Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
अप संस्कृति की झलक रक्सौल में भी जीवंत है - श्रीनारद मीडिया

अप संस्कृति की झलक रक्सौल में भी जीवंत है

अप संस्कृति की झलक रक्सौल में भी जीवंत है

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

व्यक्ति के मूल्यों में गिरावट उसके व्यवहार में सन्निहित हो गई है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार में पूर्वी चंपारण के अनुमंडल एवं सीमावर्ती कस्बा रक्सौल अपनी विशेष प्रकार की संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। यह कस्बा पूर्वी चंपारण मोतिहारी के एक अनुमंडल के रूप में विख्यात है। इस अनुमंडल में आदापुर, रामगढ़वा, छोड़दानों और रक्सौल है। रक्सौल नामकरण के बारे में विद्वानों का मत है कि एक अंग्रेज अधिकारी के नाम पर इस स्थान का नाम रक्सौल पड़ा।

नेपाल के बीरगंज से सटे होने के कारण इसका लाभ इस कस्बे को विभिन्न प्रकार से मिलता चला आ रहा है।यहां के जमीन की कीमतें दक्षिणी मुंबई और न्यूयॉर्क के मैनहटन से भी अधिक है। परन्तु यहां ऐसा कुछ नहीं है, जिसके कारण रक्सौल को सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से उत्कृष्ट माना जाए। रक्सौल में नगर परिषद है जो अन्य परिषद की तरह अपने को स्वच्छ बताने की कोशिश कर रहा है। प्रदेश एवं जिला मुख्यालय से संपर्क हेतु सड़कों एवं रेलवे का संजाल यहां रहवासियों में अभिमान ही अनुभूति कराता रहता है।

बहरहाल मैं अपनी दृष्टि व्यक्त करता हूँ। बृहस्पतिवार की सुबह जब मैं बारिश के मौसम में बाहर टहलने के लिए निकला तो मैं घूमते-घूमते नहर चौक, जिसे कोईरिया टोला मेन रोड भी कहते हैं वहां पहुंच गया। मुझे कुछ जलपान करने की तीव्र इच्छा प्रकट हुई। मैं एक झोपड़ी नुमा लिट्टी बनाने वाले दूकान में गया। उसने मुझे देखते ही बोला ‘आईये-आईये आपके लिए एकदम गरमा-गरम जलपान की व्यवस्था है’। मैने कहा आप मेरे लिए एक थाली लिट्टी के नग लगा दें! फिर मैनें पूछा कैसे दे रहे हैं तो उसने कहा ‘आपके लिए तीन नग की कीमत ₹20 है’, मैंने कहा फटाफट दे दीजिए।दूकानदार ने कहा कि देखिये हमारी लिट्टी बहुत देर टकती ही नहीं है, मेरा माल गर्म के साथ-साथ नरम है!

मैं दूकान के एक कोने में खड़े होकर अपनी तीन लिट्टी को निपटाने में लगा रहा। लेकिन मैं देखा कि तुरंत ही वहां एक स्थानीय व्यक्ति आया। उसे देख दूकानदार बोला आप तो मेरे प्रतिदिन के ग्राहक है,आपके लिए चार नग की कीमत ₹20 ही है।मुझे समझने में देर नहीं लगी, देखिये इस व्यक्ति की पारखी नजर को कि इसने यह पहचान लिया की मैं स्थानीय नहीं हूॅ, और वह मुझे ₹20 के तीन नग थमा दिया।

अब आप इसे अप संस्कृति ही कहेंगे कि एक नग अधिक या कम देने से उसके व्यवसाय पर बहुत फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन उसके संस्कारों की निर्मित जिस समाज ने किया है वह मायने रखती है। दूकानदार यह समझता है कि इस प्रकार के कारनामे से मैं आगे बढ़ जाऊंगा और इस तरह के कार्य करते हुए कई लोगों ने अपनी सुख-समृद्धि एवं वैभव को प्राप्त किया है। आप अपने आस-पास भी ऐसे हजारों उदाहरण पायेंगे जोसमाज की संस्कृति को चरितार्थ करती है।

बहरहाल भगवान भला करें इस प्रकार की अपसंस्कृति से। विश्वास है कि हमारा क्षेत्र एक उन्नत समाज के रूप में सामने आएगा।

Leave a Reply

error: Content is protected !!