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उठेगा अवश्य कोई तूफान, चींटियां घर जो बनाने लगी हैं - श्रीनारद मीडिया
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उठेगा अवश्य कोई तूफान, चींटियां घर जो बनाने लगी हैं

उठेगा अवश्य कोई तूफान, चींटियां घर जो बनाने लगी हैं

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सिने टॉकिज 2024 : सिने सृष्टि,भारतीय दृष्टि

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

टॉलीवुड,बॉलीवुड, मॉलीवुड जैसे विभिन्न खंडित दृष्टि की बजाय समृद्ध परंपरा,गौरवशाली इतिहास, संस्कृति, विरासत, आध्यात्मिकता और राष्ट्रीयता के आधार पर भारतीय सिनेमा जगत आगे पल्लवित हो इस दृष्टि विकास को ध्यान में रखकर संस्कार भारती द्वारा मुंबई के नेशनल स्टॉक एक्सचेंज परिसर में 13 से 15 दिसम्बर 2024 तक सिने टॉकिज का आयोजन किया गया। विदित हो की 2022 में प्रारंभ हुए सिनेमा विमर्श के आयोजन का यह दूसरा संस्करण था।

भारतीय सिनेमा में स्व की खोज ( Bhartiya Sinema : Woods to Roots ) थीम पर केंद्रित फिल्म विमर्श के इस महाकुंभ का उद्घाटन सर्वश्री सचिन पिलगांवकर, आशीष चौहान, खुशबू सुंदर, अभिजीत गोखले, भारती एस. प्रधान, डॉ. रवींद्र भारती व अभय सिन्हा द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन कर किया गया।

सुश्री मृणमयी भजक के कुशल संचालन में नियोजित इस उद्घाटन सत्र में डॉ.निशित भंडारकर ( ) के स्वागत संबोधन के बाद संस्कार भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री श्री अभिजीत गोखले जी ने इस वृहद सिनेमा सृष्टि के आयोजन के पीछे के विषय वस्तु को प्रस्तुत किया।

उन्होंने कहा की भारत की सभी स्थानीय भाषा ( मराठी, तेलगु,मलयालम,पंजाबी, उड़िया या अन्य कोई और ) में बनने वाला सिनेमा यह भारतीय सिनेमा ही है। भारत के सभी भाषाओं में बने सिनेमा की स्वतंत्रता आंदोलन में सहभागिता रही है। इन सभी स्थानीय भाषाओं ने अपनी भूमिका द्वारा भारत के सिनेमा जगत की समृद्धि में बड़ा योगदान दिया है। इसलिए सभी इसके अभिन्न अंग है। भारतीय कहानियों को प्रस्तुत करने का यह सशक्त माध्यम है और सही अर्थों में भारतीयता व्यक्त करने के लिए सभी का मिलकर योगदान रहा है। इसलिए हमें यदि भारतीय सिनेमा का प्रतिबिंब खड़ा करना है तो हमें वुड्स से यह यात्रा रूट्स की ओर ले जाना होगा।

सिनेमा कथा कहने और दिखाने की नई शैली है। पैसा केवल माध्यम नहीं है, कथा नहीं है तो सिनेमा नहीं बन सकेगा। सिनेमा कहानी बताने का उत्सव है। दृश्य माध्यम होने के कारण इसका प्रभाव दीर्घकालिक है। कहानियों को नई प्रासंगिकता के साथ रिलवेंस करते हुए प्रस्तुत करना यह सिनेमा का उद्देश्य होना चाहिए।

1982 में आई फिल्म ‘वो सात दिन’ और 2000 में आई ‘हम दिल दे चुके सनम’ दोनों में मूल्य वही है। यानि भारत के शाश्वत मूल्यों को बताने की शैली समय अनुसार बदल जाएगी लेकिन मूल्य वही रहेंगे।

