अंग्रेजों ने कुंभ मेला पर क्यों प्रतिबंध लगाया था?
1858 में प्रयागराज की धरती अंग्रेज छावनी में तब्दील हो गई थी
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
प्रत्येक 12 साल बाद त्रिवेणी संगम प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होता है. चाहे वो सल्तनत काल हो, मुगल काल हो या ब्रिटिश काल. भारत में किसी का भी शासन रहा हो, कुंभ मेले का आयोजन बड़े धूम-धाम से होता आया है. बड़ी संख्या में साधु-संत, नागा संन्यासियों और श्रद्धालु त्रिवेणी संगम पहुंचते रहे हैं. यहां श्रद्धालु कल्प वास करने के साथ-साथ अमृत स्नान (शाही स्नान) करते हैं.
लेकिन, ब्रिटिश काल में एक समय ऐसा भी था, जब संगम का किनारा श्रद्धालुओं के जमावड़े की जगह अंग्रेज सैनिकों की छावनी बन गई थी. उस समय तीर्थयात्री नहीं, चारों तरफ सिर्फ बंदूकधारी अंग्रेज सैनिक दिखाई देते थे. प्रयागराज में ऐसी स्थिति जनवरी, 1858 के कुंभ में थी. कुंभ के योग बनने के बाद भी ब्रिटिश सरकार की सख्ती के कारण कुंभ का आयोजन नहीं हुआ था. जिसकी वजह से न ही अखाड़ों का आगमन हुआ था और न ही श्रद्धालुओं की भीड़ नजर आयी.
हिन्दू मेला पर लगा था प्रतिबंध
Rev. James C. Moffat की किताब The Story of A Dedicated Life के पृष्ठ संख्या 139 में लिखते हैं कि पुराने मिशनरी ओवेन 19 जनवरी, 1858 को ईसाई धर्म के प्रचार के लिए कोलकाता से इलाहाबाद के लिए रवाना होते हैं, तो वह देखते हैं कि सैन्य अभियानों का केंद्र बनया जा रहा था, क्योंकि पूरा शहर उस समय क्रांति के दौर से गुजर रहा था. इसकी वजह से चारों तरफ सैन्य गतिविधियां ही चल रही थीं. हर दिशा में बदलाव हो रहा था. सब कुछ अस्थिर था. मिशन का काम भी ठीक तरह से नहीं चल रहा था. ऐसे में हिन्दू मेला भी पूरी तरह से स्थगित था.
इसकी वजह से समूह के रूप में संगम की ओर जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित था. अंग्रेज सैनिकों के डर के कारण स्थानीय प्रागवाल यानी पंडा अपने-अपने मुहल्ले (प्रागवालीटोला) छोड़कर भाग गए थे. ब्रिटिश सैनिकों का खौफ इतना था कि शहर के कुलीन और अमीर वर्ग के लोग भी संगम स्नान के लिए नहीं गए थे. हालांकि, कुछ पंडे एक-दो करके संगम पर जाते और लोटा में जल लेकर वापस लौटकर दारागंज के किनारे गंगा की धारा में मिला देते. इसी तरह पंडे लोग सैनिकों से बच-बचाकर स्थानीय लोगों को धार्मिक स्नान की व्यवस्था करा रहे थे.
क्यों लगाया गया प्रतिबंध? जानें
दरअसल, 1857 के जून महीने में अंग्रेजों के खिलाफ प्रयागराज में क्रांति भड़की थी. इस दौरान क्रांतिकारियों द्वारा इलाहाबाद का मिशन कम्पाउंड जला दिया गया था. इस दौरान अमेरिकन प्रेसबिटेरियन चर्च मिशन का प्रिंटिग प्रेस पूरी तरह से तहस-नहस हो गया था. इसकी वजह से सभी यूरोपीय मिशनरीज यहां से कलकत्ता भाग गए और मिशन की गतिविधियां 6-7 महीने बंद थीं. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि ब्रिटिश सरकार को यह डर था कि बड़ी संख्या में एक जगह लोगों के मौजूद रहने पर विद्रोह फिर से भड़क सकता है. इसी वजह से अंग्रेजों ने 1858 के कुंभ के आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया था. (इस आर्टिकल को लिखने में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास विभाग के शोधार्थी प्रांजल बरनवाल ने मदद की है.
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