जेएनयू भविष्य की अनिश्चितताओं का स्रोत।
विचारों की स्वतंत्रता जेएनयू की विशेषता।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जीवन तमाम संभावनाओं के साथ
एक अंतहीन प्रतीक्षा है
न संभावनाओं का अंत है
न ही प्रतीक्षा का!
जेएनयू में एक कहावत है-आप अमेरिका जा सकते हैं और मुनिरका भी।
नमस्कार। एक बार पुन: 23 वर्ष पुरानी याद को टटोलते हुए पुस्तक के माध्यम से चित्र को उपस्थित करता जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की याद में प्रस्तुत है एक संभावना। पुस्तक का नाम ‘615 पूर्वांचल हॉस्टल’ है। पुस्तक के लेखक राघवेंद्र सिंह हैं जो 2013 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के पदाधिकारी हैं। आप मूल रूप से उत्तर प्रदेश में महाराजगंज जिले के रहने वाले हैं। आपने स्नातक गोरखपुर विश्वविद्यालय और परास्नातक की पढ़ाई जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से किया है।
इस पुस्तक के कई आयाम है। इन्हीं में से एक आयाम प्रेम का चित्रण अनूठे ढंग से किया गया है। पुस्तक में विश्वविद्यालय के ढाबे, पुस्तकालय, छात्रावास, चाय की चुस्की,रिंग रोड पर टहलने, 615 नंबर की बस से सरोजनी नगर से बाजार करना, एम.ए, एम फिल, पीएच.डी की पढ़ाई, चुनाव का दिलचस्प वृतांत और चाचा की विभिन्न प्रकार की भंगिमों का वर्णन है।
जेएनयू के लिए एक बार इस पुस्तक को अवश्य पढ़ाना चाहिए। लेखक राघवेंद्र सिंह जी की लेखनी 222 पृष्ठों में लिपिबद्ध होकर 10 भागों में विभाजित है।
एक यक्ष प्रश्न है कि जेएनयू क्या है? क्या यह एक भूमि का टुकड़ा है जो भौगोलिक और ऐतिहासिक रूप से भारत वर्ष में अवस्थित है। जेएनयू भारत माता की भूमि पर ही नहीं वरन धरती माता के स्थल पर अवस्थित एक ऐसा शैक्षिक संस्थान जिसमें विचारों की स्वतंत्रता है। मानविकी एवं भाषा संकाय के विद्यार्थियों के लिए यह कांची-काशी-मथुरा-कामाख्या है। मानविकी पढ़ने वाले छात्रों का जेएनयू में पढ़ने का सपना होता है। जेएनयू की सबसे बड़ी उपलब्धि उसकी स्वतंत्रता है जो उसके विचारों में प्रकट होती है। आप अपने विचार को तर्क के साथ यहां अवतरित कर सकते हैं। भारत की नदियों के नाम पर यहां के छात्रावास हैं। ब्रह्मपुत्र या पूर्वांचल छात्रावास से लेकर गंगा छात्रावास तक के भवनों की अपनी विशेष कथा है। केसी, ढाबा, गंगा ढाबा, खुला ऑडिटोरियम,615 नंबर की बस सेवा इसकी पहचान है।
देश को हजारों प्रशासनिक सेवक, उद्यमी, व्याख्याता देने वाला यह भारतवर्ष का प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय यह अन्य संस्थानों से अवश्यक अलग है। जेएनयू के जीवंत प्रत्येक क्षण को जीने वाले छात्र इसके गतिविधि को कलम से कैद कर देना चाहते हैं। जेएनयू उस प्रत्येक ‘शेखर'(इस पुस्तक का एक पात्र) की कहानी है जिसके जीवन को इस संस्थान ने गढ़ा है। देश के अलग-अलग प्रान्तों से आए छात्र उनकी अलग प्रकार की संस्कृति, चिंतन शैली, रहन-सहन भारत की विविधता को प्रस्तुत करते हैं।
क्योंकि संसार में प्रत्येक वस्तु व पदार्थ का अपना आदर्श है और आदर्श के लिए प्रत्येक व्यक्ति अपने स्तर से पुरजोर प्रयास करता है। जीवन की असफलताओं का विश्लेषण जेएनयू परत-दर-परत करता है, वह चाहे राजनीति में हो, प्रेम में हो, यूपीएससी में हो या अन्य विचारधारा की लड़ाई में, इसका गवाह यहां के ढ़ाबे, सड़के, भवन और कैंटीन होते है।
