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हिंदी भाषा नहीं वरन संस्कृति है। - श्रीनारद मीडिया
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हिंदी भाषा नहीं वरन संस्कृति है।

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विश्व हिंदी दिवस का उद्देश्य है अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी को प्रस्तुत करना।

✍️✍️✍️राजेश पाण्डेय

विश्व हिंदी दिवस पर विशेष


मनुष्य के अस्तित्व के लिए भाषा एवं बोली आवश्यक घटक है। भाषा किसी भी संस्कृति की वाहिका एवं सभ्यता की अस्मिता होती है। हिंदी भारतीय संस्कृति की संवाहिका है। हिंदी की बोली व भाषा ने संसार के कोने-कोने में निवास कर रहे भारतवंशियों को अपने मातृभूमि से संबद्ध करके रखा है। भारत की विविधता को प्रलक्षित करने में हिंदी का महत्वपूर्ण स्थान है, उसने भारतीयों के बीच संवाद स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे हम भारतीय अपनी विरासत पर गर्व करते है। एक सामंजस्य भाषाओं एवं बोली के रूप में हिंदी संसार के सभी बोली- बानी भाषाओं के साथ हृदय से अपना संबंध स्थापित करते हुए ज्ञान-विज्ञान में भी अपना योगदान दिया है।

पूरे विश्व में हिंदी की उपस्थिति को लेकर हम भारतवासी विश्व हिंदी दिवस का कार्यक्रम करते रहते हैं इस कड़ी में अब तक बाहर स्थानों पर विश्व हिंदी सम्मेलन के समारोह का आयोजन किया जा चुका है। इसका मूल उद्देश्य होता है कि हिंदी का प्रचार प्रसार हो और भारतीय सांस्कृतिक की महत्ता को भी प्रचारित किया जाए।
इस वर्ष विश्व हिंदी दिवस का विषय “एकता और सांस्कृतिक गौरव की वैश्विक आवाज़” रखा गया है। इसका प्रमुख उद्देश्य भाषण और अंतरराष्ट्रीय आदान-प्रदान हेतु हिंदी भाषा के उपयोग को बढ़ाना है।

10 जनवरी 2006 को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पहली बार विश्व हिंदी दिवस मनाया तब से यह दिवस विश्व हिंदी दिन के रूप में मनाया जाता है, वहीं 10 जनवरी 1949 को ही संयुक्त राष्ट्र महासभा में पहली बार हिंदी बोली गई थी।


1936 में महात्मा गांधी द्वारा स्थापित राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा ने एक सम्मेलन की परिकल्पना की थी। जबकी विनोबा भावे और इंदिरा गांधी से गहन विचार विमर्श और उनकी स्वीकृति के बाद जब विश्व हिंदी सम्मेलन की घोषणा हुई तो विश्व भर में फैले हिंदी जगत प्रेमियों के बीच आशाएं और आकांक्षाएं जागृत हो गई। इस विषय को लेकर 10 से 14 जनवरी 1975 को नागपुर में विश्व हिंदी सम्मेलन का प्रथम समारोह आयोजित किया गया, इसी कड़ी में 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन फ़िजी देश के नगर नादी में 2023 में आयोजित किया गया। लेकिन विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी 2006 से मनाया जाता है।

 

हिंदी हमारे देश की सांस्कृतिक विविधता को संबद्ध बनाए रखने का माध्यम है। संवाद को सार्थक बनाते हुए हमने अपनी प्रगति की कथा हिंदी बोली बानी में रची है। भाषा मनुष्य के जीवन की अनिवार्यता है। इसमें वह अपनी भावना का संसार रचता है। समय के साथ तकनीक एवंं प्रौद्योगिकी ने समाज को बदला परंतु हमारी हिंदी उसके साथ भी सामंजस्य के साथ पारंपरिक ज्ञान से लेकर कृत्रिम मेधा तक संबद्ध बनाकर रखा है।

बहरहाल भाषा संवाद का माध्यम ही नहीं वरन् वह हमारे समाज की आत्मा है, इसमें हम अपनी सत्य को प्रस्तुत करता है। भाषा बोली-बानी भावुकता का विषय है। भारत के बाहर हिंदी हमारा स्वागत करती है, हमें संस्कारित करती है। हमारी विश्व के प्रति दायित्व, मानवता के प्रति संवेदनशीलता का पाठ हिंदी सदैव हमें बतलाती रहेगी।

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