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जी कृष्णैया' को याद कर भावुक हुए अभयानंद,क्यों? - श्रीनारद मीडिया

जी कृष्णैया’ को याद कर भावुक हुए अभयानंद,क्यों?

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श्रीनारद  मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद आज भी उस घटना को नहीं भूल पाते हैं। घटना को याद करते हुए उन्होंने बताया वह 1985 बैच के काफी नेकदिल IAS अफसर रहे। अभयानंद बताते हैं जी कृष्णैया के साथ उनका काफी पुराना नाता रहा है। बेतिया में जब जी कृष्णैया डीएम थे तो मैं वहां एसपी के पद पर तैनात था। हम दोनों एक साल से अधिक समय तक साथ रहे।

अभयानंद ने बताया कि इस दौरान हम दोनों की यादें जो बनी वह अमिट हो गईं। जीवन भर याद रहने वाली हैं। मैं स्पेशल ब्रांच में तैनात था, मोबाइल था नहीं। शाम को अक्सर जी कृष्णैया का फोन मेरे ऑफिस के लैंडलाइन पर आता था। 5 दिसंबर की शाम मैं ऑफिस से घर निकलने की तैयारी कर रहा था, इसी दौरान फोन की घंटी बजी, मुझे यकीन था कि फोन जी कृष्णैया का होगा, लेकिन फोन पर मैसेज डीएम गोपालगंज की हत्या का पास हो रहा था। यह खबर सुनकर मैं पूरी तरह से सन्न रह गया।

स्पेशल ब्रांच के कंट्रोल रूम से लगातार मैसेज पास हो रहा था कि डीएम गोपालगंज का मर्डर हो गया है। हृदय विदारक घटना की जानकारी के लिए मैं कई जगह फोन लगाया। एसपी सिक्योरिटी स्पेशल ब्रांच के तौर पर मैं तैनात था, लेकिन पूरी तरह से गम था। पूरा महकमा गम में था, अफसरों में शोक था। डीएम कृष्णैया की हत्या को अभयानंद अपनी व्यक्तिगत क्षति मानते हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से उनसे जुड़ा था। हर दो दिन तीन दिन पर उनसे लंबी बात होती थी।

व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति से धनी थे जी कृष्णैया

अभयानंद बताते हैं कि जी कृष्णैया के साथ यादों का पूरा पिटारा है, शब्दों में बयां ही नहीं किया जा सकता है। वह एक बहुत ही गरीब परिवार और निर्धन परिवार से थे। इसके बाद भी उनके काम करने का तरीका दिल जीत लेता था। व्यवहार तो काफी उमदा था। किसी भी व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति से भी काफी धनी की बात की जाए तो वह थे जी कृष्णैया, उनके जैसा इंसान या अफसर मिलना मुश्किल है।

उन्होंने कभी किसी जाति धर्म को नहीं देखा, बस वह केवल गरीब और अमीर में थोड़ा अंतर करते थे। वह बहुत ही ईमानदार थे। उनकी ईमानदारी के बारे में जितना भी कहा जाए वह कम है। मै व्यक्तिगत रूप से जानता हूं कि उनके जैसे ईमानदार अफसर भी विरले मिलते हैं।

स्ट्रेट फॉरवर्ड काम करते थे जी कृष्णैया

पूर्व डीजीपी अभयानंद बताते हैं कि जी कृष्णैया के काम करने तरीका ही पूरी तरह से अलग था। वह स्टेट फॉरवर्ड काम करते थे। किसी भी काम को या बात को घुमाकर कभी नहीं किया, हर बात में साफ व स्टेट रहते थे। घटना के पीछे का कारण तो नहीं पता है, लेकिन व्यक्तिगत रूप से मेरी क्षति है। घटना के बाद दोनों बेटियों को लेकर उमा देवी बिहार से हैदराबाद चली गईं। पहले परिवार से बात होती रही, लेकिन काफी दिनों से बात नहीं हो पाई है।

रिटायर्ड डीजीपी अभयानंद बताते हैं जब कृष्णैया बेतिया में डीएम थे, वे किसी भी तरह के स्वार्थ और टकराव से बचने के लिए प्रभावशाली परिवारों के घरों में खाने से बचते थे। कृष्णैया का लंच बॉक्स ही साथ रहता था। वह कहते थे एक बार भी आप किसी के घर में खाएंगे तो आप उनके सामाजिक प्रभाव में आ जाएंगे।

अभयानंद ने कहा कि कृष्णैया आंध्र में रहने के अपने दिनों को याद करते हुए बताते थे कि उन्हें एक सामुदायिक छात्रावास में रखा गया था, क्योंकि परिवार के पास उन्हें खिलाने के लिए पैसे नहीं थे।

अभयानंद ने कहा, “वह अक्सर इसकी चर्चा भी किया करते थे। आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले के एक छोटे से गांव बायरापुरम में जन्मे कृष्णैया अत्यधिक गरीबी में पले-बढ़े, लेकिन उन्होंने शिक्षा के मूल्य को समझा। अफसोस की वह हमारे बीच नहीं हैं।”

रिटायर्ड डीजीपी अभयानंद ने सोशल मीडिया पर भी जी कृष्णैया के साथ जुड़ी अपनी कई यादों को शेयर किया है। वह लिखते हैं, पैसे से ज्यादा शक्तिशाली कौन? वह लिखते हैं पश्चिम चम्पारण में 1992 मैं जिले का पुलिस अधीक्षक था और जी कृष्णैया डीएम थे।

दोनों का बगहा के सुदूर जंगल एवं पहाड़ी क्षेत्र में रात्रि विश्राम का प्रोग्राम बना। हम दोनों वहां किसी को पूर्व सूचना दिए बिना पहुंच गए। पंचायत वासियों को जैसे ही पता चला, बड़ी संख्या में वह जुटने लगे। जमघट लगा और जन संवाद शुरू हो गया।

संवाद के दौरान एक समस्या सामने आई। उस क्षेत्र में पानी की कमी के कारण पटनी नहीं हो पा रही थी, इसलिए फसल सूखने के कगार पर थी। उत्सुकतावश मैंने पूछा, “आपके पूर्वज कैसे पटनी करते थे ?” मालूम हुआ कि आजादी के पूर्व UP से लोग यहां आकर बसे थे।

पहाड़ी नदी को बांधकर उन्होंने नहर निकाला और उस पंचायत की जमीन को सींचा। तो मैने पूछा अब क्यों नहीं हो रहा? जवाब मिला, “नहर का मुहाना गाद से भर गया है। सभी स्तर पर आवेदन दिया गया है – DM, CM, PM सबको, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई है। मैने सुझाव दिया

कल से हम लोग भी आपके साथ मुहाने की सफाई के श्रमदान अभियान में लगेंगे। हमने काम शुरू करा दिया और तीन दिन में नहर का मुहाना साफ हुआ, वहीं के ग्रामीणों के द्वारा। उनके ही प्रयास से रुका हुआ पानी खेतों में वापस आया। सरकार का कागज और एस्टीमेट सब बच गया।

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