मुर्शिदाबाद की घटना संवेदनशील व्यक्ति के लिए हृदय विदारक हैं,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पश्चिम बंगाल के हिंसाग्रस्त मुर्शिदाबाद के धुलियान कस्बे में वैसे तो वक्फ कानून का विरोध 08 अप्रैल से चल रहा था, लेकिन शुक्रवार 11 अप्रैल को जुमे की नमाज के बाद इलाके में माहौल अचानक तब बिगड़ गया, जब लगभग 150 लोगों ने मोहल्ले के निहत्थे और मासूम निवासियों जोरदार हमला कर दिया। जब 51 साल की बेबस और लाचार महिला जानकी मंडल ने फूट-फूट कर रोते हुए अपनी आंखों के सामने घटी घटना का टीवी पर वर्णन किया तो सचमुच बहुत दुःख हुआ।
वह बता रही थीं कि बेकाबू भीड़ ने हिंदुओं के घरों और दुकानों में आग लगा दी। पुरुषों को मारा-पीटा और सबकी आंखों के सामने ही उनकी बेटी-बहुओं और माताओं का मान लूटने की कोशिश की। उग्र भीड़ में शामिल आतताइयों ने मोहल्ले वालों को धमकी दी कि भाग जाओ, वरना मारे जाओगे और लाचार मोहल्ले वाले चुपचाप यह सब देखते-सुनते रहे।
फिलहाल, अपने ही देश में मालदा के वैष्णव नगर स्थित एक स्कूल में शरणार्थी बनकर रह रहीं जानकी मंडल ने यह भी बताया कि कैसे वह अपनी इज्जत और जान बचाकर बच्चों के साथ वहां से भागी थीं। बता दें कि यह पीड़ा केवल जानकी मंडल की नहीं, बल्कि वैष्णव नगर के स्कूल में शरणार्थी बनकर रह रहे लगभग 04 दर्जन हिंदू परिवारों की भी है, लेकिन ऐसा सोचना मूर्खता होगी कि मुर्शिदाबाद हिंसा कांड के सबसे अधिक पीड़ित और दुखी धुलियान कस्बे के लोग ही हैं।
और ऐसा सोचने की भूल तो कदापि नहीं करनी चाहिए कि इस भयावह पीड़ा और संत्रास वाली निमर्म घटनाओं की चैहद्दी धुलियान कस्बे तक ही सीमित है, बल्कि सच तो यह है कि मुर्शिदाबाद के विभिन्न इलाकों से आने वाली इस पीड़ा और संत्रास की आर्त चीखें दूर-दूर तक किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए हृदय विदारक रही हैं।
जाहिर है कि दुःख-दर्द, निराशा, हताशा, बेबसी, लाचारी और आक्रोश से भरी बिल्कुल धुलियान के लोगों जैसी ही कहानियां कई अन्य इलाकों की भी है। टीवी चैनलों की भीड़ में एक चैनल पर शमशेरगंज इलाके के प्रसेनजीत दास ने भी रोते-कलपते हुए अपनी आपबीती तथा आंखो देखी घटनाएं टीवी पर बताई। गौरतलब है कि मुर्शिदाबाद हिंसा के मृतकों में से दो लोग प्रसेनजीत दास के परिवार से ही थे।
मृतकों में एक उनका चचेरा भाई हरगोविंद दास और दूसरा भतीजा चंदन था। प्रसेनजीत ने जैसा टीवी पर बताया उसके अनुसार 10 अप्रैल की रात में लगभग 400 लोगों की भीड़ तलवार और छुरियां लहराते हुए मोहल्ले में घुसी। भीड़ में शामिल आतताइयों ने 25 से 30 घरों, होटलों, दुकानों आदि में तोड़-फोड़ की और उन्हें आग के हवाले कर दिया। आंखों में भय भरकर प्रसेनजीत ने बताया कि भीड़ बहुत उग्र थी, इसलिए हमलोग उनसे भीड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाए और जो कुछ वे करते रहे हमलोग चुपचाप देखते रहे।
उक्त घटना के संबंध में एक अन्य बेहद खौफजदां व्यक्ति ने बताया कि भीड़ की उग्रता और आतंक इतना था कि कोई कुछ भी करने में असमर्थ महसूस कर रहा था। इसलिए सभी अपनी-अपनी जान बचाकर भागने में ही लगे रहे। जाहिर है कि ये सभी आपबीती तथा आंखो देखी पीड़ा-व्यथाएं बिल्कुल सच्ची हैं। इनके अलावा, एक और सच, जिसे अब पुूरी दुनिया जान और समझ चुकी है, वह यह कि इतनी बड़ी घटना घट जाने के बाद भी बंगाल सरकार की मुखिया ममता बनर्जी की ‘ममता’ अब तक नहीं जाग पाई है।
