आखिर किस बात से डरे हुए थे नोएडा के सरकारी अफसर?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भ्रष्टाचार की बुनियाद पर खड़े ट्विन टावर को तोड़ने के लिए 28 अगस्त को दोपहर 2:30 बजे होने वाले धमाके से पहले जिला प्रशासन, पुलिस और प्राधिकरण के अधिकारियों की धड़कनें बढ़ी हुई थीं। धमाके का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा था अधिकारियों को माथे पर चिंता की लकीरें खींच रही थी। भगवान से सब कुछ सही होने की प्रार्थना करने के साथ ही अधिकारी विशेषज्ञों से भी पल-पल राय लेने रहे थे।

पल-पल दिए जा रहे थे दिशा-निर्देश

विशेषज्ञों द्वारा किसी भी प्रकार की अनहोनी की आशंका ना होने का आश्वासन मिलने के बाद अधिकारियों के माथे पर चिंता की लकीरें दूर हुई थी। नोएडा में ट्विन टावर को तोड़ने के लिए होने वाले धमाके पर लखनऊ में बैठे वरिष्ठ अधिकारियों ने भी निगाह गड़ाई हुई थी। पल पल दिशा निर्देश जारी किए जा रहे थे।

… तो सोसायटी को हो सकता था नुकसान

मौके पर जिला प्रशासन, पुलिस व प्राधिकरण के अधिकारियों की टीम सभी बिंदुओं पर नजर बनाए हुए थे । अधिकारियों को इस बात का सबसे अधिक डर सता रहा था, यदि धमाके के बाद 32 मंजिला ट्विन टावर अगल बगल की सोसाइटी के ऊपर गिरा तो बड़ा नुकसान हो सकता था।

सभी अधिकारी थे एक-दूसरे के संपर्क में

सभी अधिकारी एक दूसरे को सब कुछ सही होने का दिलासा दे रहे थे। बाद में अधिकारियों ने दक्षिण अफ्रीका की कंपनी जेट डिमोलिशन के निदेशक जो ब्रिकमैन से विस्तृत चर्चा की। उनसे पूछा गया इस बात की कितनी आशंका है कि धमाके के बाद ट्विन टावर अगल बगल की सोसाइटी पर गिर सकता है।

ब्रिकमैंन ने अधिकारियों को आश्वासन दिया कि दोनों टावर सौ फीसद अपनी ही जगह पर नीचे की तरफ बैठ जाएंगे। अगल बगल की सोसाइटी को कोई नुकसान नहीं होगा। ब्रिकमैन के आश्वासन और उनके चेहरे पर निश्चिंता के भाव के बाद अधिकारियों को काफी सुकून मिला।

धमाका होने के बाद जब दोनों टावर पूरा नीचे की तरफ ही बैठे तो अधिकारियों ने राहत की सांस ली। साथ ही हाथ जोड़कर ऊपर वाले का शुक्रिया भी अदा किया । अधिकारियों ने ब्रिकमैन का भी धन्यवाद किया और उनके अनुभव को सराहा।

नोएडा के सेक्टर 93 स्थित सुपरटेक के टि्वन टावर ध्वस्त होते ही बिल्डर का गुरूर भी चूर हो गया। सपा और बसपा शासन काल में सुपरटेक बिल्डर की तूती बोलती थी। कई अन्य प्रोजेक्टों में भी बिल्डर ने प्राधिकरण अधिकारियों से सांठगांठ कर स्वीकृत मानचित्र के हिसाब से अधिक फ्लैट बना लिए थे। मिलीभगत के कारण अधिकारियों ने अतिरिक्त निर्माण को रोकने की जहमत नहीं उठाई।

जिस अधिकारी ने भी इस पर आपत्ति लगाई, उसका तबादला करा दिया गया। फायर विभाग के अधिकारियों ने बिल्डर का पूरा साथ दिया। विभाग ने खेल करते हुए 2007 से 2012 तक नियम विरुद्ध अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) जारी की। एमराल्ड कोर्ट के दोनों टावर एपेक्स व सियान के समीप नोएडा प्राधिकरण की सात हजार वर्ग मीटर अविकसित ग्रीन बेल्ट पर भी कब्जा कर लिया गया। हैरत की बात यह है कि प्राधिकरण ने 2005, 2006,2009 व 2012 में बिल्डर के मानचित्र स्वीकृत किए, लेकिन किसी भी अधिकारी ने अविकसित ग्रीन बेल्ट पर किए गए कब्जे को छुडवाने का प्रयास नहीं किया।

