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आदिगुरु नानकदेव जी भगवान के ही अलौकिक स्वरूप है - श्रीनारद मीडिया

आदिगुरु नानकदेव जी भगवान के ही अलौकिक स्वरूप है

आदिगुरु नानकदेव जी भगवान के ही अलौकिक स्वरूप है

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 निर्मल पवित्र सतत प्रेरणाशील वाणी प्रेम और भाईचारे की मिठास से हर क्षण प्रासंगिक रहेगी

गुरू नानकदेव प्रकाशोत्सव पर विशेष

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मध्यकालीन भक्ति सरोवर की सबसे बड़ी हिलोर के रूप में अवतरित होकर गुरुनानक देव जी ने अपने युग में शान्तिदूत बनकर जागृति का अलख जगाया । उन्होंने स्वेच्छाचारीऔर निरंकुश शासकों को ललकारते हुए अपनी वानियों में कहा कि – राजा लोग सिंह के समान हिंसक और चौधरी लोग कुत्ते के समान लालची हो गये हैं । उनके नौकर-चाकर अपने तीखे नाखूनों से घाव करके जनता का खून चूसते हैं । ऐसे ही जनविरोधी कुशासकों को उन्होंने सावधान करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति जन-जन में पंच-परमेश्वर का दर्शन करती है ।

गुरुनानक देव ने अपने ज्ञान और अनुभव के सागर को अपनी अनमोल कृति जपुजी में उड़ेल दिया । इस महान रचना में सत्यस्वरूप भगवान की उपासना है । हम सत्यनिष्ठ कैसे बनें ? ऐसा आरम्भ में प्रश्न उपस्थित किया और अंत में सत्यखण्ड में हमें पहुंचा दिया । बीच में साधना का वर्णन किया । साधना सर्वसमावेशक है , जिसके आठ अंग आखिर की पौड़ी में निर्दिष्ट हैं ।

सम्पूर्ण साधना ” निरभउ निरवैरु ” के ताने-बाने में बुनी हुई है । मानव के सामने आज जो समस्यायें पेश हैं उनका समाधान इन दो शब्दों में मास्टरकी की तरह किया गया है । अंतत: हमें एक न एक दिन आडम्बर और दिखावे को छोड़कर रूहानियत के रास्ते पर चलना ही पड़ेगा । इसीलिए नानकदेव जी कहते हैं –
” आई पंथी सगल जमाती ,
मनि जीतै जगु जीतु ”
जपुजी में धर्म का निचोड़ रखा गया है । गुरुनानक देव ने अपनी अंतिम उम्र में सारी यात्रा समाप्त करने के बाद इस महान ग्रन्थको लिखा है । परमेश्वर के नाम अनंत हैं लेकिन उन्हें एक नाम जो सतनाम से जाना जाता है , अत्यन्त प्रिय है । इस तरह सत्य की खोज में विज्ञान और आत्मज्ञान स्वभाविक रूप से एकमेक हो जाते हैं । सत् श्री अकाल इसीलिए सिखों का मूलमंत्र है । भगवान् को गुरू रूप में देखा गया है । जो जपु से शुरू होता है ।

हम अपना अहंकार और वासनाएं जब छोड़ेगें तभी सच्चे बन सकेंगे और तभी असत्य का पर्दा टूट सकेगा । मुख्य बात है सत्य का दर्शन । अपने को कायम रखकर सत्य का दर्शन नहीं होता हैं । अपने को मिटा दें , हटा दें , दूर करें तो चिंतन की प्रक्रिया ठीक चलेगी और सहज ही स्वच्छ प्रकाश मिलेगा । फिर उस पर चलना आसान हो जायेगा ।

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