देशभर में शिक्षकों के खाली पद नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने में बाधा बन रहे
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
राज्य स्कूलों की संख्या
राज्य | स्कूलों की संख्या |
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आंध्र प्रदेश | 12543 |
मध्य प्रदेश | 11035 |
झारखंड | 8294 |
कर्नाटक | 7477 |
राजस्थान | 7673 |
पश्चिम बंगाल | 5437 |
उत्तर प्रदेश | 4572 |
हिमाचल प्रदेश | 3365 |
छत्तीसगढ़ | 5520 |
देश में जब शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू हुआ तो 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिये यह मौलिक अधिकार बन गया। इसके अलावा शिक्षा क्षेत्र में सुधार लाने के लिये केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न योजनाएँ और कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसके बावजूद शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियों का अंबार लगा है तथा ऐसे उपायों की तलाश लगातार जारी रहती है, जिनसे इस क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए जा सकें। मानव संसाधन के विकास का मूल शिक्षा है जो देश के सामाजिक-आर्थिक तंत्र के संतुलन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले कई कारक हैं। देश के शिक्षासंबंधी सभी अध्ययन और सर्वेक्षण इंगित करते हैं कि शिक्षा के साथ विद्यार्थियों का स्तर भी अपेक्षा से नीचे है। इसके लिये सीधे शिक्षकों को दोषी ठहरा दिया जाता है और इस वास्तविकता से आँखें मूँद ली जाती हैं कि विद्यालयों/महाविद्यालयों का बुनियादी ढाँचा और शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था बेहद कमज़ोर है।
देश में एक लाख से अधिक विद्यालय ऐसे हैं, जहाँ केवल एक शिक्षक है। आज़ादी 72 वर्ष बाद भी यदि देश में शिक्षा की यह दशा और दिशा है तो स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के सकारात्मक अभियान में सभी का सक्रिय सहयोग लेना आवश्यक होगा। इस अभियान में सरकार, नागरिक समाज संगठन, विशेषज्ञों, माता-पिता, सामुदायिक सदस्यों और बच्चों सभी के प्रयासों की आवश्यकता होगी। यही समय है जब स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के इस मुद्दे पर एक टीम इंडिया का गठन किया जाना चाहिये।
इसके अलावा, स्कूली शिक्षा में सुधार के लिये शिक्षण विधियों, प्रशिक्षण और परीक्षण की विधियों में भी सुधार करने की ज़रूरत है। अभी शिक्षण की विधियाँ राज्य स्तर से तय की जाती हैं, जिनमें कक्षागत शिक्षण कौशलों को या तो नकार दिया जाता है या उन्हें परिस्थितिजन्य मान लिया जाता है।
शिक्षकों के अच्छे प्रशिक्षण के लिये प्रशिक्षण का दायित्व कर्त्तव्यनिष्ठ, योग्य और क्षमतावान प्रशिक्षकों को सौंपा जाना चाहिये। शिक्षकों के प्रशिक्षण को प्रभावी बनाने, शिक्षण में नवाचारी पद्धतियों का विकास करने सहित परीक्षण/मूल्यांकन की व्यापक प्रविधियाँ तय कर उन्हें व्यावहारिक स्वरूप में लागू करने की दिशा में कारगर कदम उठाने चाहिये।