बिल्डर के प्रभाव का ही असर था कि एमराल्ड कोर्ट के निर्माण के समय से ही नियमों को ताक पर रखा जाने लगा। प्राधिकरण अधिकारियों ने नियमों का पालन कराने के बजाय बिल्डर का नियम तोड़ने में साथ दिया। 2009 में बिल्डर ने अतिरिक्त फ्लोर एरिया रेसियो (एफएआर) खरीदकर 11 मंजिल टावर को 24 मंजिल करा लिया। उस समय प्राधिकरण के सीईओ मोहिंदर सिंह थे। 2011 में एमराल्ड कोर्ट के निवासियों ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई।

इसके बावजूद प्राधिकरण ने बिल्डर को और अतिरिक्त एफएआर देकर टावरों को 39 व 40 मंजिला बनाने की अनुमति दे दी। टावरों की ऊंचाई 73 मीटर से बढ़ाकर 120 मीटर हो गई। करीब 950 फ्लैट अधिक बना लिए। बिल्डर को सितंबर 2009 में रिवाइज प्लान के अनुसार 20 मंजिला की अनुमति दी गई। दूसरी बार संशोधित योजना में ग्राउंड प्लस 24 मंजिल की अनुमति दी गई। दो मार्च 2012 को तीसरी बार संशोधित प्लान दिया गया, जिसमें टावरों की मंजिला 24 से बढ़ाकर 39 व 40 कर दी गई।

हैरत की बात यह है कि संशोधित प्लान 26 नवंबर 2009 को स्वीकृत किया गया था, लेकिन निर्माण कार्य पांच माह पहले ही शुरू कर दिया गया था। बिल्डर को इतना विश्वास था कि प्राधिकरण से उसका संशोधित प्लान स्वीकृत हो ही जाएगा। यह सब सांठगांठ का नतीजा था। यमुना प्राधिकरण में भी बना लिये थे अधिक फ्लैट, जुर्माना देकर बचा सुपटेक बिल्डर को 2009 में यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में फ्लैटों के निर्माण के लिए ग्रप हाउसिंग का 100 एकड़ का भूखंड आवंटित किया गया। आवंटन की शर्तों के अनुसार बिल्डर को भूखंड के 25 फीसद क्षेत्रफल पर फ्लैटों का निर्माण करना था।

बिल्डर ने अलग-अलग चरणों में भूखंड पर निर्माण किया। पहले चरण में 25 फीसद के बजाय 40 फीसद ग्राउंड कवरेज कर तय मानक से अधिक फ्लैट बना दिए। डेढ़ गुणा अधिक फ्लैट बनने से बिल्डर को अतिरिक्त कमाई हुई। 2015 में यमुना प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ संतोष यादव ने मामले को पकड़ लिया। जांच में पता चला कि सुपरटेक का ग्राउंड कवरेज बढ़ाने के लिए शासन से पत्र आया था। वहीं एनसीआर में 20 से अधिक मंजिल भवन निर्माण के लिए एयरपोर्ट अथारिटी से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेनी होती है।

बिल्डर की फाइल में यह एनओसी भी लगी थी। संतोष यादव ने दोनों की जांच कराई तो पता चला कि दोनों ही फर्जी है। सीईओ ने कार्रवाई के आदेश देते हुए थाने में मामला दर्ज कराने की तैयारी ही शुरू की थी कि यह जानकारी बिल्डर तक पहुंच गई। बिल्डर ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर एफआईआर दर्ज कराने से पहले ही संतोष यादव का तबादला करा दिया। फाइल में कुछ लिख न दे, इसलिए तबादला आदेश आते ही उन्हें पांच मिनट के अंदर कार्यभार छोड़ने का फरमान शासन से मिला।

बाद में थाने में अज्ञात के नाम मामला दर्ज कराया गया। तत्कालील एसीईओ राकेश कुमार सिंह ने सुपरटेक की फाइलों में गड़बड़ी पकड़नी शुरू कर दी तो उनका भी 2015 में ही तबादला कर दिया गया। सुपरटेक बिल्डर ने ओमीक्रान सेक्टर स्थित जार सोसायटी में भी इसी तरह 23 मंजिला बिल्डिंग बनाकर स्वीकृत मानचित्र के हिसाब से 1040 फ्लैट अधिक बना लिए।

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