शिव आज भी विश्व गुरु है
महाशिवरात्रि पर विशेष
✍️ राजेश पाण्डेय
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जीव में ही शिव की परिकल्पना है। कंकर-कंकर में शंकर है अर्थात कण-कण में शिव विद्यमान है। सृष्टि और सृष्टा अलग नहीं है ईश्वर का ही वह मूल तत्व कण-कण में है। उस तक पहुंचाने के मार्ग पृथक-पृथक हो सकते है। सत्य, शाश्वत एवं सृजन के प्रमाण शिव है। शंकर सनातन संस्कृति के वाहक है। उनके बारह ज्योतिर्लिंग भारत की भूगोल, इतिहास, सामाजिक-सांस्कृतिक स्वरूप को प्रस्तुत करते है। शंकर जी की जीवन को आगे बढ़ते हैं वही आप कामनाओं को वश में करने वाले योगेश्वर है।
हमारी संस्कृति में यह मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह हुआ था। समाज में जब अधर्म एवं अज्ञानता की प्रकाष्ठा होती है तब शिव तांडव करते है। यह तांडव संहार कर नवीन की सृष्टि है। संहार के बिना सृजन और अहंकार के बिना प्रकाश महत्वहीन है। शिव विष के ग्रहणकर्ता है। वह हमें घर, परिवार, समाज व राष्ट्र के विष को ग्रहण करने की सीख देते हुए सृजन का संदेश देते है।
संसार जानने का विषय है, ईश्वर जानने का नहीं है मानने का विषय है। जिसकी जितनी श्रद्धा अपने ईष्ट के प्रति होगी वह उतना ही अपने कर्म में कर्तव्यपरायण होगा।जिसके बारे में पता लग जाए कि अमुक पूजा कब से प्रारंभ हुई तो यह हमारे सनातन धर्म का भाग नहीं हो सकता। सनातन अनंत चक्र है जिसमें हम निरन्तर गतिमान होते रहते है। जो है उसको जानना एवं जो नहीं है उसको नहीं जानना सर्वज्ञता है।
जो नहीं है उसको भी जानना भ्रांति है। ना हमारे यहां शिव पहली बार प्रकट होते हैं और ना ही शिवलिंग पहले बार प्रकट होता है। शिव को मानने से कल्याण होता है। शिव को जानने की कोई स्थिति नहीं है। जैसे समुद्र को उसकी व्याप्ति में नहीं जाना जा सकता। उसी प्रकार शिव को हम उसकी सामर्थ्य में नहीं जानते बल्कि उसकी कृपालुता में जान सकते है। शिव सत्य से परे है इसलिए शिव सदाशय है।
लिंग का संस्कृत में शाब्दिक अर्थ चिन्ह होता है मतलब जिसके द्वारा पहचाना जाए। जिसके द्वारा संपूर्ण जगत लय को प्राप्त होता है लीनता में गमन करता है वह लिंग है। ब्राह्मण मात्र की ऊर्जा को प्रवाह की गति में जानना चाहेंगे तो प्रवाह की वही मुद्रा है जिसमें शिवलिंग की प्रतिष्ठा होती है। ऊर्जा अंडाकार चक्र में प्रवाहित होती है यह उसकी स्वाभाविक प्रकृति है अतः शिव को केवल शिवत्व के रूप में, ऊर्जा के रूप में परिभाषित किया जाता है तो उसे संपूर्ण ब्रह्मांड के पूंजीभूत सत्य को, शक्ति को, चेतना के रूप में लिंगाकार- पिंडाकार के रूप में पहचानते है।
हम जिस संसार में रहते हैं उसको जानना-समझना चाहिए,अपने को जानना-समझना चाहिए। इसको जानने-समझने से माया कुछ कम होगी। उसके प्रति रोमांस कुछ कम होगा। परमात्मा जानने का विषय नहीं है। वह मानने की अगाध श्रद्धा है, वैसे तत्व हमें जानने सुनने चाहिए जिससे उसके प्रति हमारी भक्ति बढ़े।
शिव अज्ञेय तत्व है और अप्रमेय तत्व है। शिवरात्रि का अर्थ है प्रत्येक महीने का 14वां दिन जो अमावस्या से एक दिन पहले आता है। पूरे वर्ष में बारह से तेरह शिवरात्रि आते है। शिवरात्रि के समय पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में ऊर्जा ऊपर की ओर बढ़ती है।
प्रत्येक जीव अपने को सर्वश्रेष्ठ रीढ़ के सीधी होने पर पाता है अर्थात जीव में स्वाभाविक विकास करोड़ों वर्षों में रीढ़ की हड्डी के सीधी होने से हुई है। ऊर्जा का प्रयोग वही कर सकता है जिसकी रीढ़ सीधी है।
शिवरात्रि की रात में ऊर्जा स्वाभाविक रूप से ऊपर की ओर बढ़ती है। इस दिन जीव के तृतीय नेत्र खुलते है अर्थात बोध का वह आयाम जो भौतिक से परे है उसे तृतीय नेत्र कहते है।यह शिवरात्रि की रात विशेष है जो आपके बोध के आयाम पर तृतीय नेत्र खोलने का अवसर प्रदान करती है।
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