बिहार में रोहिंग्याओं का बन रहा है आधार कार्ड,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार के विभिन्न जिलों में कट्टरपंथी संगठन पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के एक बड़े नेटवर्क का खुलासा हाल ही में हुआ है. संगठन के एक्टिव और स्लीपर सेल के लोगों की गिरफ्तारी के बाद पता चला कि बिहार के सीमांचल क्षेत्र में पीएफआई के द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों और बांग्लादेशी घुसपैठियों को फर्जी आधार कार्ड बनवाकर उन्हें भारत में घुसपैठ करा रहे हैं. आतंकी संगठन ऐसा करके बिहार के डेमोग्राफी और नागरिक सुविधा को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
बिहार की जनता का हक छिन रहे घुसपैठिये
PFI की मदद से आधार कार्ड बनवाकर रोहिंग्या मुसलमान और बांग्लादेशी राशन कार्ड सहित अन्य पहचान पत्र बनवा रहे हैं. इसके आधार पर सरकार के द्वारा दी जाने वाली अन्य सुविधाओं का ये लाभ उठा रहे हैं. जांच में ये बात भी सामने आयी है कि ये बिहार से मजदूर के रूप में कर्नाटक समेत अन्य राज्यों में भेजे जाते हैं. रिपोर्ट के अनुसार पीएफआई ने बिहार के सीमांचल क्षेत्र खासकर किशनगंज. दरभंगा, कटिहार, मधुबनी, सुपौल और पूर्णिया जिलों को मुख्यरूप से टारगेट किया है.
सीमांचल में मौजूद मुस्लिम परिवार की ले रहे हैं मदद
पीएफआई के द्वारा सीमांचल में रहने वाले मुस्लिम परिवारों की मदद भी ली जा रही है. इन भारतीय मुस्लिम परिवार को विभिन्न प्रकार का लालच दिया जाता है. फिर रोहिंग्या को उस परिवार का हिस्सा बनाते हुए पहचान पत्र बनवा दिया जाता है. पुलिस अधिकारियों का कहना है कि रोहिंग्याओं का भारत में प्रवेश पहले बंगाल और असम के सीमा से होता था. मगर अब वहां सीमा सुरक्षा बल की चौकसी बढ़ गयी है.
ऐसे में उनका प्रवेश अब नेपाल के रास्ते हो रहा है. बताया जा रहा है कि रोहिंग्याओं ने कई अवैध कॉलोनी नेपाल-भारत सीमा पर बसा लिया है. पुलिस सुत्रों के मुताबिक वर्ष 2018 के बाद से नेपाल सीमा पर 500 करोड़ की लागत से 700 मदरसे और मस्जिद का निर्माण किया गया है. इस अवैध निर्माण के लिए पैसा कतर, UAEऔर तुर्की जैसे देशों से आने की आशंका है.
कौन हैं रोहिंग्या?
रोहिंग्या मुसलमान मूलत: म्यांमार (बर्मा) के रखाइन प्रांत के रहने वाले हैं। हालांकि, वहां कि सरकार ने उन्हें कभी अपना नागरिक नहीं समझा। म्यांमार इन्हें बांग्लादेशी प्रवासी मानता है। 2012 में म्यामांर के रखाइन प्रांत में हिंसा शुरू हो गई, जिससे लाखों रोहिंग्या वहां से भागकर बांग्लादेश के रास्ते भारत में आकर बस गए। 2017 में म्यामांर में कुछ रोहिंग्याओं ने रखाइन में पुलिस पर हमला कर दिया, जिसमें 12 पुलिसवाले मारे गए। इसके बाद वहां की सेना ने रोहिंग्याओं को रखाइन से मारकर भगा दिया।
भारत में कैसे आए रोहिंग्या?
1982 में म्यांमार सरकार ने एक कानून बनाया। इस कानून से रोहिंग्याओं का नागरिक दर्जा खत्म कर दिया गया। इसके बाद म्यांमार सरकार रोहिंग्याओं को अपने देश से भगाने के लिए तरह-तरह के उपाय करती रही। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में बांग्लादेश के रास्ते 80 और 90 के दशक में रोहिंग्या भारत में अवैध तरीके से घुस आए।
हालांकि, 2017 में जब रखाइन प्रांत में रोहिंग्या के खिलाफ हिंसा भड़की तो बड़ी संख्या में करीब 7 लाख रोहिंग्या पलायन कर बांग्लादेश से होते हुए भारत में आ गए। बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल और मिजोरम-मेघालय के रास्ते ये देशभर के कई शहरों में बस गए।
रोहिंग्याओं को लेकर क्यों मचा है बवाल?
म्यांमार की तरह ही भारत सरकार भी रोहिंग्याओं को देश और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा बता चुकी है। रोहिंग्या मुद्दे पर भाजपा ने पहले भी कहा है कि अवैध प्रवासी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है और केंद्र सरकार इस मामले पर कभी समझौता नहीं करेगी। भारत की खुफिया एजेंसियों को शक है कि भारत में रोहिंग्या मुसलमानों के नेता पाकिस्तान से चलने वाले आतंकवादी संगठनों के संपर्क में हैं।