जेएनयू में सपने की अनंत संभावना को भी पूरा किया जा सकता है। व्यक्ति यहां के वातावरण में अपने दिवा स्वपन को भी पूरा कर सकता है।
” मतलब यह की संबंध भी एक जीवन की तरह होते हैं जब तक वह परिपक्व नहीं हो जाते तब तक उनके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि साथ दिखाने का मतलब एक दूसरे की उपस्थिति में सामने वाले की तमाम कमियों और बुराइयों के साथ स्वीकार लेना है जब हम किसी के साथ दिखना शुरू करते हैं तो अपने खुद के मन से तो हम अपनी स्वीकृति, अस्वीकृति और मौन की एक पूरी प्रक्रिया से गुजर चुके होते हैं।”
सदियों से बौद्धिकता जेएनयू की एक ऐसी चादर है जो कई बुराइयों को ढ़क लेती है। बकैती जेएनयू की एक विशेष संस्कृति है इसे ज्ञानवर्धन के साथ-साथ समय पर भी ब्रेक लगता है। यहां के गंगा ढाबा का मतलब जेएनयू को पीढ़ी दर पीढ़ी एक बड़ा पहचान से बांधता धागा। प्रत्येक जेएनयू वाले के हिस्से वाली जिंदगी में कुछ हो या ना हो गंगा ढाबा जरूर रहेगा। ढाबा एक अटल सत्य है चाय पीने वाले हर साल कुछ नए बढ़ जाते हैं तो कुछ छूट भी जाते हैं। चाय जीने जीने वालों की संजीवनी है, कुछ करना है तो चाय पीनी है, कुछ नहीं करना है तो भी चाय पीनी है। चाय समाजीकरण का एक जरिया भी है। जेएनयू में चाय ना हो गई अमृत हो गई, उठते, सोते, रोते-गाते, हंसते चाय का सेवन रामदेव बाबा का च्यवनप्राश हो गया। चाय जेएनयू की संजीवनी बूटी है इसके बिना सब मृतप्राय है।
पुस्तक में चुनाव का रोचक वर्णन जेएनयू की विशेषता को दर्शाता है।
लोकतंत्र का एक अपना दुर्भाग्य है कि यह अक्सर भीड़तंत्र में तब्दील हो जाता है।लोग या तो वोट डालने खुद से जाते हैं या डलवाने ले जाए जाते हैं। जो वोट नहीं डालते उनकी प्रासंगिकता पर प्रश्न चिन्ह सा लग जाता है। विरोध,बगावत और बंद मुट्ठी जेएनयू के राजनीति की पहचान रही है। समर्थन और विरोध दोनों मरने की हद तक पहुंच जाता है। लोकतांत्रिक आदर्श के एकदम करीब पहुंच जाता है, जेएनयू का चुनाव। जेएनयू की राजनीति में दिलचस्पी लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम हर मुद्दे पर बोलने लायक ज्ञानी तो जरूर बना देता है।
जीएनयू अपने स्थापना काल से ही व्यवस्था से परिवर्तन को लेकर चर्चाएं कर रहा है, क्योंकि जब तक छात्र व व्यक्ति यह समझेगा कि वह इस व्यवस्था का अंग है तब तक परिवर्तन हेतु क्रांति नहीं करेगा इसलिए जागरूक होना आवश्यक है। हम सभी अपने विचारधारा के माध्यम से जागृति फैला रहे हैं। जिंदगी का हर वह रंग जिसके बारे में आपने सोचा होगा वह आपको यहां आकर प्राप्त होगा। प्रत्येक वह चीज जो बहस के लिए महत्वपूर्ण है उसे पर यहां चर्चाएं निर्वाध रूप से होती है।
जेएनयू की सुंदरता के बारे में क्या कहने! अमलतास के पेड़ मानो जीवन में आने वाले प्रत्येक आदमी को एक स्वप्न लोक में आने का आभास कराते हैं। प्रत्येक वर्ष कुछ दिनों तक यह स्वप्नलोक बनाकर अमलतास के पेड़ हर स्टूडेंट को जेएनयू की खूबसूरती के प्रेम में गहरे जकड़ लेता है, इतने गहरे की फिर कोई बाहर नहीं जा सकता। इस सुंदरता को देखने के बाद फिर कोई छात्र कहीं और का नहीं रहता। यहां की होली के बारे में क्या कहने! जवां दिलों का त्यौहार है यह। और कोई जेएनयू में पढ़कर जेएनयू की होली से कैसे दूर रह सकता है! जिसने जेएनयू में होली नहीं खेली वह जेएनयू का छात्र हो सकता है, जेएनयू वाला कतई नहीं।
