कुम्भ, कुम्भक और मंथन

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किस कुंभ में हमें स्नान करना है? प्राचीन काल से ही हम कुंभ में स्नान के इस अनुष्ठान से अवगत हैं

कुंभ मेले के चार स्थल हैं – प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आमतौर पर हर तीन साल के अंतराल में सांसारिकजन और साधुमण्डली को एक साथ लाने के लिए कुंभ आयोजित किया जाता है, हाँलांकि नासिक और उज्जैन सिंहस्थ कुंभ में, अंतराल कम है। 12 साल का एक चक्र इन चार शहरों में से प्रत्येक में कुंभ के रूप में जाना जाता है। आखिरकार 12 साल का महत्व क्या है?

12 राशियों , 12 ज्योतिर्लिंग और प्रयाग में पूर्णकुंभ का १२ साल का चक्र; संबंध क्या है? हर मनुष्य के बौद्धिक स्तर में 12 साल की अवधि में प्रत्यक्ष परिवर्तन होता है जैसे 0-12, 13-24, 25-36…क्रमानुसार! 12 साल की यह चक्रीयश्रृंखला हमारे सूक्ष्म और कारण शरीर में स्थित छह चक्रों के ध्रुवीकरण (6*2=12) में हुए परिवर्तन की प्रतीति को दर्शाती है।

उदाहरण के लिए प्रयाग में तीन नदियों का मिलन स्थल है; गंगा, यमुना और रहस्यवादी-अनदेखी सरस्वती का संगम। प्रयाग कुंभ में स्नान का अनुष्ठान करने के लिए दूर-दूर से सब पापों को धोने जाते हैं। इस अनुष्ठान की अवधारणा को समझने के लिए वास्तव में गहरा गोता लगाना होगा:

1. प्रयाग अर्थार्त संगम बिंदु – प्रणव के साथ। भ्रूमध्य ही प्रयाग है।
2. गंगा अर्थार्त पिंगला नाड़ी, यमुना नदी का मतलब है ईड़ा नाड़ी और सरस्वती यानि सुषुम्ना नाड़ी।
3. कुंभ अर्थार्त कुंभक, या श्वासरहित चैतन्यराज्य में मन से परे जाने के लिए किपाट खोलना।
4. सरस्वती, गंगा और यमुना के बीच बह रही नदी – यानि केंद्रिय नाड़ी।
5. स्नान करने का मतलब है, श्वासरहित स्थूलशरीर में दिव्य चेतना के उस क्षण में डुबकी लेना।
6. पापों का धुलना अर्थार्त मानव चेतना का दिव्य चेतना में परिवर्तन।
7. समुद्रमंथन की रूपक कथा में इन चार शहरों में अमृत गिरना – अर्थार्त सनातन चेतना का दिव्य अमृत इन चार शहरों में, प्राचीनकाल से योग प्रथाओं के व्यापक रूप से प्रचलित प्रयासों के कारण अधिक सूक्ष्म ऊर्जारूप में होना।
8. प्रयाग और हरिद्वार में छह वर्षीय अर्द्ध कुंभ और प्रयाग में 12 साल मानस विकास चक्र का पूर्णकुंभ।
9. कुंभ मेले का राशि चक्र के अनुसार आयोजन, यानि आंतरिक प्रकृति के साथ आकाशीय प्रकृति का एकीकरण सिद्धांत।
10. समुद्र मंथन उपरांत अमृत निकलना, यानि सात्विकता तथा काम जनित राग-द्वेष के द्वारा मन का मंथन और फलस्वरूप जन्म-मरण चक्र से बाहर निकल अमरता प्राप्ति।
11. मंधर पर्वत यानि एकाग्रता और वासुकी मतलब वासनाएं एवं कछुए द्वारा पर्वत को डूबने न देना, यानि प्रत्याहार की शक्ति।
12. सर्वप्रथम मंथन के परिणामस्वरूप विष निकलना, यानि प्रारंभिक बाधाएँ; एवं शिव का उसको पीना, अर्थार्त योगी की दृद़ता ही उसका हल।
13. विभिन्न अलौकिक वस्तुओं के निकलने का मतलब, विभिन्न मनोगत शक्तियों एवं सिद्धियों की प्राप्ति।
14. देवी लक्ष्मी के प्रकट होनेपर उनको विष्णु को उपहार में देना, यानि धर्ता ऊर्जा का ईश्वर को समर्पण।
15. धनवंतरि (दैवीय चिकित्सक) द्वारा अमृत कलश थामना, यानि अमरता का वरदान।
(16) मोहिनी द्वारा अमृत का वितरण सिर्फ देवों को – अर्थार्त भगवान अंतत: धर्म के साथ, न कि किसी जाति या संप्रदाय के साथ।

जो ईश्वर को मनरूपी सागर का मंथन कर अंतर में खोज लेगा उसे बाह्रय व्याप्त ईश्वरीय एकत्व भी हासिल होता है; और जो बाह्रय व्याप्त ईश्वर को खोजता है – वह जन्म जन्मांतर खोजता ही रह जाता है।

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