कुछ साल पहले MAX प्लेयर पर आई रामायण वेब सीरीज में सीता स्वयंवर का प्रसंग आता है। बाहर सीता स्वयंवर पर टिप्पणी की जाती है स्त्रियों को कोई अधिकार नहीं था। सीरीज में दिखाया गया कि राम जब धनुष तोड़ने का प्रण पूरा करते हैं तो उन्हें सीता के गले में वरमाला डालने को बोला जाता है। इस पर श्रीराम जी कहते हैं – रुको जरा, पहले सीता जी से भी तो उनकी इच्छा पूछ लो । इसपर सीता जी कहती हैं, मैने नगर में उनकी वीरता के साथ व्यवहार,चरित्र, बड़ों के प्रति आदर, छोटों के लिए स्नेह, मित्रों के प्रति मित्रता, विनम्रता आदि विविध गुणों को सुना और देखा है। इसलिए मेरे मन में स्वाभाविक इच्छा थी कि ऐसे बहुविध गुणों से युक्त श्रीराम जी ही मेरे स्वयंवर के प्रण को पूरा कर मेरा हाथ थामे।

वर्षों बाद आज के परिप्रेक्ष्य में यह बताने की जरूरत है। भाव वही है लेकिन आज की प्रासंगिक शैली बदल गई है।

कहानियों में आज यूनीकनेस लाने की जरूरत है। 6 मिनट की शॉर्ट मूवी। रिक्शावाला मनचाहा किराया लेता है। यात्री को जो लगे वह दे। प्रामाणिकता दिखाने की शैली ।

मराठी फिल्म का उदाहरण। गोष्ठ एका पैठणीची। निर्देशक शांतनु रोड़े । एक परिवार के प्रामाणिकता से जीवन यापन को इसमें प्रस्तुत किया गया है।

सिनेमा निर्माण लक्ष्य के पुनःस्मरण की आज ज्यादा जरूरत है। केवल नफा नुकसान लक्ष्य नहीं। केवल फ्राइडे टू मंडे के आधार पर आकलन नहीं तो उसका समाज पर क्या परिणाम होता है, इससे भी आकलन होना चाहिए। 12th फेल, सैम बहादुर, श्रीकांत, स्वर गंधर्व आदि अच्छी फिल्में आ रही है ।

विभिन्न लोक परंपराओं का गौरव। स्व की ओर की यात्रा का एक और महत्वपूर्ण बिंदु है। दक्षिण की फिल्में इसका प्रतिनिधित्व कर रही है । शबरीमला परंपरा पर आई “मलिकापुरम” और “कांतारा” इसके बेहतरीन उदाहरण है । पुष्पा में जो परंपरा है वह जनमानस को पसंद आ रहा है।

व्यवस्थाओं की त्रुटियों दिखाने के साथ उस पर भरोसा होने लायक फिल्म बनाना महत्वपूर्ण है। व्यवस्था पर विश्वास निर्माण करना भी सिनेमा का एक काम है।

विभिन्न प्रकार की देशहित, समाज हित संकल्पनाओं को समावेश करना। बेबी फिल्म : सुरक्षा की दृष्टि से डीप एक्सपेक्ट को समझाया गया।

नई शिक्षा नीति पर आई तेलगु फिल्म “थर्टी फाइव चिन्न कथा करु” । गणित विषय को आसानी से इसमें समझाया गया है।

भारत का स्वभाव आध्यात्मिक है। फिल्मों में इसका प्रभाव बढ़ने चाहिए।ताल फिल्म। हीरोइज़्म में स्पिरिचुअलिटी का दर्शन करना और सुंदरता में दिव्यत्व की अनुभूति करना ; यह भारतीयता का परिचय है। ऐसे प्रयोग फिल्मों में होते रहने चाहिए।

2022 में आई ऊंचाई फिल्म आध्यात्मिकता पर आधारित है। पहला वाक्य पर्वत हमारे वेदों के प्रतीक हैं और ये तो हिमालय हैं यहां तो जीवन बसता है इसलिए हम इसको यहां देखने आए हैं ।
इसमें प्रकृति के साथ तादात्म्य और सृष्टि के साथ जो सह अस्तित्व की भावना है वह वुड्स से रूट्स की और जाना है। आध्यात्मिकता केवल रिलिजियस बातें नहीं है। व्यक्ति की आत्मोन्नति से समाज की उन्नति तक की यात्रा है। सा कला या विमुक्तये।

कोरियन सीरीज युवाओं में काफी प्रचलित है। हॉलीवुड ने अमेरिका को सुपर पावर के रूप में स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई। लेकिन हमारे सिनेमा की भूमिका क्या ऐसी है ! हमें सुपर पावर सामरिक ताकत के बल पर नहीं तो विचार के बल पर होना है।

कोई मिल गया। राजकपूर की फिल्म फिर सुबह होगी।

 

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