जरा सोचिए, कि बंगाल के मुर्शिदाबाद के सुती, धुलियान, शमशेरगंज और जंगीपुर इलाकों में हुई हिंसा में कम-से-कम 03 लोगों की जान चली गई, 15 पुलिसकर्मी घायल हुए और सैकड़ों लोग बेघर हो गए। हालांकि, इस मामले में अब तक 300 से भी ज्यादा लोग गिरफ्तार किए गए हैं। वहीं, कोलकाता हाईकोर्ट के आदेश के बाद हिंसाग्रस्त इलाकों में केंद्रीय सुरक्षा बलों के 1600 जवान भी तैनात किए जा चुके हैं।
हिंसा प्रभावित शमशेरगंज के एक निवासी हबीबउर रहमान ने न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया कि बीएसएफ और सीआरपीएफ की तैनाती के बाद इलाके में माहौल शांत है। वैसे, खबरें यह भी आ रही हैं कि प्रशासन ने लोगों से दुकानें खोलने और अनुशासन बनाए रखने की बात कही है। वहीं, पीड़ित हिंदू परिवारों ने बीएसएफ की स्थायी तैनाती की मांग की है। उनके भीतर उस उग्र भीड़ का ऐसा खौफ समाया है कि उन्हें लगता है कि यदि बीएसएफ हटी तो फिर से स्थितियां खराब हो सकती हैं।
लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा प्रतीत होता है कि ममता बनर्जी मृतकों और घायलों से मिलने उनके आंसू पोंछने के बजाए लगभग एक वर्ष के बाद होने वाले बंगाल चुनाव की गोटियां बिछाने में लगी हैं। जाहिर है कि यदि ऐसा नहीं होता तो वह कोलकाता के नेताजी इंडोर स्टेडियम पहुंचकर इमामों से मिलने के बजाए मुर्शिदाबाद हिंसा कांड के पीड़ित-प्रताड़ित, खौफजदां, बेबस और लाचार भुक्तभोगी परिवारों से मिलने, उनको मदद पहुंचाने और उनका दुःख-दर्द बांटने जातीं।
यदि यह भी मान लें कि उनकी कोई राजनीतिक मजबूरी रही होगी, तो कम-से-कम पीड़ितों को सांत्वना देने और ढाढ़स बंधाने के लिए वह अपना एक प्रतिनिधि ही भेज देतीं, लेकिन अब तक उन्होंने ऐसा भी नहीं किया है। हां, मृतकों के परिवारों को 10-10 लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा उन्होंने अवश्य की है। बहरहाल, उक्त घटना के गर्भ से कुछ बेहद गंभीर सवाल उठे हैं, जो सरकारों और सुरक्षा एजेंसियों को कठघरे में खड़े करने की ताकत रखते हैं।
जरा सोचिए, कि कहां तो हम बांग्लादेश के हिंदुओं की चिंता करते नहीं अघाते थे, लेकिन हम तो अपने ही घर बंगाल के हिंदुओं की रक्षा कर पाने में असमर्थ साबित होने लगे हैं। और तो और, अब जांच एजेंसियां बता रही हैं कि मुर्शिदाबाद हिंसा की योजना तुर्की में बनाया गया था, जिसे बांग्लादेश के रास्ते बंगाल तक पहुंचाया गया। यह भी, कि इसके लिए बाकायदा 02 महीने पहले ही ट्रेनिंग दी गई थी, जिसमें पुलिस से बचकर दंगा भड़काने और स्थानीय मदरसों से मदद लेने की भी बातें शामिल हैं।
इस पर दो बेहद गंभीर सवाल बनते हैं। पहला, यह कि हम हिंदुओं को प्रताड़ित करने के लिए किस मुह से यूनुस को दोष दें। उनसे कैसे कहें कि बांग्लादेश में हिंदू असुरक्षित और पीड़ित हैं, जबकि सच तो यह है कि हिंदू बंगाल में भी सुरक्षित नहीं हैं। दूसरा सवाल, यह कि राज्य और केंद्र की हमारी सुरक्षा और खुफिया एजेंसियां क्या कर रही थीं कि तुर्की में बनी और बांग्लादेश के रास्ते मुर्शिदाबाद तक पहुंची योजना को हम विफल नहीं कर पाए। जब हिंसा के दौरान बांग्लादेश से भारत में 71-150 कॉल किए गए, तब हमने उन्हें इंटरसेप्ट क्यों नहीं किया। वास्तव में ये कुछ सवाल हैं, जिनके उत्तर मिलना अभी शेष हैं।
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