राजस्थान की धरती पोकरण में बीस साल पहले शुक्रवार के दिन ही परमाणु विस्फोट कर भारत ने दुनिया में अपनी धाक जमाई थी।प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने आज ही (11 मई) के दिन परमाणु परीक्षण कर दुनिया को परमाणु क्षमता का अहसास कराया था। इस मिशन की अगुवाई करने वाले पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम थे, जिन्होंने बहुत ही गोपनीयता से इस कार्य को अंजाम दिया। इससे जासूसी करने वाला अमेरिका भी दंग रह गया।
इस परमाणु कार्यक्रम को ‘स्माइलिंग बुद्धा’ नाम दिया गया था तथा एक एक कर पांच विस्फोट किए गए थे। सभी वैज्ञानिक सैनिक वर्दी में थे ताकि किसी को इस अभियान का पता नही चले। इनमें मिसाइलमैन अब्दुल कलाम भी थे। वह पोकरण अकेले ही जाते थे। परमाणु बमों को सेना के चार ट्रकों के जरिए पोकरण भेजा गया, जिन्हें पहले मुंबई से भारतीय वायुसेना के हवाई जहाज से जैसलमेर बेस लाया गया था।
वैज्ञानिकों ने इस मिशन को पूरा करने के लिए रेगिस्तान में बड़े कुएं खोदे और इनमें परमाणु बम रखे गए। कुओं पर बालू के पहाड़ बनाए गए जिन पर मोटे-मोटे तार निकले हुए थे। धमाके से आसमान में धुएं का गुबार उठा और विस्फोट की जगह पर एक बड़ा गड्ढा बन गया था। इससे कुछ दूरी पर खड़ा 20 वैज्ञानिकों का समूह पूरे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए था।
पोकरण परीक्षण रेंज पर पांच परमाणु बम के परीक्षणों से भारत पहला ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न देश बन गया, जिसने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। परीक्षण के बाद वाजपेयी ने ऐलान किया, ‘आज, 15.45 बजे भारत ने पोकरण रेंज में अंडरग्राउंड न्यूक्लियर टेस्ट किया।’ वह खुद धमाके वाली जगह पर गए थे।
कलाम ने टेस्ट के सफल होने की घोषणा की थी। अमेरिका ने परीक्षण के बाद भारत पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगाया था, लेकिन भारत का हर नागरिक गौरवान्वित होकर हर स्थिति का मुकाबला करने के लिए तैयार था तथा जगह जगह से लोगों ने धनराशि एकत्रित कर प्रधानमंत्री कोष में जमा कराई थी।
भारत में प्रत्येक वर्ष ’11 मई’ को मनाया जाता है। वर्ष 1998 में ’11 मई’ के दिन ही भारत ने अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया था। यह परमाणु परीक्षण पोखरण, राजस्थान में किया गया था। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि प्राप्त होने के उपलक्ष्य में ही राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस मनाया जाता है। यह भी उल्लेखनीय है कि घरेलू स्तर पर तैयार एयरक्राफ्ट ‘हंस-3’ ने भी इसी दिन परीक्षण उड़ान भरी थी। इसके अलावा इसी दिन भारत ने त्रिशूल मिसाइल का भी सफल परीक्षण किया था। यह दिवस हमारी ताकत, कमज़ोरियों, लक्ष्य के विचार मंथन के लिये मनाया जाता है, जिससे प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमें देश की दशा और दिशा का सही ज्ञान हो सके।
भारत में प्रतिभा और क्षमता की कोई कमी नहीं है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफ़ी आगे बढ़ने के बाद भी भारत दुनिया के कई देशों से पिछड़ा हुआ है और उसे अभी बहुत-से लक्ष्य तय करने होंगे। इसीलिए ’11 मई’ का दिन प्रौद्योगिकी के लिहाज से भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इस दिन 1998 में पोखरण में न सिर्फ सफलतापूर्वक परमाणु परीक्षण किया गया, बल्कि इस दिन से शुरू हुई कड़ी 13 मई तक भारत के पांच परमाणु धमाकों में तब्दील हो चुकी थी। भारत ने न सिर्फ परमाणु विस्फोट से अपनी कुशल प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन किया, बल्कि अपने प्रौद्योगिकी कौशल के चलते किसी को कानोंकान परमाणु परीक्षण की भनक भी नहीं लगने दी। अत्याधुनिक उपग्रहों से दुनिया के कोने-कोने की जानकारी रखने वाला अमरीका भी 11 मई, 1998 को भारतीय प्रौद्योगिकी के सामने गच्चा खा गया।
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श्रेष्ठ हथियारों का विकास
भारत ने परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बनकर निसंदेह दुनिया में आज अपनी धाक जमा ली है, लेकिन देश अब भी कई देशों से कई मोर्चे पर पिछड़ा हुआ है। भारत आज अपने दम पर मिसाइल रक्षा तंत्र विकसित करने में सफल हो गया है, लेकिन अभी अमरीका, चीन जैसी व्यवस्था स्थापित करने के लिए इसे बहुत मेहनत करनी होगी। चीन ने राडार की पकड़ में न आने वाला ‘स्टेल्थ’ विमान विकसित कर लिया है, जो अब तक केवल अमरीका के ही पास था। भारत को विश्व शक्ति बनने के लिये दूसरों से श्रेष्ठ हथियार प्रौद्योगिकी विकसित करनी पड़ेगी। ‘अग्नि 5’ और ‘रीसैट1’ की कामयाबी देश के लिये काफ़ी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें अस्सी फीसदी से अधिक स्वदेशी तकनीक और उपकरणों का प्रयोग किया गया है। इस कामयाबी में स्वदेशी तकनीक के साथ-साथ आत्मनिर्भरता की तरफ़ बढ़ते कदम की भी पुष्टि होती है.