बिना टहनी काटे आम के पेड़ पर चार मंजिला घर बना है,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
राजस्थान में झीलों के शहर उदयपुर का एक अनोखा घर पर्यावरण संरक्षण के लिए देश-दुनिया में एक नजीर बन चुका है। हम बात कर रहे हैं पर्यावरण प्रेमी इंजीनियर केपी सिंह के अनोखे ट्री-हाउस की, जो पिछले 20 साल से एक आम के पेड़ पर टिका हुआ है। सिंह का मकान चार मंजिला हैं। जिसे बनाने के बाद से केपी सिंह ने अब तक इसकी एक टहनी भी नहीं काटी।
पेड़ और घर दोनों सलामत
इंजीनियर केपी सिंह ने अपना यह ट्री हाउस 2000 में बनाया गया था। तब से आज तक यह पेड़ और घर दोनों सही सलामत हैं। उदयपुर की खूबसूरती को निहारने आने वाले पर्यटक इस अनूठे घर की ओर भी आकर्षित होते हैं। इंजीनियर केपी सिंह ने अपने सपनों के इस घर में पेड़ की टहनियों को काटने की बजाय उनका उसी रूप में इस्तेमाल किया है। जैसे किसी टहनी को सोफा का रूप दिया गया है, तो किसी को टीवी स्टैंड का।
हर सीजन में आते हैं आम
इस घर को पेड़ की टहनियों के हिसाब से डिजाइन किया गया है। इसमें किचन, बाथरूम, बेडरूम, डाइनिंग हॉल समेत जमीन पर बने घर की तरह तमाम सुख सुविधाएं हैं। किचन बेडरूम आदि से पेड़ की टहनियां निकलती हैं। इसकी वजह से फल भी घर में ही उगते हैं।
पेड़ को बचाने के लिए पेड़ पर बनाया घर
केपी सिंह ने बताया कि 1999 में उन्होंने उदयपुर में घर बनाने के लिए जमीन ढूंढना शुरू की थी। इस दौरान सुखेर इलाके में कॉलोनाइजर ने उन्हें हरे भरे पेड़ों के बीच एक जमीन दिखाई। कॉलोनाइजर का कहना था कि यहां घर बनाने के लिए पेड़ काटने होंगे। जिस पर केपी सिंह ने कहा कि वह पेड़ काटकर नहीं बल्कि पेड़ पर ही घर बनाएंगे।
कुछ सालों तक यह घर दो मंजिल था। जिसे बाद में बढ़ाते हुए चार मंजिल का बना दिया। केपी सिंह बताते हैं कि पेड़ पर घर होने की वजह से कई बार पशु-पक्षी भी घर में आ जाते हैं। लेकिन अब उनके साथ रहने की भी आदत हो गई है। क्योंकि उन्होंने हमारी जगह नहीं, बल्कि हमने उनकी जगह पर अपना घर बनाया है।
ट्री हाउस की विशेषताएं
यह घर जमीन से 9 फीट ऊपर से शुरू होता है, जो करीब 40 फीट की ऊंचाई तक जाता है। ट्री हाउस के अन्दर जाने वाली सीढ़ियां भी रिमोट से चलती हैं। इस घर को बनाने में कहीं भी सीमेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया। इसे स्टील स्ट्रक्चर, सेल्यूलर और फाइबर शीट से बनाया गया है।
फाइबर शीट का उपयोग कर बनाया घर
केपी सिंह बताते हैं कि ट्री हाउस की डिजाइन को पेड़ की टहनियों के आकार की तरह रखा गया है। इस घर की एक खासियत ये है कि जब तेज हवा चलती है तो ऐसा लगता है कि ये झूल रहा है। खास बात यह भी है कि पेड़ को बढ़ने के लिए जगह-जगह बड़े होल छोड़े गए हैं। ताकि पेड़ की शाखाओं को भी सूर्य की रोशनी मिल सके और वे अपने प्राकृतिक रूप से बढ़ सकें।
ऑक्सीजन के बीच रहकर मिलता है सुकून
इस घर में रहने वाले कमल ने बताया कि देशभर में कोरोना संक्रमण के इस दौर में ऑक्सीजन की किल्लत बढ़ गई है। लेकिन सिर्फ प्रकृति हमें 24 घंटे और निशुल्क ऑक्सीजन उपलब्ध करवा सकती है। ऐसे में प्रकृति को बचाकर प्रकृति के बीच रहकर ही हम स्वस्थ और सुरक्षित रह सकते हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मेरे पिता ने 20 साल पहले इस घर का निर्माण किया। जो आज न सिर्फ हमारे परिवार को, बल्कि आसपास रहने वाले कई सौ लोगों को ऑक्सीजन उपलब्ध करवा रहा है।
- रिपोर्ट में बिहार को सबसे फिसड्डी दिखाया गया है,क्यों?
- देश के शैक्षिक संगठन पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में खास भूमिका निभा सकते हैं,कैसे?
- भारतीय संस्कृति में पर्यावरण को विशेष महत्त्व दिया गया है,क्यों?
- साढ़े तीन एकड़ में फैला है,300 साल पुराना अनोखा बरगद का वृक्ष.
- कैसे हर एक आनलाइन सर्च पर्यावरण को पहुंचा रहा नुकसान…