अंग वस्त्र पर ऐतिहासिक सिवान की चित्रण शैली को पेंटिंग कर की गई अनोखी पहल*
चित्रण कला जो कभी सिवान की पहचान होती थी, अब विलुप्त हो चुकी है
श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):
बिहार में मिट्टी के बर्तन बनाने के काम का एक समृद्ध इतिहास रहा है। मौर्य और गुप्त काल से ही यह कला बिहार में प्रचलित रही है। नालंदा और राजगीर जैसे स्थानों पर पुरातत्व उत्खनन ने बिहार में इस कलात्मक शिल्प के अस्तित्व की पुष्टि की थी।इस शिल्प में कुछ परंपराएँ आज भी निभाई जाती हैं और प्रत्येक गांव, जिला, और क्षेत्र की अपनी अलग भी शैली है।
6वीं सदी में सिवान भी अपने पॉटरी (मिट्टी के बर्तन) के लिए बहुत प्रसिद्ध था। काले रंग के सतह पर सुनहरे और चांदी के रंग वाले अलंकरण के साथ विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों की पेंटिंग इसकी अलग पहचान बनाती थी। अपने इसी पेंटिंग के कारण ही यहाँ की पॉटरी (मिट्टी के बर्तन) अन्य जगहों की पॉटरी (मिट्टी के बर्तन) की अपेक्षा ज़्यादा कलात्मक लगती थी।आज भी हम बिहार म्यूज़ियम पटना में सिवान के उन चित्रित मिट्टी के बर्तनों को देख सकते हैं।
समय के साथ-साथ यह चित्रण कला जो कभी सिवान की पहचान होती थी। अब विलुप्त हो चुकी है।
ज़रूरत है हमें फिर से इस तकनीक और शैली को आम लोगो के बीच लाने की। इसी उद्देश्य के साथ रसमंजरी फाउंडेशन की महिलाओं ने सिवान के चित्रण शैली को अंग -वस्त्र पर गोल्डन रंग से पेंट कर आज यह संदेश दिया है कि हम भी अपने सिवान के चित्रण शैली को विभिन्न प्रकार के वस्त्र जैसे -बेड शीट, चादर, कूसन ,अपने पारंपरिक परिधान साड़ी,दुपट्टा इत्यादि में आसानी से ऐतिहासिक चित्रण शैली से पेंट कर फिर से कला-संस्कृति के क्षेत्र में अपनी पहचान फिर से बना सकते हैं।
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