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एक संगोष्ठी ऐसा भी....... गोरखपुर विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन - श्रीनारद मीडिया

एक संगोष्ठी ऐसा भी……. गोरखपुर विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन

एक संगोष्ठी ऐसा भी……. गोरखपुर विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

उत्तर प्रदेश में गोरखपुर नगर के दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग और भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया ‘भाई’ ने संयुक्त रूप से संगोष्ठी का आयोजन संवाद भवन के सभागार में आयोजित किया गया। क्योंकि मैं गोरखपुर विश्वविद्यालय हूं। मुझे दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के नाम से 1997 से ही जाना जाता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में मैं शिक्षण का महत्वपूर्ण केंद्र हूं। वैसे तो पूरे उत्तर प्रदेश में आज के समय सबसे अधिक 29 राज्य स्तरीय एवं 6 केंद्रीय स्तरीय विश्वविद्यालय स्थित है। परंतु मेरी स्थापना 1956 में हुई और मैं 1957 से कार्यरत हूं।

आरंभ में एक बहुत बड़े भौगोलिक क्षेत्र का मैं प्रतिनिधित्व करती थी परंतु आज मेरे से कई और विश्वविद्यालय विभिन्न जनपदों में अवस्थित हो गए हैं। आज मेरे विश्वविद्यालय से साढ़े तीन सौ संस्थाएं संबद्ध है। इन दिनों मेरी कुलपति प्रो. पूनम टंडन है। मुझे नैक ग्रेड का भी दर्जा प्राप्त है। मैं गोरखपुर नगर के हृदयस्थली गोलघर के निकट तीन सौ एकड़ के क्षेत्र में फैली हुई हूं। मेरा मुख्य द्वार पश्चिम दिशा में स्थित है, जहां भारत का तिरंगा ऊंचाई के साथ लहरा रहा है। तीस विभागों सहित यहां सात संकाय हैं। छात्र-छात्राओं हेतु आवासीय परिसर, अतिथि परिसर, कर्मचारियों के आवास की व्यवस्था है। यहां छात्र-छात्राओं हेतु सौ से भी अधिक पाठ्यक्रम की व्यवस्था है।

बुद्ध, कबीर, गोरखनाथ, हनुमान प्रसाद पोद्दार के धरती की खुशबू आज विश्व में गोरखपुर के गीता प्रेस के माध्यम से पहुंच रही है।वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोरक्षा पीठाधीश्वर बाबा आदित्यनाथ योगी, जिनके कुशल संचालन में उत्तर प्रदेश जनोन्मुखी क्षेत्र में नई ऊंचाई को प्राप्त कर रहा है, उनका ही यह नगर है। बताया जाता है की स्वतंत्रता के बाद उत्तर प्रदेश में पहले विश्वविद्यालय, गोरखपुर विश्वविद्यालय की नींव तत्कालीन प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने 1950 में रखी और विश्वविद्यालय 1956 में बनकर तैयार हो गया। अप्रैल 1957 में विश्वविद्यालय के पहले कुलपति के रूप में बी.एन.झा ने‌ मेरे पद को सुशोभित किया।
गीता प्रेस के संस्थापक हनुमान प्रसाद पोद्दार एवं सरदार मजीठिया ने इस विश्वविद्यालय के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, न्यूज़ एंकर चित्रा त्रिपाठी, सांसद चंद्रबली यादव, पूर्व राजपाल शिव प्रताप शुक्ल, पूर्व केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी, पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह, सांसद जगदंबिका पाल, साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी,प्रो. परिचय दास सहित कई ख्याति प्राप्त लब्ध विद्वान इस विश्वविद्यालय की धरोहर हैं। प्रकृति के सुरम्य वातावरण में गोमती नदी के स्थल, रेलवे स्टेशन एवं बस पड़ाव के निकट यह विश्वविद्यालय स्थित है विश्वविद्यालय परिसर में सागवान के वृक्षों की हरियाली शैक्षिक वातावरण को और मनोरम बनाती है।

संगोष्ठी का हुआ आयोजन।

एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने हेतु मैं 29 दिसंबर 2024 को गोरखपुर विश्वविद्यालय में उपस्थित हुआ। पूरे परिसर को गहन तौर पर देखा- परखा, क्योंकि मैं सुबह ही परिसर में पहुंच गया था और कार्यक्रम 11:30 से प्रारंभ हुआ। इतने समय में मैं कई छात्रों से मिला, गार्ड भैया लोगों से वार्ता हुई। परिसर के खेल मैदान में खेलने वाले बाहरी बच्चों से बातचीत किया। नाम न बताने की शर्त पर एक अध्यापक ने गोरखपुर विश्वविद्यालय के पिछले पच्चीस-तीस वर्षों के इतिहास पर उन्होंने गंभीरता के साथ प्रकाश डाला।
परंतु यह मेरी अवधारणा है कि विश्वविद्यालय में विद्या के भाव की शून्यता है। अब विश्वविद्यालय केवल डिग्री देने वाला संस्थान बन गया है।
छात्रों के लिए आवासीय परिसर में भोजनालय की व्यवस्था नहीं है, छात्र अपने से ही भोजन पकाते हैं। विश्वविद्यालय में नाम मात्र के बच्चे पुस्तकालय में अध्धयन करने हेतु जाते हैं।
एक समय में गोरखपुर में हिंसक प्रवृत्तियों का केंद्र बने इस विश्वविद्यालय में स्वर्गीय हरिशंकर तिवारी एवं स्वर्गीय वीरेंद्र शाही की अदावत को समझा जा सकता है। इसका पूरा वृतांत पूर्व डीआईजी रहे आईपीएस राजेश पाण्डेय ने अपनी पुस्तक ‘वर्चस्व’ एवं ‘Operation Bazooka’ में किया है।

