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संत शिरोमणि रैदास की जयंती मनाई गई - श्रीनारद मीडिया

संत शिरोमणि रैदास की जयंती मनाई गई

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रचलित कहावत ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ को कह कर सिद्ध करने वाले संत रविदास जी थे।क्या आप जानते हैं कि वो संत कौन थे? वो थे संत शिरोमणि पूज्य रविदास। उन्हें रैदास के नाम से भी जाना जाता है। वे महान् संत रामानंदाचार्य के शिष्य थे तथा चित्तौड़ की रानी व कृष्णभक्त महान् कवयित्री मीराबाई के आध्यात्मिक गुरु थे। संत रविदास का जन्म सन् 1377 में काशी में माघ पूर्णिमा को सीर गोवर्धनपुर में हुआ था।

उनका एक दोहा प्रचलित है-
चौदह सौ तैंतीस की माघ सुदी पन्दरास।
दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री रविदास।

संत रविदास एक चर्मकार (चमार) परिवार में पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) और माता का नाम कलसा देवी बताया जाता है। जिस दिन उनका जन्म हुआ, वह रविवार था। इस कारण उन्हें रविदास कहा गया। जूते बनाने का काम उनका पैतृक व्यवसाय था और उन्होंने इसे सहर्ष अपनाया। वे अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे।

संत रविदास बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। कामकाज वे करते तो थे, पर उसमें उनका मन नहीं लगता था। वे ईश्वर भक्ति तथा समाजसेवा में लगे रहते थे। इसलिए उनके माता-पिता ने जल्दी ही उनका विवाह लोना देवी से कर दिया, ताकि अपनी घर-गृहस्थी पर वे ध्यान दे सकें। उनको एक पुत्र भी हुआ, नाम था विजयदास। पर उनका मन कभी भी सांसारिक मायामोह में रमा ही नहीं। वे हमेशा ईश्वर भक्ति में लीन रहते थे; हालाँकि जीविकोपार्जन के लिए जूते बनाने व मरम्मत करने का काम पूरी ईमानदारी व तन्मयता से करते थे।

संत रविदास की प्रारंभिक शिक्षा पंडित शारदानंद की पाठशाला में हुई। पंडित जी रविदास की प्रतिभा से बहुत प्रभावित थे। इसलिए उनपर विशेष ध्यान रखते थे। बाद में रविदास जी का सम्पर्क प्रसिद्ध निर्गुण संत कबीरदास से हुआ और बताया जाता है कि कबीरदास के कहने पर ही संत रविदास ने उस समय के प्रख्यात वैष्णव संत रामानंदाचार्य से दीक्षा ली। वे भक्ति धारा के एक प्रसिद्ध कवि थे।

संत रविदास जाति-पाति, ऊँच-नीच, भेदभाव के घोर विरोधी थे। इसके लिए उन्हें कुछ कट्टरपंथियों का कोपभाजन भी बनना पड़ा।

उन्होंने सीधे-सीधे लिखा है-
‘रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच।
नर कूं नीच कर डारि है,ओछे करम की नीच।

यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है। जो व्यक्ति गलत काम करता है वो नीच होता है। कोई भी व्यक्ति जन्म के हिसाब से कभी नीच नहीं होता।
संत रविदास ने हमेशा गुण का सम्मान करने की बात कही। उनका मानना था कि कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म लेने के कारण पूजनीय नहीं हो जाता।

उन्होंने लिखा है –
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन।
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन।।

अर्थात् ऊँची जाति में जन्म लेने से ही कोई आदर का पात्र नहीं होना चाहिए, बल्कि गुणवान व्यक्ति किसी भी जाति का हो, पूजनीय है।
संत रविदास ने भक्ति के बहुत पद लिखे हैं। उनके लिखे 41 पद सिख पंथ के ‘गुरुग्रंथ साहिब’ में संकलित हैं।

उनका लिखा यह पद बहुत प्रसिद्ध है –
प्रभुजी, तुम चंदन हम पानी।
जाकी अंग-अंग बास समानी।।

संत रविदास ने अपने नश्वर शरीर का त्याग काशी में ही किया। उनके नाम पर वहाँ पर ‘गुरु रविदास स्मारक और पार्क’ बना है। आज वे हमारे बीच नहीं हैं, पर उनके उपदेश, उनका जीवन हमारे लिए हमेशा पथप्रदर्शक की भूमिका में रहेगा।

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