Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
बिहार का एक गांव जो 43 बार बाढ़ में बहा और फिर बसा, लेकिन कम नहीं हुआ ग्रामीणों का हौसला. - श्रीनारद मीडिया

बिहार का एक गांव जो 43 बार बाढ़ में बहा और फिर बसा, लेकिन कम नहीं हुआ ग्रामीणों का हौसला.

बिहार का एक गांव जो 43 बार बाढ़ में बहा और फिर बसा, लेकिन कम नहीं हुआ ग्रामीणों का हौसला.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

यह कहानी नरकटिया के ग्रामीणों की जिजीविषा और सबकुछ खोकर फिर से खड़ा होने की जीवटता की है। बागमती की बाढ़ से उजड़ना उनकी नियति है तो पुरुषार्थ से फिर गांव को आबाद करना कर्म है। बीते 87 साल में 43 बार यह गांव उजड़ चुका है। इसके बावजूद ग्रामीणों ने हार नहीं मानी है। इस बार भी यही स्थिति है। बेघर हो चुके ग्रामीण बरसात बीत जाने का इंतजार कर रहे हैं। उजड़ गया गांव एक बार फिर आबाद होगा।

jagran

गांव में तीन सौ घर, आबादी डेढ़ हजार

बिहार के शिवहर जिले के पिपराही प्रखंड की बेलवा पंचायत स्थित नरकटिया गांव में 300 घर हैं। आबादी तकरीबन डेढ़ हजार है। यह गांव कभी बाढ़ की तबाही से दूर था, लेकिन वर्ष 1934 में आए भूकंप के चलते दो किलोमीटर दूर बहने वाली बागमती की धारा मुड़कर गांव के पास पहुंच गई। उस साल बरसात में पहली बार बागमती ने तबाही मचाई। उसके बाद साल दो साल बाद तबाही नियति बन गई।

jagran

50 बार देख चुके बाढ़ का कहर

गांव के सबसे बुजुर्ग 85 वर्षीय ब्रह्मदेव सहनी कहते हैं कि वह अब तक 50 बार बाढ़ का कहर देख चुके हैं। 20 बार तो अपना घर बना चुके हैं। ग्रामीण सत्यनारायण सहनी कहते हैं कि बागमती की तबाही के चलते गांव में कोई पक्का घर नहीं बनाता। महज 10 पक्के मकान बने हैं। बरसात शुरू होने से पहले अधिकतर घरों की महिलाएं बच्चों को लेकर रिश्तेदारों के घर चली जाती हैं।

बरसात में बीमार को अस्पताल पहुंचाना काफी मुश्किल होता है। रामचंद्र मांझी बताते हैं कि पिछले साल बागमती के कटाव में 47 घर बह गए थे। सभी कच्चे घर गिर गए थे। इस बार पहली जुलाई को बाढ़ में 50 घर बह गए। बहुत से घर गिर गए हैं। लोग प्लास्टिक टांगकर और मचान बनाकर रह रहे हैं। बरसात के बाद सितंबर में ग्रामीण फिर से घर बनाने में जुट जाएंगे।

jagran

बदलता रहता है गांव का नक्शा

दवा व्यवसायी मनोज कुमार की आधी से अधिक जमीन समेत घर बागमती की धारा में विलीन हो चुका है। कहते हैं कि बागमती कब धारा बदल ले और किसके घर को बहाकर ले जाए, कहना मुश्किल है। इसके बाद भी हम हार मानने वालों में नहीं हैं। नदी से कोई शिकवा नहीं है। शिकायत व्यवस्था से है। इस गांव में एक दशक से कोई अधिकारी नहीं आया। बाढ़ के दौरान बांध से अधिकारी जायजा लेकर चले जाते हैं। मुखिया कमलेश पासवान का कहना है कि बाढ़ से उजडऩे के बाद ग्रामीण दूसरी जगह घर बनाते हैं। इस कारण गांव का नक्शा बदलता रहता है। इसी के चलते हर घर नल का जल, सड़क और शौचालय जैसी सुविधाओं का लाभ इस गांव को नहीं मिल सका है। बिजली की सुविधा है।

jagran

नरकटिया को बाढ़ से बचाने के लिए बेलवाघाट पर डैम बन रहा है। इसके जरिए बागमती के पानी को रोककर उसकी पुरानी धारा में डिस्चार्ज किया जाएगा। निर्माण वर्ष 2020 में ही पूरा करना था, लेकिन बाढ़ की वजह से कार्य प्रभावित हुआ है। इसे जल्द पूरा किया जाएगा।

-सज्जन राजशेखर, जिलाधिकारी

Leave a Reply

error: Content is protected !!