बहरहाल मेरा निष्कर्ष है कि एक सुंदर सौम्य पठन-पाठन के वातावरण से विश्वविद्यालय आज कोसों दूर है। संगोष्ठी की व्यवस्था नितांत दयनीय है। संगोष्ठी के नाम पर केवल खानापूर्ति की जाती है। अपने मित्र, शिक्षक, दोस्त, पहचान वाले को संगोष्ठी में बुलाकर रस्म अदायगी की जाती है।
समय पर डिग्रियां बांटने वाले केंद्र के रूप में आज विश्वविद्यालय प्रसिद्ध है। यही कारण है कि विश्वविद्यालय आज मानविकी एवं भाषा संकाय के सौ विश्वविद्यालयों में गोरखपुर विश्वविद्यालय का नाम नहीं है।

आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि समय का चक्र घूमेगा, विश्वविद्यालय में विद्या की देवी स्थापित होगी, औपचारिकताएं समाप्त होगी, शिक्षा का रूप विद्या में परिवर्तित होगा। योग्य शिक्षक, कुशल शोधार्थी, छात्र-छात्रा विद्या ग्रहण करके अपने-अपने क्षेत्र में प्रथम लहराएंगे।

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी की विसंगतियां

– यह कौन सी संगोष्ठी है जिसमें शोधार्थियों द्वारा शोध पत्र का वाचन नहीं किया गया,
– एक भी संकाय एवं विभाग के पांच छात्र भी संगोष्ठी में उपस्थित नहीं रहे,
– आपसी संबंधों को नया कलेवर देने के लिए संगोष्ठी का आयोजन किया गया,
– अतिथियों को कार्यक्रम के पहले ही प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर दिया गया,
– अंग्रेजी विभाग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित समारोह में एक भी छात्र अंग्रेजी विभाग का नहीं था,
– सभागार में पांच श्रोताओं को छोड़कर सभी अपने-अपने परिधान, भाव-भंगिमा, साज- सज्जा, अपना प्रमोशन करने, फोटो खिंचवाने के लिए ही आए थे,
– श्रोताओं और दर्शकों द्वारा इतना शोर किया जा रहा था कि विद्वान वक्ताओं की बात सुनाई नहीं दे रही थी,
– सारे श्रोता अपनी बिरादरी से या मित्र मंडली से एक खास प्रकार के मनोरंजन हेतु यहां उपस्थित हो गए थे,
– किसी भी छात्र एवं शोधार्थियों का पंजीयन संगोष्ठी हेतु नहीं किया गया, ना ही वह अपना शोध पत्र पढ़ सके, ना ही उनके ठहरने और भोजन की कोई व्यवस्था थी,
– आपने कार्यक्रम का आयोजन किया था, मुझे बुलाया था, मैं भी संगोष्ठी का आयोजन किया हूं आपको बुलाया हूं, इसे याद रखिएगा, मुझे भी बुलायेगा। इस आधार पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया,
– गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्थान संसाधनों का दुरुपयोग किया गया,
– संगोष्ठी द्वारा विभाग के आर्थिक पक्ष को कमजोर किया गया,
– औपचारिकता का निर्वहन किया गया,
– आप नाटक का मंचन अपने विश्वविद्यालय के छात्रों के द्वारा करवाते, यह ठीक था, परंतु अपने व्यक्तिगत संबंध को बढ़ाने के लिए बाहर के कलाकारों को बुलाकर यह मौका दिया,
– भावुकता से भोजपुरी का भला नहीं होगा, इसके लिए परिश्रम एवं उत्पादकता पर कार्य करना होगा,
– भोजपुरी की सैकड़ो संस्थाएं अपने संस्कृति के गुणगान में लगी हुई है, वह केवल इसके आठवीं अनुसूची में शामिल होने की बात करती हैं, परंतु तर्क नहीं देती कि आगे क्या होगा?
– केवल सरकारीकरण से भाषा व बोली बढ़ती और बचती नहीं है, यह दिनचर्या से, हमारी कृति से, हमारे कार्य से आगे बढ़ती है।
बहरहाल हमारे इस पोस्ट को आप यह कह कर खारिज कर दें कि यह सत्य से परे है! परंतु यह विश्लेषण समय एवं परिस्थिति की अकाट्य हकीकत है सच्चाई है‌,आप इससे मुंह मोड़ नहीं सकते है।

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