एक सत्य घटना मेरे जीवन की जिसने मुझे कलाकार बना दिया
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बात बहुत वर्षो पुरानी है ,मेरे मुहल्ले न्याय मार्ग, श्रीनगर, सीवान के बाशिन्दों में मेरा घर सबसे पुराना था और यहाँ का परिवेश ग्रामीण था,तब दो चार घर ही हुआ करते थे, सभी मे प्रेम भाव था,धीरे धीरे यहाँ भी शहरी करण का प्रभाव दिखने लगा, बाहरी लोग आने लगे और एक दूसरे के मन मे एक दूसरे के प्रति लोभ,लालच, ईर्ष्या,भेदभाव औऱ जलन की भावना बढ़ने लगी और एक दूसरे से प्रेमभाव खत्म हो गया।
इसी माहौल में पढ़ने लिखने लगा साथ ही मेरी रुचि मूर्ति कला और पेंटिंग बहुत ही ज्यादा थी, बहुत ही सुंदर देवी देवताओं की मूर्तियां मैं बनाया करता था वो भी बिना प्रशिक्षण के ये देख कर मेरे ही मुहल्ले की कुछ ऊंची जाति की कुछ स्त्रियों को मेरी इस कला से जलन होने लगी और उन सबने मिलकर मेरी माँ जो एक सीधी साधी घरेलू महिला थी उनको डराना शुरु किया कि आपका लड़का अगर मूर्ति बनाएगा तो जल्दी मर जायेगा ऐसा होता है, इससे ये सब बन्द करवा दीजिये और मेरी माँ उनकी चालाकी नही समझ पाईं और मेरी मूर्ति बनाने की कला को जबरन बन्द करवा दी,
इसके बाद मैंने मूर्ति बनाना छोड़ ही चुका था कि मेरी कला फिर अभिब्यक्त होने का प्रयास करने लगी और मैंने पेंटिंग(चित्रकारी)के तरफ कदम बढ़ाना सुरु किया,धीरे धीरे उसमे निखार आने लगा, ये सब देखकर मेरे बाबा जो रिटायर्ड हेड क्लर्क(बड़ा बाबू) थे उन्होंने मुझे पेंटिंग करने हेतु प्रोत्साहित करना शुरु किये और में इसमे आगे बढ़ने लगा और मेरे बनाये चित्रो में जान आने लगी अब फिर जलन प्रारम्भ हो गई लेकिन मुहल्ले वालो की इसबार कोई दाल नही गली और मैं आगे विकास करता गया।एक दिन मैं अपने घर पर बैठा हुआ था तो मुहल्ले की कुछ पड़ोसी दीदी लोगो को पेंटिंग के विषय मे बात करते सुना कि हमलोग सीखने जाते है और बनाये चित्र दिखाते देखा तो मैंने भी घर पर बताया कि मैं भी सीखूंगा और ऐसा बना लूंगा ये सब सुनकर मेरे पापा डॉ. योगेन्द्र प्रसाद जो एक बहुत ही ईमानदार होमियोपैथिक डॉक्टर है
साथ ही मजदूरों के नेता थे उन्होंने बताया के मेरे एक मित्र पारस जी है जो कलाकार है और वो मुझे उनके पास उनके कला केंद्र पर ले गए,उन्होंने मुझे लम्बे समय तक कला की बारीकियां सिखाई लेकिन मुझे वहां से उस समय कोई मान्यता नही रहने के कारण कोई ठोस प्रमाणपत्र नही मिल सका बस पैड पर लिखकर एक ट्रेनिंग का और एक फेविक्रयाल के वर्कशॉप का प्रमाणपत्र मिला । पर मेरे लिए ये भी बहुत मूल्यवान था। उसके बाद मैं संगीत और कला के परिषद से जुड़ा जो , प्राचीन कला केंद्र, चंड़ीगढ़ से कोर्स कराती है और मैं वहां से जुड़ा रहा और वहां टीचर भी रहा,छात्रों का फार्म भरवाने और पढ़ाने के साथ साथ में पढ़ता भी रहा और मैंने वर्ष 2009 में मैंने वहां से चित्र भास्कर (एम. एफ.ए.) समतुल्य पाठ्यक्रम पूरा किया।
