इसरो ने रचा इतिहास, GSLV-एफ 15 रॉकेट लॉन्च

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अगले 5 सालों में ISRO करेगी 200 मिशन का आंकड़ा पार

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आज अपने ऐतिहासिक 100वें मिशन की सफल लॉन्चिंग की। इस मिशन में एक नेविगेशन सैटेलाइट को जीएसएलवी रॉकेट पर लॉन्च किया गया। कुछ घंटों बाद, इसरो ने एनवीएस-02 के लॉन्च के दौरान जीएसएलवी-एफ15 से एक मिनट लंबा ऑनबोर्ड फुटेज साझा किया। यह मिशन अंतरिक्ष एजेंसी के नए अध्यक्ष वी नारायणन के लिए पहला मिशन था। ISRO ने इसको लेकर एक्स पर भी पोस्ट किया।

6 बार हुआ फेल

अब तक हुए 16 लॉन्च में से ये रॉकेट 6 बार असफल हुआ, जो कि 37 प्रतिशत की बड़ी विफलता दर है। इसकी तुलना में, भारत के लेटेस्ट लॉन्च व्हीकल मार्क-3, जिसे ‘बाहुबली’ रॉकेट के नाम से भी जाना जाता है की सफलता दर 100 प्रतिशत है।

यह भी उसी परिवार का एक रॉकेट है जहां भारत ने क्रायोजेनिक इंजन बनाने में महारत हासिल करने का अपना कौशल दिखाया था, एक ऐसी तकनीक है जिसमें देश को महारत हासिल करने में दो दशक लग गए, क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका के दबाव में रूस ने भारत को इसकी टेक्नॉलिजी ट्रांसफर से इनकार कर दिया था।

श्रीहरिकोटा से 100वां मिशन किया लॉन्च

जीएसएलवी-एफ15 जीएसएलवी की 17वीं उड़ान और स्वदेशी क्रायो चरण के साथ ग्यारहवीं उड़ान है।यह स्वदेशी क्रायोजेनिक फेज के साथ जीएसएलवी की आठवीं परिचालन उड़ान और स्पेसपोर्ट श्रीहरिकोटा से 100वां लॉन्च था।

अगले 5 सालों में ISRO करेगी 200 मिशन का आंकड़ा पार

तारीख 29 जनवरी, 2025 और दिन बुधवार देश और इसरो के लिए आज का दिन बेहद खास होने वाला है। आज इसरो श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से अपनी 100वीं लॉन्चिंग की। इस उपलब्धि को हासिल करने में इसरो को 46 साल लग गए। वहीं, अब उम्मीद की जा रही है कि अगली सेंचुरी बनाने के लिए इसरो को इतना समय नहीं लगेगा।
बता दें कि सुबह 06:23 बजे GSLV-F15 रॉकेट से NVS-02 मिशन लॉन्च किया गया। जीएसएलवी-F15 की 17वीं उड़ान है। एनवीएस-02 उपग्रह है, जो नाविक (NAVIC) उपग्रह प्रणाली का हिस्सा है।
एनवीएस-02 सैटेलाइट नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन (नाविक) श्रृंखला का दूसरा सैटेलाइट है। इसका उद्देश्य भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ भारतीय भूमि से लगभग 1,500 किमी तक के क्षेत्र में उपयोगकर्ताओं को सटीक स्थिति, वेग और समय प्रदान करना है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष वी. नारायणन, जिन्होंने बुधवार को इसके 100वें मिशन, जीएसएलवी एफ-15/एनवीएस-02 नेविगेशन उपग्रह प्रक्षेपण की देखरेख की, ने विश्वास व्यक्त किया कि अंतरिक्ष एजेंसी पांच वर्षों में 200 का आंकड़ा पार कर सकती है।यह पूछे जाने पर कि क्या अगले पांच वर्षों में 100 प्रक्षेपण करना संभव है, नारायणन ने सकारात्मक जवाब दिया। उन्होंने कहा, आप सही सवाल पूछ रहे हैं। यह संभव है।

ISRO ने तय किया लंबा सफर

इतिहास रचते हुए इसरो ने रॉकेट के पुर्जों को साइकिल और बैलगाड़ी पर ले जाने के युग से लेकर अब तक का सफर तय किया है और अब यह दुनिया की सबसे प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक बन गई है, जो अब विदेशी विक्रेताओं के लिए वाणिज्यिक प्रक्षेपण कर रही है। इसरो एक विशेष लीग का हिस्सा है जिसने चंद्रमा और सूर्य में प्रवेश किया है।

इससे पहले बुधवार को इसरो ने एनवीएस-02 के प्रक्षेपण के साथ अपने 100वें मिशन का जश्न मनाया। यह नाविक समूह का हिस्सा है, जो स्थलीय, हवाई और समुद्री नौवहन तथा सटीक कृषि आदि में सहायता करेगा। जीएसएलवी रॉकेट द्वारा पेलोड को वांछित कक्षा में प्रक्षेपित किया जाएगा।

