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म. गां. के. वि.वि. मोतिहारी में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जयंती पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन - श्रीनारद मीडिया
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म. गां. के. वि.वि. मोतिहारी में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जयंती पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन

म. गां. के. वि.वि. मोतिहारी में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जयंती पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन

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विश्वविद्यालय के समाज अध्ययन एवं मानविकि व भाषा संकाय ने  समारोह का किया प्रबन्ध

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के महात्मा बुद्ध परिसर, स्थित आचार्य बृहस्पति सभागार में डॉ. भीमराव अंबेडकर की 134वीं जयंती की स्मृति में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का विषय ‘डॉ. भीमराव अंबेडकर : संविधान निर्माता और सामाजिक न्याय के अग्रदूत’ था।

इस संगोष्ठी के संरक्षक प्रोफेसर संजय श्रीवास्तव, माननीय कुलपति, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय रहे जिनका कुशल नेतृत्व हमें प्राप्त होता रहा, जबकि संयोजक प्रोफेसर सुनील महावर, डीन, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज़ थे। प्रोफेसर प्रसून दत्त सिंह, डीन, स्कूल ऑफ ह्यूमैनिटीज़ एंड लैंग्वेजेज़ ने संगोष्ठी में आयोजन सचिव की भूमिका निभाई।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर संजय श्रीवास्तव, माननीय कुलपति, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय ने की। सत्र के मुख्य अतिथि प्रोफेसर एस. पी. शाही, माननीय कुलपति, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया, बिहार थे। उद्घाटन भाषण प्रोफेसर पंकज कुमार सिंह, राजनीति विज्ञान विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) द्वारा प्रस्तुत किया गया। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रोफेसर संजय कुमार, सह-निदेशक, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़, नई दिल्ली, एवं डॉ. टी. आर. केम, पूर्व सचिव, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली, उपस्थित रहे।

अध्यक्षीय उद्बोधन में विवि के कुलपति व संगोष्ठी के अध्यक्ष प्रो. संजय श्रीवास्तव ने कहा, “हम डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती महज एक औपचारिकता के रूप में नहीं मनाते। हमें उनकी पुस्तकों को पढ़ना चाहिए, उनके विचारों को समझना चाहिए और विशेष रूप से शिक्षा के प्रति उनके संघर्ष को जानना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, बाबा साहेब द्वारा आरक्षण की व्यवस्था सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल रही, लेकिन जाति व्यवस्था की जड़ें इतनी मजबूत थीं कि आज भी यह समस्या पूर्णतः समाप्त नहीं हो पाई है।

इससे पहले प्रो. सुनील महावर ‘संगोष्ठी संयोजक’ ने स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए कहा कि, डॉ. अंबेडकर का योगदान केवल संविधान निर्माण तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने भारत की आज़ादी और सामाजिक न्याय के लिए भी अभूतपूर्व कार्य किया। उन्होंने जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने और महिलाओं के अधिकारों के लिए भी अहम पहल की। इसके साथ ही सभी अतिथियों का स्वागत भी किया।इसके पश्चात सभी अतिथियों ने स्मारिका का विमोचन किया।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवेलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस), नई दिल्ली के सह-निदेशक प्रो. संजय कुमार ने कहा कि, यह सोचना होगा कि हम 14 अप्रैल को क्यों आयोजन करते हैं? क्या आज भी उनके विचारों की ज़रूरत है? उन्होंने डेटा प्रस्तुत करते हुए कहा कि 2018 में हाईकोर्ट में नियुक्ति में यह देखा गया कि बहुजन समुदाय की भागीदारी बेहद कम थी। केंद्रीय विश्वविद्यालयों और आईआईटी जैसे संस्थानों में भी यही स्थिति है। जातिसूचक नाम और प्रतीकों से आज भी भेदभाव होता है, इसलिए हमें डॉ. अंबेडकर के विचारों को आत्मसात करने की आवश्यकता है।