साथ ही में 2001 में अपना संस्था “विकास ललित कला अकादमी(रजि.),सीवान “का सफल संचालन भी करता रहा हूँ और प्राचार्य हूँ जो अभी भी ऑनलाइन/ऑफ़लाइन डिप्लोमा शिक्षण/प्रशिक्षण अंतराष्ट्रीय संगठन “सुरो भारती संगीत कला केंद्र, हुगली (पश्चिम बंगाल) से प्रदान कर रहा है । इस दौरान (2007) में मैं डॉ. विकाश कुमार सिवान जेल में जेल सुपरिन्टेन्डेन्ट,श्री ललन कुमार सिन्हा, जी आग्रह पर सिवान जेल में चित्रकला प्रशिक्षण देना प्रारम्भ किया और एक माह के प्रशिक्षण के उपरांत ही डी आई जी के आदेश पर मैं वहाँ मानदेय पर बहाल ट्रेनर भी नियुक्त हुआ।
अब तो मेरे मुहल्ले के कुछ उच्च वर्ग के लोगो को जलन की हद हो गई जब उन्होंने मेरे बारे में अपने घर की औरतों,लड़कियों,बच्चों को भड़का कर उनको दुसरो के घर घर भेजकर झूठे बदनाम करने, सच कहा जाए तो मेरे प्रचार के कार्य पर लगा दिए जो कि आज भी कायम है उनकी सोच थी की इससे भी मैं कला के क्षेत्र में आगे न बढ पाऊंगा ,पर साँच को आंच क्या मुझे कोई फर्क नही पड़ा और मैं उतरोतर आगे बढ़ता रहा और उल्टे उन्ही की बदनामी हुई। जेल के शिक्षण के सफल संचालन और निंदकों से मैं प्रसिद्धि पाता रहा और समाचार पत्र पत्रिकाओं में छपता रहा।
कला कार्य से धन भी कमाता रहा। इसी दौरान 2010 में सीवान जेल में मेरी चित्रकला शिक्षण की प्रसिद्धि इतनी फैल चुकी थी कि सिवान के पूर्व सांसद डॉ./मो. सहाबुद्दीन साहब ने जो सिवान जेल में सजायाफ्ता थे उन्होंने मुझसे चित्रकला सीखने की इच्छा जाहिर किये ,और मैंने उन्हें भी सिखाया जो उनके जेल के नीरस जीवन से उबरने में बहुत ही सहयोगी साबित हुआ और उनके विचारों में बहुत परिवर्तन हुआ ,जिसके कारण उनसे और उनके लोगो से मित्रता हो गई जो आज भी कायम है।आजकल शिक्षण हेतु ग्रांट नही आने के कारण जेल का शिक्षण बाधित है।
इसके बाद 2017 में मैं बैकुंठ बी.एड.कॉलेज,सीवान में मैं असिस्टेंट प्रोफेसर(फाइन आर्ट)के पद पर नियुक्त हुआ । इस वर्ष 2022 में मैंने सुरो भारती संगीत कला केंद्र, हुगली(पश्चिम बंगाल)से अंकन चूणामणि समकक्ष(पी.एच.ड़ी) की परीक्षा में सफल रहा। वर्तमान में पड़ोसी निंदकों में जलन और ईर्ष्या का आलम आज भी कायम है जब कोई चीज जलता है तो जलकर नष्ट हो जाता है और ये एक अकाट्य सत्य आज भी कायम है।
खैर आज मैं अपना बिल्डिंग बना कर आफिस बनाया हूँ और कला कार्य कर रहा हूँ। साथ ही मेडिकल फील्ड की डिप्लोमा,और चिकित्सा स्नातक की पढ़ाई के आधार पर अपना क्लिनिक कम फार्मेसी का भी सफल संचालन कर रहा हूँ। और निंदक आज भी निंदा और दुष्टता और अनैतिक कार्यो में मशगूल है।धन्य भव।
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