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सीवान में जब बात निर्भीक और निष्पक्ष कलम की होगी तो याद आयेंगे आशा शुक्ला - श्रीनारद मीडिया

सीवान में जब बात निर्भीक और निष्पक्ष कलम की होगी तो याद आयेंगे आशा शुक्ला

सीवान में जब बात निर्भीक और निष्पक्ष कलम की होगी तो याद आयेंगे आशा शुक्ला

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सीवान की पत्रकारिता के भीष्म पितामह, सीवान के गौरव ग्रन्थ “सोनालिका” के संपादक स्वर्गीय मुरलीधर शुक्ला की पावन स्मृति को नमन

✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बात 2002 की है, जब मुझे सिविल सेवा परीक्षा के साक्षात्कार में शामिल होना था। इसके लिए मुझे अपने गृह जिले सीवान के बारे में प्रामाणिक और विश्वसनीय जानकारी की आवश्यकता थी। मेरे अन्य साथियों ने अपने अपने गृह जिले के गजेटियर को मांगा लिया था लेकिन मुझे उस समय पता चला कि सिवान का कोई गजेटियर प्रकाशित ही नहीं हुआ था। 2023 में मेरे मित्र राजेश पांडेय ने “सोनालिका” ग्रन्थ को मुझे दिखाया। उसे देखकर मैं अचंभित हो गया और उस पूरे ग्रन्थ को मैंने बेहद मनोयोग से पढ़ा।

“सोनालिका” में सीवान के इतिहास, भूगोल, साहित्यिक, सांस्कृतिक आयामों पर बेहद प्रमाणिक और विश्वसनीय जानकारी पढ़ने को मिली। मैं सीवान का ही रहनेवाला हूं लेकिन मुझे सीवान के नकारात्मक तथ्यों के बारे में ज्यादा जानकारी थी लेकिन इस ग्रन्थ को पढ़ने के बाद मुझे सीवान के सकारात्मक और गौरवशाली संदर्भ पर गर्व हुआ।

“सोनालिका” नामक गौरव ग्रन्थ का संपादन किया था सीवान की पत्रकारिता के भीष्म पितामह स्वर्गीय मुरलीधर शुक्ला ने, जिन्हें स्नेहवश आशा शुक्ला के नाम से भी जाना जाता था। गुरुवार को वैसे वे देवलोकगमन कर गए लेकिन भविष्य में जब भी सीवान में निर्भीक और निष्पक्ष कलम यानी पत्रकारिता की बात होगी तो मुरलीधर शुक्ला जी सदियों तक याद आते रहेंगे।

स्वर्गीय मुरलीधर शुक्ला विशुद्ध पत्रकार रहे। उनकी कलम जब भी चली, उसमें सीवान के प्रति उनका असीम स्नेह ही उजागर हुआ। उन्होंने सीवान की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक विसंगतियों पर निर्भीकता से प्रहार किया। ऐतिहासिक तथ्यों को तार्किकता से प्रस्तुत किया। निष्पक्ष तरीके से समसामयिक परिस्थितियों का मूल्यांकन किया और अपने कलम से वस्तुनिष्ठता और स्पष्टता के साथ पाठकों को परोसा।

उन्होंने तत्कालीन प्रतिष्ठित अखबारों आर्यावर्त, आज, सारण संदेश में लिखने के साथ आंचलिक अखबारों में लिखकर अपने पत्रकारीय कौशल का शानदार परिचय दिया। बेहद साधारण जीवन जीने के आदि रहे आशा शुक्ला ने अपनी असाधारण पत्रकारिता से सीवान और आसपास के क्षेत्रों की महान सेवा की।

उनके संपादन में तैयार “सोनालिका” में समाज के हर वर्ग से जुड़े लोगों के आलेख को भी रखा गया। हजारीबाग के उपायुक्त रहे कभी सीवान में प्रशासनिक अधिकारी रहे पी एन विद्यार्थी, वकील छोटे बाबू सहित कई हस्तियों के आलेखों को समाहित कर उन्होंने “सोनालिका” गौरव ग्रन्थ को ऐसे तैयार किया, जो प्रशासन अब तक नहीं कर पाया है।

“सोनालिका” की सभी जानकारी विश्वनीयता और प्रमाणिकता के आधार पर सौ फीसदी खरी उतरती है और सीवान के गजेटियर नहीं होने की कमी को पूरी करती रही है। इस गौरव ग्रन्थ “सोनालिका” को पढ़ने का असर यह होता है कि आप सीवान के राष्ट्रीय आंदोलन में बड़े योगदान, सीवान के कला और संस्कृति के अनमोल आयामों से परिचित होकर आप उस स्थिति में पहुंच जाते हैं, जहां सीवान का निवासी होना आपको गौरव की अनुभूति करा जाता है।

स्वर्गीय मुरलीधर शुक्ला ने जब भी अपनी कलम चलाई तो समसामयिक मसलों में जनता के मुद्दों को ही वरीयता दी। उन्होंने खबरों को पाठकों को परोसने में सदैव वस्तुनिष्ठता, निष्पक्षता, सटीकता और निष्पक्षता का खास ख्याल रखा। यद्यपि उनकी कद काठी छोटी थी लेकिन उनका हृदय बेहद विशाल था। किसी के दवाब में आना तो शायद कभी उन्होंने सीखा ही नहीं था।

सीवान में दहशतभरे माहौल में भी कभी उनके कलम ने समझौता नहीं किया और विसंगतियों पर निरंतर कठोर प्रहार जारी रहा। कभी कभी इसके लिए उन्हें कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा लेकिन उनका हौंसला सदैव आसमानी ही बना रहा। उनके साथी रहे डॉक्टर विजय कुमार पांडेय यह स्वीकार करते दिखते हैं कि स्वर्गीय आशा शुक्ला का व्यक्तित्व निडरता का पर्याय था।

उम्र के उस पड़ाव पर जब उनके शरीर ने साथ देना छोड़ दिया तो उनकी सामाजिक स्तर पर सक्रियता घटी लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से उन्होंने नए लेखकों के उत्साहवर्धन का काम शुरू रखा। मैं जब पहले सिविल सेवा परीक्षाओं के साक्षात्कार में शामिल होता था तो इंटरव्यू बोर्ड के सामने जाने पर मुझे सबसे पहले अपने गृह जिले सीवान के संदर्भ में सीवान के नकारात्मक आयामों का सामना करना पड़ता था।

इसके कारण मैंने “शानदार सिवान” नामक एक फेसबुक पेज बनाया। उस पेज पर जब भी मैं सीवान के सकारात्मक आयाम पर कोई पोस्ट डालता था तो तुरंत स्वर्गीय मुरलीधर शुक्ला जी का कमेंट और कॉल आ जाता था। उनका स्नेह सिर्फ सराहना ही नहीं करता था अपितु भरपूर उत्साहवर्धन भी करते था जो एक कलमकार की मानसिक और हार्दिक जीवंतता का परिचायक था। बस अफसोस यहीं है कि अब शायद स्नेह और उत्साह के वे संदेश अब नहीं मिल पाएंगे.

 

 

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