इसलिए कहते हैं कि जेएनयू की होली और ‘चाट सम्मेलन’ अपने आप में अनूठा है। जेएनयू में रहते हुए चाट सम्मेलन देखने नहीं गया वह समझो कभी जेएनयू की आत्मा से उसका एकाकार नहीं हुआ। होली, चाट सम्मेलन, चुनाव, फूड फेस्टिवल, मेस डिबेट, नारेबाजी, ढाबेबाजी यह सब जेएनयू के जलसे हैं। जिसमें जेएनयू का छात्र रहते हुए भी इन जलसों का जश्न नहीं मनाया वह जेएनयू में रहते हुए भी बाहरी ही रहा होगा। चाट सम्मेलन 80 के दशक के आखिर में शुरू हुआ। यह सम्मेलन मूलत: जेएनयू में अंग्रेजी अभिजात्य के विरुद्ध विद्रोह था। दरअसल प्रत्येक जगह की तरह जेएनयू में भी अंग्रेजी भाषी और हिंदी भाषी समुदाय के बीच एक खाई रही है और आज भी है। भाषाईं अभिजात्य एक समस्या हो ना हो एक तथ्य तो है ही, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता।
जेएनयू से कुछ ही दूरी पर एक मोहल्ला है बेर सराय। जहां जवाहर बुक सेंटर है यह केंद्र यह भी बता देता है कि कौन से विकल्प विषय से लेकर आप यूपीएससी में सफलता प्राप्त कर सकते हैं और क्यों। वहीं दिल्ली का मुखर्जी नगर हिंदी मीडियम से यूपीएससी की तैयारी करने वालों के लिए अवैध दुर्ग है। न जाने कितने लड़के-लड़कियां प्रत्येक वर्ष एक स्वर्णिम भविष्य के लिए भारत की हिंदी भाषा क्षेत्र से यहां आकर छोटे-छोटे खोली में बस जाते हैं, और शायद इतने ही लौट भी जाते हैं। जबकि राजेंद्र नगर अंग्रेजी माध्यम वाले अभिजात्य वर्ग के लिए महत्वपूर्ण जगह है।
जेएनयू की बगिया में कई फूल है, इनके कई आयाम भी है। इस पुस्तक में प्रेम की प्रकाष्ठा की अनंत व्याख्या की गई है, जिसमें सुखांत के साथ दुखांत के पुट भी है। जीवन के कई रंग इसमें दिखाई देते हैं। पात्रों के आपसी बातचीत में यह उद्धृत है कि मां पिता के बीच शादी थी प्यार नहीं पैरंट की पूरी पीढ़ी बहुत बड़े एकतरफा समझौते के कारण बची रही। वह पूर्ण रूप से पितृसत्तात्मक व्यवस्था थी, उसमें महिलाओं के लिए जीवन कहां था? ना तो सोशल फ्रीडम न ही सेक्सुअल फ्रीडम? प्रत्येक व्यक्ति का पूर्ण समर्पण सिर्फ स्वंय के लिए होना चाहिए, किसी दूसरे व्यक्ति के लिए समर्पण कहीं ना कहीं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ समझौता है।
मेरे लिए तुम क्यों करना चाहते हो, जो करना है खुद के लिए करो, मेरा क्या हम एक दूसरे के साथ हैं अभी, पर कल कहीं और होंगे। क्षणिक आवेश और आकर्षण के लिए तुम अपना जीवन दाव पर क्यों लगाते हो। जिंदगी इससे बढ़कर है न और नारी पुरुष और स्त्री के खेल से परे जाकर अगर कुछ कर सको तो फिर तुम कुछ भी कर सकते हो। जरूरी नहीं जो संबंध हमें कुछ दिनों तक बहुत प्रिय लगे, हम उसे जिंदगी भर के लिए अपना लें। क्योंकि व्यक्ति का अंह तुष्ट होना ही उसके जीवन की सार्थकता है। धन और सम्मान भी तो अहं तुष्टि का ही साधन है।
जब प्रेम श्रद्धा के भाव में बदल जाए तो प्रेमी को संसार की सारी चीज प्रेम के प्रति के रूप में सौम्य एवं पवित्र दिखाई पड़ती है।
लेखक पुस्तक आरंभ करने से पहले यह उद्धृत करते हैं कि वह स्थान जिसका होना इस पुस्तक का आधार बना और उन लोगों का जिनका जिया हुआ इस कथा का आधार बना है। यह पुस्तक जेएनयू और जेएनयू वालों के लिए समर्पित है।
बहरहाल, विचारों की गंगोत्री में डुबकी लगाने वाले विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र ने विचार से पुस्तक को दूर रखा है।
पुस्तक आपको जेएनयू के कई आयाम से अवश्य परिचित कराती है। यह इस ग्रंथ की प्रासंगिकता है।