गुरुकुल में ‘क्रिटिकल एवं क्रिएटिव थिंकिंग’ पर दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित
छात्रों के सर्वांगीण विकास पर रहा फोकस
श्रीनारद मीडिया, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक, हरियाणा
सीबीएसई द्वारा ‘क्रिटिकल एवं क्रिएटिव थिंकिंग’ पर दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन गुरुकुल कुरुक्षेत्र के ‘देवयान’ विद्यालय भवन स्थित मल्टीमीडिया हाउस में किया गया। कार्यक्रम में सीबीएसई की ओर से श्रीमती बिबनदीप कौर एवं श्रीमती अनीषा गूमन मुख्य वक्ता रहीं। गुरुकुल के निदेशक ब्रिगेडियर डॉ. प्रवीण कुमार एवं प्राचार्य सूबेप्रताप की उपस्थिति में वैदिक मंत्रों के बीच मुख्य वक्ताओं द्वारा कार्यक्रम का दीप प्रज्ज्वलन कर शुभारम्भ किया गया।
दो दिवसीय इस कार्यक्रम में गुरुकुल सहित कुरुक्षेत्र के कई विद्यालयों के शिक्षकों ने भाग लिया। डॉ. प्रवीण कुमार ने सीबीएसई से पधारीं वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए सभी शिक्षकों से कार्यक्रम के दौरान बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को लेकर बताए जा रहे मुख्य बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देने का आग्रह किया।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए श्रीमती बिबनदीप कौर ने कहा कि हम सभी का मानना है कि बच्चों की सोच जन्मजात होती है अर्थात् जन्म से ही बच्चे की बुद्धि कुशाग्र और कोमल होती है मगर शिक्षकों ने इस सोच को गलत साबित किया है क्योंकि एक शिक्षक यदि चाहे तो एक मंदबुद्धि बच्चे की बुद्धि को भी प्रखर बना सकता है। उन्होंने कहा कि शिक्षक विद्यार्थियों में सकारात्मक सोच को विकसित करें, उन्हें किसी भी कठिन लगने वाले कार्य को करने के लिए प्रोत्साहित करें तो वह विद्यार्थी अवश्य ही उस कठिन कार्य को भी सरलता से कर पाएगा। कक्षा में बच्चांे को अलग-अलग उदाहरण देकर विषय को समझाएं, हो सके तो उनकी रूचि के अनुसार उन्हें समझाने का प्रयास करें, यह एक सकारात्मक अधिगम माना जाएगा।
इसी क्रम में श्रीमती अनीषा गूमन ने कहा कि पढ़ाते समय शिक्षक को उपलब्ध शिक्षण सामग्री का यथासंभव प्रयोग करना चाहिए जिससे विद्यार्थी आसानी से विषय को समझ सके। यदि कोई विद्यार्थी पूछे गये प्रश्नों का अपने विवेक से जवाब दें तो शिक्षक उसे प्रोत्साहित करें। उन्होंने कहा कि शिक्षक कक्षा में जाने से पूर्व अपने विषय की पुनरावृत्ति परीक्षण अवश्य करें जिससे कक्षा के दौरान बच्चों द्वारा पूछे गये प्रश्नों का सकारात्मक उत्तर देने में सुगमता रहे और बच्चों की सभी जिज्ञासाओं को शान्त करने के लिए आप पूर्णरूप से सक्षम हों।
बहरहाल ‘आलोचनात्मक एवं सृजनात्मक सोच’ पर आधारित दो दिवसीय इस कार्यक्रम का पहला दिन उत्कृष्ट रहा। इस दौरान मुख्य वक्ताओं और उपस्थित अध्यापकों के बीच सार्थक संवाद भी हुआ और बच्चों के शिक्षण संबंधी कई महत्त्वपूर्ण बिन्दू प्रकाश में आए।
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