बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान से क्यों नफरत करते हैं?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बलोचिस्तान प्रांत, दक्षिणी पाकिस्तान और ईरान की सीमा पर स्थित पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है। और प्राकृतिक संसाधनों के मामले में ये पाकिस्तान का सबसे अमीर प्रांत है। यहां तांबा है, गैस है और कोयले के भी बड़े-बड़े भंडार है। लेकिन सोचिए, प्राकृतिक रूप से इतना धनी और सम्पन्न होने के बावजूद पाकिस्तान में सबसे ज्यादा ग़रीबी भी इसी प्रांत में हैं। और इस ग़रीबी का कारण है ”खुद पाकिस्तान”
आज से 1400 वर्ष पहले ये इलाक़ा मकरान नाम से लोकप्रिय था और इस इलाक़े पर सिंध के राय राजवंश का नियंत्रण था। ये बात उस समय की है, जब इस इलाक़े में इस्लाम धर्म नहीं पहुंचा था। और उस वक्त यहां ज्यादा आबादी या तो हिन्दुओं की थी या बौद्ध धर्म के लोगों की थी।
सातवीं शताब्दी में जब अरब में इस्लाम धर्म की स्थापना हुई, उसके बाद अरब से आए विदेशी आक्रमणकारियों ने इस इलाक़े पर हमला कर दिया। और धीरे-धीरे इस इलाक़े की पूरी Demography बदल दी। और इस क्षेत्र में हिन्दू और बौद्ध धर्म का वर्चस्व ख़त्म हो गया। वर्ष 1783 में जब भारत पर ब्रिटिश सरकार का कब्ज़ा हो चुका था, उस समय बलोचिस्तान रियासत ने यहां के ग्वादर बंदरगाह को ओमान के सुल्तान को बेच दिया।
उस समय बलोचिस्तान की इस रियासत को कलात खानत कहा जाता था। और आज़ादी से पहले अंग्रेज़ों के शासनकाल में भारत में जो 565 रियासतें थीं, ये भी उन्हीं में से एक थी। हालांकि इस रियासत ने भारत की आज़ादी में कोई हिस्सा नहीं लिया और ये रियासत हमेशा से खुद को स्वतंत्र मानती थी। वर्ष 1947 में जब भारत पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तब इन सभी रियासतों को दो विकल्प दिए गए थे पहला भारत और पाकिस्तान में से किसी एक देश में अपनी रियासत का विलय करना और दूसरा अगर कोई रियासत इन दोनों देशों में अपना विलय नहीं चाहती तो वो स्वतंत्र यानी आज़ाद रह सकती है।
उस समय कश्मीर की तरह बलोचिस्तान की रियासत ने भी यही तय किया कि वो स्वतंत्र रहेगी। हालांकि बलोचिस्तान के शासक पर पाकिस्तान का काफ़ी दबाव था कि वो पाकिस्तान में अपना विलय कर लें जबकि कुछ ऐतिहासिक दस्तावेजों में इस बात का ज़िक्र है कि उस समय की बलोचिस्तान रियासत भारत में अपना विलय करने की इच्छुक थी। लेकिन 27 मार्च 1948 को पंडित जवाहर लाल नेहरु के क़रीबी वी.पी मेनन ने ऑल इंडिया रेडियो पर देश को ये जानकारी दी कि, बलोचिस्तान के शासक ने भारत में अपनी रियासत के विलय का प्रस्ताव भेजा है लेकिन भारत इस प्रस्ताव को खारिज करता है। और भारत का बलोचिस्तान से कोई लेना देना नहीं हैं।
इस बात से तब देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल इतना नाराज़ हुए कि उन्होंने तुरंत एक स्पष्टीकरण जारी करते हुए ये बताया कि भारत को ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं मिला है। लेकिन बहुत सारे इतिहासकार मानते हैं कि उस समय बलोचिस्तान के शासक अपनी रियासत को भारत में मिलाने के लिए काफ़ी इच्छुक थे लेकिन पंडित नेहरु ने इसके महत्व को समझा ही नहीं।
जबकि मोहम्मद अली जिन्ना को जैसे ही इसकी ख़बर लगी तो उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के इस कार्यक्रम के दो दिन बाद 29 मार्च 1948 को पाकिस्तान की सेना के माध्यम से बलोचिस्तान पर हमला कर दिया और बलोचिस्तान को पाकिस्तान में मिला दिया और उसी दिन से बलोचिस्तान के लोग ये कह रहे है कि ये विलय उनकी सहमति के खिलाफ हुआ था और अब उन्हें पाकिस्तान से आज़ादी चाहिए।
यहां एक और दिलचस्प जानकारी ये है कि वर्ष 1946 में बलोचिस्तान की रियासत ने ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ कोर्ट में एक केस लड़ा था और ये मांग की थी कि आज़ादी के बाद उनकी रियासत को हमेशा की तरह स्वतंत्र ही रखा जाए। इस रियासत की तरफ़ से ये केस मोहम्मद अली जिन्ना ने लड़ा था और इसके बदले में उन्होंने बलोचिस्तान से बहुत मोटी फीस ली थी। लेकिन हैरानी की बात है कि फिर उन्हीं मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान के बनने के एक साल बाद बलोचिस्तान पर हमला करके उसे पाकिस्तान में मिला दिया। और पाकिस्तान और बलोचिस्तान के बीच ये झगड़ा आजतक चल रहा है।
बलोचिस्तान के लोग पाकिस्तान से इसलिए भी नफरत करते हैं क्योंकि पाकिस्तान ने बलोचिस्तान का सिर्फ शोषण किया है। पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल में बलोचिस्तान की हिस्सेदारी 44 प्रतिशत है लेकिन पाकिस्तान की संसद में उसकी हिस्सेदारी सिर्फ 6 प्रतिशत है। पाकिस्तान, बलोचिस्तान के तांबे, गैस और कोयले से हज़ारों करोड़ रुपये कमाता है, लेकिन बलोचिस्तान के लोग आज भी भुखमरी से संघर्ष कर रहे हैं।
बलोचिस्तान की 70 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है और ये दुनिया के उन चुनिंदा इलाकों में आता है, जहां सबसे ज्यादा गरीबी और लाचारी है। और इस अनदेखी के कारण ही बलोचिस्तान पाकिस्तान के खिलाफ है और उससे आज़ादी मांग रहा है।
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