बरह गांवो में बधार है ।
थाना बड़हारा आरा छपरा का मध्य मांहि, परत करीब चकियाँ मटुकपुर बाजार है
ढह कर कुतुपुर गाँव बसल दियरा में, तबहीं से भिखारी कहत छपरा प्रचार है ।
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