अब तक इसरो ने प्रक्षेपण वाहनों की छह पीढ़ियां विकसित की हैं, जिनमें से पहली पीढ़ी 1979 में प्रोफेसर सतीश धवन के मार्गदर्शन में और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की परियोजना निदेशक के रूप में विकसित हुई थी। यह एसएलवी-3 ई1/रोहिणी प्रौद्योगिकी पेलोड था।

46 साल बाद हुआ ISRO का 100वां मिशन

नारायणन ने कहा कि 46 साल बाद, ISRO ने 100वें मिशन की ओर बढ़ते हुए 548 उपग्रहों को कक्षाओं में पहुंचाया है, जिसमें 120 टन का पेलोड शामिल है, जिसमें 433 विदेशी उपग्रहों के 23 टन शामिल हैं। आज के मिशन की सफलता के बाद पत्रकारों से बात करते हुए नारायणन ने भविष्य के मिशनों पर भी बात की। NASA के साथ ISRO के सहयोगात्मक प्रयास, निसार मिशन (NISAR mission) को कुछ महीनों में लॉन्च किए जाने की संभावना है।

अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा वर्तमान में की जा रही अन्य परियोजनाओं में एन.जी.एल.वी. भी शामिल है।अंतरिक्ष विभाग के सचिव नारायणन ने कहा कि नासा-इसरो के संयुक्त सहयोग से सिंथेटिक अपर्चर रडार सैटेलाइट मिशन (एन.आई.एस.ए.आर.) को कुछ महीनों में लॉन्च किए जाने की उम्मीद है।

उन्होंने कहा, यह नासा और इसरो के बीच संयुक्त सहयोग है। इसमें दो रडार हैं – एक एल बैंड रडार (इसरो द्वारा विकसित) और एस बैंड रडार, जिसे नासा की जेट प्रोपल्शन प्रयोगशाला द्वारा विकसित किया गया है। संपूर्ण प्रणाली को यू आर राव सैटेलाइट सेंटर (बेंगलुरू में) में एकीकृत और परीक्षण किया गया है। यह यू आर राव सैटेलाइट सेंटर से श्रीहरिकोटा ले जाने के लिए तैयार है।

अगले 5-6 महीनों में एक उपग्रह लॉन्च करने की योजना- नारायणन

यह पूछे जाने पर कि भारत को अपना स्वयं का उपग्रह बनाने के लिए कितने और नेविगेशन उपग्रहों को लॉन्च करने की आवश्यकता है, उन्होंने कहा, अभी, चार उपग्रह परिचालन में हैं। आज का प्रक्षेपण पाँचवाँ उपग्रह है (GSLV-F15 पर)। हमें तीन और के लिए मंजूरी मिल गई है। हम अगले पाँच से छह महीनों में एक उपग्रह लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं।

तमिलनाडु के कुलशेखरपटनम से प्रस्तावित रॉकेट प्रक्षेपण के बारे में चेयरमैन ने कहा, अभी हम सुविधाओं का निर्माण कर रहे हैं और निर्माण कार्य पूरा होने के दो साल के भीतर वहां नियमित रूप से प्रक्षेपण किए जाएंगे।

नारायणन ने कहा कि इसरो को अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान (Next Generation Launch Vehicles) के निर्माण के लिए भी केंद्र से मंजूरी मिल गई है, जो 20 टन वजन के पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षा में या 10 टन वजन के पेलोड को भूस्थिर स्थानांतरण कक्षा में ले जा सकता है।

उन्होंने कहा कि उद्योग जगत की ओर से इस तरह के वाहनों की भारी मांग है। ऐसे प्रक्षेपण वाहनों का इस्तेमाल हाल ही में घोषित तीसरे लॉन्च पैड से किया जाएगा, जिसे 4,000 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि एनजीएलवी का इस्तेमाल चंद्रयान 4 और 5 मिशनों के साथ-साथ गहरे अंतरिक्ष मिशनों में भी किया जा सकता है।

ISRO द्वारा भविष्य में किए जाने वाले अन्य प्रक्षेपणों में एक विदेशी ग्राहक के लिए न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) द्वारा एलवीएम3 की वाणिज्यिक उड़ान, लगभग 34 प्रौद्योगिकियों को प्रमाणित करने के लिए एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन उपग्रह टीडीएस01 मिशन शामिल है, जिसे उद्योग संघ द्वारा निर्मित प्रथम पीएसएलवी द्वारा प्रक्षेपित किया जाएगा।
उन्होंने कहा, आप सभी जानते हैं कि हम गगनयान कार्यक्रम के हिस्से के रूप में मानवरहित जी-1 मिशन की तैयारी में बहुत अच्छी तरह से प्रगति कर रहे हैं और इस वर्ष कुछ और प्रयोग करने का लक्ष्य रखा गया है।

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