मुख्य अतिथि के रूप में पधारे मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के कुलपति प्रो. एस. पी. शाही ने कहा कि, संविधान निर्माण में डॉ. अंबेडकर की भूमिका अतुलनीय रही है। उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि बाबा साहब ने जिस सामाजिक परिवर्तन की बात की थी, वह शिक्षा से ही संभव है। यदि हम शिक्षा को क्रांति का सूचक मानें और समाज को बदलें, तभी देश आगे बढ़ेगा। डॉ. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म को इसलिए अपनाया क्योंकि हिंदू धर्म में जातिवाद का बोलबाला था। उन्होंने कहा कि यदि हम उनके विचारों पर कार्य नहीं करेंगे, तो समाज कभी आगे नहीं बढ़ेगा।

धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत करते हुए प्रो. प्रसून दत्त सिंह  ने कहा, डॉ. अंबेडकर के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए आवश्यक हैं जहां जातिवाद की जड़ें गहरी हैं। हम उनहें जाति के परिधि रखकर नहीं देख सकते हैं।

प्रथम सत्र  का विषय “डॉ. भीमराव अंबेडकर का भारत में सामाजिक न्याय का दृष्टिकोण रहा

सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर मधुरेंद्र कुमार, पं. दीनदयाल उपाध्याय चेयर, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश द्वारा की गई। इसके बाद, प्रोफेसर संजय कुमार, सह-निदेशक, सीएसडीएस, नई दिल्ली, प्रोफेसर जनक सिंह मीना, प्रमुख, गांधी दर्शन और शांति अध्ययन विभाग, केंद्रीय विश्वविद्यालय गुजरात, निशिकांत कोलगे, प्रोफेसर, निदेशालय दूरस्थ शिक्षा, मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद और प्रोफेसर बलवान गौतम, पूर्व अध्यक्ष, अंबेडकर चेयर, केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश, धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) ने अंबेडकर पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

डॉ. संजय कुमार ने अपने वक्तव्य में विशेष रूप से जातिगत भेदभाव जैसे पूर्वाग्रहों पर केंद्रित चर्चा की। प्रोफेसर बलवान गौतम ने इस बात पर ज़ोर दिया कि डॉ. अंबेडकर के विचारों को समझे बिना ही उनकी दृष्टिकोण की उपेक्षा की जाती है। प्रोफेसर मधुरेंद्र कुमार ने कहा कि जाति व्यवस्था आधुनिकता के बावजूद राष्ट्र के विकास में बाधा बनी हुई है, और उन्होंने यह तर्क दिया कि लोकतांत्रिक विचारधारा केवल सिद्धांत नहीं, बल्कि व्यवहार में भी होनी चाहिए।

कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर राजेंद्र बदगुज्जर, हिंदी विभाग, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा किया गया।

इस संगोष्ठी में कुल 8 तकनीकी सत्र आयोजित किए गए, जिनमें कुल 200 प्रतिभागियों ने संगोष्ठी के लिए पंजीकरण कराया था। इस कार्यक्रम में लगभग 250 छात्रों, शिक्षकों, शोधकर्ताओं और विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने भारत भर से भाग लिया।

पहला  तकनीकी सत्र  “अंबेडकर की संवैधानिक, विधिक और राजनीतिक दृष्टि”  पर केंद्रित था

कार्यक्रम की अध्यक्षता बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय की प्रोफेसर मधु सिंह ने की और सह-अध्यक्ष डॉ. अभिषेक कर्मकार, विभाग राजनीति विज्ञान, गालसी महाविद्यालय, पूर्वी बर्धमान, पश्चिम बंगाल रहे। प्रमुख वक्ता प्रोफेसर बलवान गौतम, पूर्व अध्यक्ष, अंबेडकर चेयर, केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश, धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) ने अंबेडकर की संविधान-निर्माण प्रक्रिया में भूमिका को रेखांकित किया। वहीं, डॉ. भूपेंद्र प्रताप सिंह, विभाग राजनीति विज्ञान, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ ने चर्चा कर्ता की भूमिका निभाई। इस सत्र में 15 शोधार्थियों ने विविध विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

यह सत्र डॉ. अनुपम कुमार वर्मा, सहायक प्रोफेसर, समाज कार्य विभाग द्वारा समन्वित किया गया।

दूसरा  तकनीकी सत्र  “समावेशन और सामाजिक न्याय की राह पर अंबेडकर”  पर केंद्रित था, यह सत्र आभासी मंच से संचालित हुआ

