सारण में पिछले पांच वर्ष में प्रतिवेदित विसराल लीशमैनियासिस कालाजार के मरीजों का किया जायेगा फॉलोअप
• कालाजार उन्मूलन की दिशा में अग्रसर है सारण जिला
• पांच साल में जिले में मिले है 1468 कालाजार के मरीज
• सहयोगी संस्थाओं की मदद से किया जायेगा फॉलोअप
श्रीनारद मीडिया, पंकज मिश्रा, अमनौर/छपरा (बिहार):
सारण जिले में कालाजार (विसरल लीशमैनियासिस) के मरीजों के उपचार और निगरानी के लिए स्वास्थ्य विभाग ने एक नई पहल की है। पिछले पांच वर्षों में जिले में 1468 कालाजार मरीजों की पहचान हुई है। इन मरीजों का फॉलोअप किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उपचार के बाद वे पुनः लक्षणों का सामना तो नहीं कर रहे हैं।
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. दिलीप कुमार सिंह ने बताया कि जिले में कालाजार के 1468 मरीजों का लाइन-लिस्ट तैयार कर लिया गया है। अब इन मरीजों का फॉलोअप स्वास्थ्य विभाग और सहयोगी संस्थाओं जैसे डब्ल्यूएचओ, जीएचएस, सीफार, और पिरामल के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाएगा।
इस फॉलोअप का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मरीजों में कालाजार के बाद कोई और लक्षण, जैसे पोस्ट-कालाजार डर्मल लीशमैनियासिस (पीकेडीएल), तो नहीं विकसित हो रहे हैं। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि कालाजार के उपचार के बाद भी कुछ मरीजों में त्वचा संबंधित समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जिसे त्वचा कालाजार कहा जाता है।
चमड़ी कालाजार का इलाज संभव है, लेकिन इसके लिए मरीज को लगातार 12 सप्ताह तक दवा का सेवन करना पड़ता है। सही समय पर उपचार से रोगी पूरी तरह से स्वस्थ हो सकता है।
स्वास्थ्य विभाग का यह कदम कालाजार के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करेगा और रोगियों के बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करेगा।
पूर्ण रूप से किया जा सकता है पीकेडीएल का इलाज :
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. दिलीप कुमार सिंह ने बताया कि पीकेडीएल का इलाज पूर्ण रूप से किया जा सकता है। इलाज के बाद मरीज को चार हजार रुपये का सरकारी अनुदान भी दिया जाता है। पीकेडीएल यानि त्वचा का कालाजार एक ऐसी स्थिति है, जब लीशमैनिया डोनोवानी नामक परजीवी त्वचा कोशिकाओं पर आक्रमण कर संक्रमित कर देता है। जिससे त्वचा पर लाल धब्बा उभरने लगता है। कालाजार बीमारी के ठीक होने के बाद त्वचा पर सफेद धब्बे या छोटी-छोटी गांठें बन जाती हैं। चमड़ी संबंधी लिशमेनिसिस रोग एक संक्रामक बीमारी है। जो मादा फ्लेबोटोमिन सैंडफ्लाइज प्रजाति की बालू मक्खी के काटने से फैलती है।
कालाजार के कारण :
वीडीसीओ अनुज कुमार ने बताया कालाजार मादा फाइबोटोमस अर्जेंटिपस(बालू मक्खी) के काटने के कारण होता है, जो कि लीशमैनिया परजीवी का वेक्टर (या ट्रांसमीटर) है। किसी जानवर या मनुष्य को काट कर हटने के बाद भी अगर वह उस जानवर या मानव के खून से युक्त है तो अगला व्यक्ति जिसे वह काटेगा वह संक्रमित हो जायेगा। इस प्रारंभिक संक्रमण के बाद के महीनों में यह बीमारी और अधिक गंभीर रूप ले सकती है, जिसे आंत में लिशमानियासिस या कालाजार कहा जाता है।
सरकार द्वारा रोगी को मिलती है आर्थिक सहायता :
कालाजार से पीड़ित रोगी को मुख्यमंत्री कालाजार राहत योजना के तहत श्रम क्षतिपूर्ति के रूप में पैसे भी दिए जाते हैं। बीमार व्यक्ति को 6600 रुपये राज्य सरकार की ओर से और 500 रुपए केंद्र सरकार की ओर से दिए जाते हैं। यह राशि वीएल (ब्लड रिलेटेड) कालाजार में रोगी को प्रदान की जाती है। वहीं चमड़ी से जुड़े कालाजार (पीकेडीएल) में 4000 रुपये की राशि केंद्र सरकार की ओर से दी जाती है।
कालाजार के लक्षण :
• लगातार रुक-रुक कर या तेजी के साथ दोहरी गति से बुखार आना
• वजन में लगातार कमी होना
• दुर्बलता
• मक्खी के काटे हुए जगह पर घाव होना
• प्लीहा में नुकसान होता है
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