वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा “त्रिभाषा सूत्र और भाषाई विवाद” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

दिनांक 16 मार्च 2025 को भारतीय समय सायं 6 बजे विश्व हिंदी सचिवालय,केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद,वातायन यूके और भारतीय भाषा मंच के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा “त्रिभाषा सूत्र और भाषाई विवाद” विषय पर साप्ताहिक संगोष्ठी आयोजित किया गया ।
प्रप्रथम आदरणीय प्रो नागेंद्र कुमार शर्मा जी ने पूर्व पीठीका में विषय की महत्ता पर जोर देते हुए बताया कि त्रिभाषा सूत्र का उद्देश्य सभी भारतीय भाषाओं को जोड़ना है। और संगोष्ठी में आगमित सभी अतिथियों, देश विदेश से जुड़े स्रोताओं का आत्मीय रुप से स्वागत किया।

तत्पश्चात केरल से शिक्षा और संस्कृति उत्थान न्यास के संयोजक आदरणीय श्री ए विनोद जी ने बताया कि भाषा एक पहचान है और शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि तमिलनाडु में हिंदी को लेकर क्या स्थिति है और कैसे लोगों को रोजगार देने के संदर्भ में हिंदी सिखाने के फायदे हैं। इसके उपरांत नई दिल्ली विश्वविद्यालय के आधुनिक भाषा एवं साहित्यिक अध्ययन विभाग के तमिल भाषा प्रो आदरणीय डॉ उमा देवी जी ने अपनी संबोधन में सुब्रमण्यम भारती जी की हिंदी सेवी की प्रासंगिकता को बताते हुए कहा कि तमिलनाडु में हिंदी का विरोध होने के बावजूद भी वहां हिंदी बोलने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है। उन्होंने बताया कि कैसे लोग मातृभाषा के प्रति संवेदनशील हैं।

तत्पश्चात संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित ओसाका विश्वविद्यालय जापान के प्रो और भारत सरकार से पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित आदरणीय श्री तोमियो मिजोकामी‌ जी ने त्रिभाषा सूत्र के सन्दर्भ में अपने अनुभव साझा किए और कहा कि हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाएँ महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कोठारी भाषा आयोग के बारे में बताते हुए सुझाव दिया कि एक वैकल्पिक तीसरी भाषा होनी चाहिए ।

तत्पश्चात वैश्विक हिंदी परिवार के कार्यक्रम सूत्रधार,मार्गदर्शक और अध्यक्ष आदरणीय श्री अनिल जोशी जी ने सभी अतिथि वक्ताओं का वक्तव्य का सराहना किया । और उन्होंने भाषाओं के इतिहास की महत्वपूर्ण बातें साझा की और कहा कि भाषा को केवल भाषा के नजरिए से नहीं देखना चाहिए। उन्होंने अपनी एक कविता भाषा के नाम पर….सुनाते हुए बताया कि कैसे भाषा एक सभ्यता को परिभाषित करती है। अंत में उन्होंने भाषा को सद्भावना, भाईचारा और संवेदनशील से विचार करने से भाषा की गुत्ती को सुलझाए जाने की बात कही । और उनके सानिध्य में कार्यक्रम बहुत ही सफल संपन्न हुआ ।

तत्पश्चात अमेरिका के पेनसिलवेनिया विश्वविद्यालय के पूर्व प्राचार्य आदरणीय प्रो सुरेन्द्र गंभीर जी ने कहा कि भाषा सीखना आवश्यकता पर निर्भर करता है और उन्होंने इसकी शैक्षिक दृष्टि पर जोर दिया कि सभी को हिंदी,अंग्रेजी और अन्य भाषाओं की आवश्यकता है।तत्पश्चात रविन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय भोपाल के निदेशक डॉ जवाहर कर्नावट जी ने सभी राज्यों में हिंदी भाषा की विकास और कार्यान्वयन की स्थितियों पर प्रकाश डाला ।इसके बाद नई दिल्ली इग्नू के पूर्व प्राचार्य और भाषाविद आदरणीय डॉ वी आर जगन्नाथन जी ने भाषा की त्रिभाषा सूत्र और राजभाषा की राजनैतिक पक्ष पर प्रकाश डाला।

अंत में संगोष्ठी में अध्यक्ष स्थान ग्रहण किए आंध्रप्रदेश के केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति आदरणीय डॉ टी वी कट्टीमनी जी ने संभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमें सब भाषाओं का सम्मान करना चाहिए और भारतीय ज्ञान परंपरा को सुरक्षित रखना चाहिए। अंत में उन्होंने हिंदी भाषा की भारतीय विपणन क्षेत्र में आर्थिक रुप से और व्यावहारिक रूप से निसंदेह सफल होने की बात पर प्रकाश डाला।

रेल मंत्रालय के पूर्व निदेशक राजभाषा आदरणीय डॉ वरुण कुमार जी ने भाषाओं के महत्व, शिक्षा और सामाजिक प्रभाव पर विभिन्न दृष्टिकोण से अपने बहुमूल्य विचारो को प्रस्तुत करते हुए कार्यक्रम का बहुत सुंदर और रोचक तरीके से संचालित किया।

अंत में त्रिपुरा विश्वविद्यालय के प्राचार्य तथा वैश्विक हिंदी सचिवालय मारीशस के पूर्व महा सचिव आदरणीय डॉ विनोद कुमार मिश्र जी ने संगोष्ठी में उपस्थित सभी अतिथियों और स्रोताओं का आत्मीय रुप से आभार प्रकट किया।

कार्यक्रम में लंदन से वातायन यूके समूह की संस्थापिका और संरक्षक दिव्या माथुर जी, अमरीका से डॉ शैलजा सक्सेना जी, सुरेन्द्र गंभीर जी, विजय विक्रान्त जी, जापान से तोमियो मिजोकामी‌ जी, डॉ वेद प्रकाश जी, युक्रेन से यूरी बोटविन्किन जी, डॉ उल्फत जी, डॉ राकेश पाण्डेय जी,डॉ जयशंकर यादव जी,डॉ मोहन बहुगुणा जी, श्री नारायण कुमार जी, श्रीमती सुनिता पाहुजा जी, श्री अशोक बात्रा जी,सुश्री सुअंबदा कुमारी जी,श्रीमती किरण खन्ना जी, डॉ वेंकटेश्वर राव जी, श्री विजय नगरकर और बिहार के पत्रकार सोनू आदि देश विदेश के विद्वानों और स्रोतागण उपस्थित रहकर संगोष्ठी की गरिमा बढ़ाई।तकनीकी सहायता: आदरणीय डॉ मोहन बहुगुणा और श्री कृष्ण कुमार मिश्र।

संगोष्ठी में,भारत में भाषा नीति के महत्व पर मुख्य वक्ताओं द्वारा चर्चा की गई है। इसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीतियों के अनुसार बहुभाषावाद को समर्थन और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता पर जोर दिया गया । वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भाषा किस प्रकार विभिन्न समुदायों को एकजुट कर सकती है । साथ ही पहचान और सांस्कृतिक विविधता से संबंधित समकालीन मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता पर भी चर्चा की गई । भारत में हिंदी भाषा, भारत की सभी राज्यों के हिंदीतर भाषीयों को जोड़ने वाली “सेतु” का काम कर रही है।

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