अचीवर्स जंक्शन की स्थापना दिवस मजदूर नेता रामदेव सिंह को समर्पित

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स्थापना दिवस पर याद किये गए मजदूर नेता रामदेव सिंह

कविता गीत से गूंजता रहा अचीवर्स जंक्शन चैनल
श्रीनारद मीडिया, छपरा (बिहार):

अपने अनोखे कार्यक्रमों और विभिन्न क्षेत्र के दिग्गजों की कहानी कहने के लिए लोकप्रिय चैनल अचीवर्स जंक्शन के द्वितीय स्थापना दिवस पर याद किये गए मजदूर नेता रामदेव सिंह। दरअसल स्थापना दिवस समारोह का यह कार्यक्रम उन्ही को समर्पित था क्योंकि हाल ही में 14 अप्रैल 2022 को 87 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गयी।

आज से दो साल पहले 30 मई 2020 को कोरोना काल में नेता रामदेव सिंह की प्रेरणा से उनके बेटे कवि-पत्रकार मनोज भावुक ने अपने कुछ क्रिएटिव मित्रों के साथ मिलकर इस चैनल की शुरुआत की। दो दर्जन से ज्यादा कार्यक्रम लॉन्च हुए। धीरे-धीरे पूरी दुनिया के लोग जुड़े। इस चैनल पर काव्य निर्झर, मैजिकल म्यूजिकल, प्रणव के प्रयोग, सास, बहू और रीना रानी, सफर मनोज भावुक के साथ, भोजपुरी डायरी, कॅरियर जंक्शन, तहत और तरन्नुम और भोजपुरी के संस्कार गीत जैसे कार्यक्रमों को खासी लोकप्रियता मिली है।

31 मई को देर रात तक अचीवर्स जंक्शन का द्वितीय स्थापना दिवस एक सादे समारोह के रूप में मनाया गया। आरंभ में रामदेव बाबू के प्रति 2 मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। फिर सारेगामपा की लोकप्रिय गायिका शालिनी दुबे ने भक्ति गीतों से आगाज किया। उसके बाद एक राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसका संचालन प्रसिद्ध गीतकार मनोज कुमार मनोज ने किया। इस कवि सम्मेलन में मनमोहन मिश्रा, भालचंद्र त्रिपाठी, सुभाष चंद्र यादव, डॉ. साकेत रंजन प्रवीर, डॉ. सविता सौरभ और मनोज भावुक ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।
कार्यक्रम के अंतिम सत्र में भोजपुरी लोक गायक शैलेन्द्र मिश्रा एवं बाउल संगीतज्ञ शंभू नाथ सरकार ने अपने गायन से कार्यक्रम को संगीतमय बनाया।

इस अवसर पर रामदेव बाबू पर एक वृतचित्र भी दिखाया गया। मजदूरों का मसीहा कहे जाने वाले हिंडाल्को के प्रथम मजदूर नेता रामदेव जी ने बिड़ला मैनेजमेंट के खिलाफ संघर्ष किया जिसके कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। रामदेव जी ने जीवन का पहला आंदोलन साल 1963 में एक रात 11 बजे शुरू किया जब उन्होंने हिंडाल्को में तीन दिन की हड़ताल करा दी। फिर दूसरी हड़ताल 12 अगस्त 1966 में हुई जिसमें बाबू रामदेव सिंह की एक आवाज पर हिंडाल्को की चिमनी का धुआँ बंद हो गया था। पूरे प्लांट को बंद करना पड़ा था। इतना बड़ा जन समर्थन था, बाबू रामदेव सिंह के साथ। तब रामदेव बाबू समेत 318 लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया। वह पक्के सोशलिस्ट थे, जिद्दी और धुन के पक्के थे।

रामदेव बाबू 14 साल कंपनी से बाहर रहकर मजदूरों के लिए संघर्ष करते रहे। उनको जान से मारने की कई बार साजिश हुई। उनके सहयोगी को एक-एक करके झूठे मामलों में फंसा कर जेल भेज दिया गया। रामदेव सिंह को भी कई बार जेल जाना पड़ा। उनके पीछे गुप्तचरों की टीम लगी रहती थी, इसलिए उन्हें देश की आजादी के क्रांतिकारियों की तरह ठिकाना बदल-बदल कर योजनाएं बनानी पड़ती थीं। हड़ताल पर हड़ताल होते गए, नेता रामदेव सिंह का नाम पहले राज्य के राजनीति में फिर केंद्र की राजनीतिक गलियारों तक पहुँच गया। उनके निवास स्थान पर अक्सर भारतीय राजनीति के महान राजनेताओं राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण, राजनारायण, प्रभुनारायाण, चौधरी चरण सिंह, जॉर्ज फर्नांडीज़, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, लालू प्रसाद यादव और वर्तमान केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह आदि का आना-जाना होने लगा। यहीं दावत होती और राजनीतिक विश्लेषण होते। सच्चे समाजवादी के रूप में मशहूर रामदेव सिंह की बहादुरी और बेबाकीपन के सब कायल थे। इसलिए सब उन्हें बड़ा सम्मान करते थे। रामदेव सिंह ने मजदूर आन्दोलन में अपनी उग्र छवि और साहसिक प्रदर्शनों के कारण पहचान कायम की थी। यूपी के मुख्यमंत्री रहे रामनरेश यादव उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। उनका लगाव रामदेव सिंह से आजीवन रहा। लेकिन यह दुखद है कि रेनूकूट में बाजार और दुकानदार को बसाने वाले रामदेव बाबू आजीवन टीन शेड में रहे। रामदेव बाबू ईमानदारी और निर्भीकता के पर्याय बने रहेगें।

 

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