इस सत्र के अध्यक्ष प्रोफेसर सतीश कुमार, पूर्व प्राचार्य, एसएसवी (पीजी) कॉलेज, हापुड़ (उत्तर प्रदेश) रहे। वहीं, सह-अध्यक्ष की भूमिका डॉ. सुमन मौर्य, विभाग राजनीति विज्ञान, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर ने निभाई। डॉ. अभिषेक कुमार, विभाग राजनीति विज्ञान, देशबंधु कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली ने मुख्य वक्ता और  डिस्कसंट की भूमिका का निर्वहन किया। यह सत्र डॉ. अम्बिकेश कुमार त्रिपाठी, विभाग गांधीवादी विचार एवं शांति अध्ययन, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा समन्वित किया गया।

इस सत्र में कुल 13 शोधपत्र प्रस्तुतकर्ताओं ने अपने विचार प्रस्तुत किए।

तीसरे तकनीकी सत्र का विषय था “सामाजिक न्याय, दलित सशक्तिकरण और लैंगिक समानता

इस सत्र के अध्यक्ष प्रोफेसर संजय कुमार, विभाग राजनीति विज्ञान, जय प्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा, बिहार रहे। वहीं, सह-अध्यक्ष की भूमिका श्री श्याम सुंदर राम, समाज चिंतक ने निभाई। कीनोट वक्ता के रूप में प्रोफेसर निशिकांत कोलगे, प्रोफेसर, निदेशालय दूरस्थ शिक्षा, मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद, उपस्थित रहे।

वक्ताr के रूप में डॉ. स्मृति सुमन, विभाग राजनीति विज्ञान, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) हमारे बीच उपस्थित रहीं। इस सत्र का समन्वय डॉ. अम्बिकेश कुमार त्रिपाठी, विभाग गांधी विचार एवं शांति अध्ययन, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा किया गया। उक्त सत्र में कुल 22 शोधपत्र प्रस्तुतकर्ताओं ने भाग लिया।”

यह सत्र आभासी मंच के माध्यम से संपन्न हुआ, जिसमें अध्यक्षता प्रो. जितेन्द्र नारायण, पूर्व विभागाध्यक्ष एवं प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, एल. एन. एम. विश्वविद्यालय, दरभंगा (बिहार) द्वारा की गई।

सह-अध्यक्ष के रूप में डॉ. विजय शंकर विक्रम, पी. सी. साइंस कॉलेज, छपरा (बिहार) उपस्थित रहे। सत्र के मुख्य वक्ता प्रो. दिनेश कुमार, निदेशक, मान्यवर कांशीराम शोधपीठ, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ रहे। वहीं डॉ. मुकेश कुमार वर्मा, राजनीति विज्ञान विभाग, जयपुर विश्वविद्यालय, जयपुर (राजस्थान) ने चर्चाकार (Discussant) की भूमिका निभाई।

इस सत्र का समन्वयन डॉ. अनुपम कुमार वर्मा, सामाजिक कार्य विभाग, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा किया गया।

इस सत्र में कुल 9 शोधपत्र प्रस्तुतकर्ताओं ने डॉ. अंबेडकर से संबंधित अपने विचार प्रस्तुत किए।”

जिसका थीम था: डॉ. भीमराव अंबेडकर का शिक्षा पर विचार: सशक्तिकरण के उपकरण के रूप में, यह सत्र आभासी माध्यम से संपन्न हुआ।

इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. जनक सिंह मीना, विभागाध्यक्ष, गांधीवादी विचारधारा और शांति अध्ययन विभाग, केंद्रीय विश्वविद्यालय, गुजरात ने की। सह-अध्यक्ष डॉ. शैलेन्द्र मौर्य, अध्यक्ष, स्वामी विवेकानंद बालिका शिक्षा प्रचार समिति, जयपुर, राजस्थान रहे। मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. राजीव कुमार, राजनीति विज्ञान विभाग, केंद्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा, महेन्द्रगढ़ ने अपने विचार प्रस्तुत किए। वहीं, चर्चाकार के रूप में डॉ. चंचल, राजनीति विज्ञान विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ ने योगदान दिया।

इह सत्र डॉ. उपमेह कुमार तलवार, सहायक प्रोफेसर, विभाग द्वारा समन्वित किया गया. ह सत्र डॉ. उपमेह कुमार तलवार, सहायक प्रोफेसर, विभाग द्वारा समन्वित किया गया.

 

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