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जनरेशन अल्फा के बाद अब जेन बीटा 2025 से आ गई है! - श्रीनारद मीडिया

जनरेशन अल्फा के बाद अब जेन बीटा 2025 से आ गई है!

जनरेशन अल्फा के बाद अब जेन बीटा 2025 से आ गई है!

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इस पीढ़ी की यह विशेषता होगी कि यह डिजिटल क्रांति के दौर की होगी

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जनवरी 2025 से पैदा होने वाले बच्चों को ‘जेन बीटा’ के नाम से संबोधित किया जाना तय हुआ है। जेन बीटा वास्तव में ‘जेनरेशन अल्फा’ (2010-2024) के बाद की पीढ़ी को संबोधित किये जाने के लिए तय हुआ शब्द है। जेन बीटा पीढ़ी का पहला बच्चा भारत के मिजोरम राज्य में ही नया साल शुरू होने के तीसरे मिनट में पैदा हुआ। इन दिनों पूरी दुनिया में समाजशास्त्रियों के बीच बहस है कि कोरोनिअल्स (कोरोना के दौरान पैदा हुए बच्चे) से भी ज्यादा जटिल इस पीढ़ी की परवरिश होगी। क्या इसकी वजह डिजिटल लाइफस्टाइल और सोशल मीडिया का सूचना विस्फोट है?

जेन बीटा हमारी उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करेगी, जो मिलेनियल्स और कोरोनिअल्स के बाद दोनों के साथ पलकर बड़ी होगी। इस पीढ़ी की यह विशेषता होगी कि यह डिजिटल क्रांति के दौर की होगी। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि यह एआई के तूफान में पलने वाली वह पीढ़ी होगी जिसका जन्म ही ‘ब्लू लाइट’ के साथ हुआ है।

जेन बीटा जिस दौर की पीढ़ी है, वह दौर सरलता का दौर नहीं है। वर्तमान में शिक्षा से लेकर नौकरी तक, चिकित्सा से लेकर खेती तक,शादी-विवाह से लेकर डेट तक सब कुछ एआई के हवाले है। यह दौर एक सेकंड में दुनिया को बदलने वाला है,यह दौर साइबर फ्रॉड से पीडि़त समाज को सुरक्षा देने की जद्दोजहद में लगा हुआ है, यह दौर वह है जहां हर काम के लिए मोबाइल हाथ में है और पलक झपकते ही सब कुछ हो जा रहा है।

पीढ़ीगत अंतर बना रहेगा

मिलेनियल्स और कोरोनिअल्स के बीच जब यह पीढ़ी आयी है तो दोनों में जेनरेशन गैप भी कम नहीं है। जिस तरह से बच्चों और उनके पैरेंटस में दो दशक का अंतर होता है,उसी तरह मिलेनियल्स और जेन बीटा में तथा दो भाई या बहनों के बीच होने वाले चार-पांच साल के अंतर की तरह कोरोनिअल्स और जेन बीटा में अंतर है। इस तरह के जेनरेशन गैप तथा एआई के तूफान के बीच जो सबसे बड़ी चुनौती सामने आने वाली है, वह है इस पीढ़ी की परवरिश की। इस पीढ़ी की परवरिश इतनी सहज नहीं है जितनी पहले की पीढ़ियों की रही है।

जब मिलेनियल्स आए थे तो हमारे बीच में कंप्यूटर अपनी घुसपैठ कर चुका था और मोबाइल हर हाथ में भी लगभग पहुंच ही चुका था। हमने तब कंप्यूटर को अपना साथी बनाया और इंटरनेट के दम पर बहुतेरे ऐसे काम किए जो एक समय असंभव से लगते थे।

सदी के दो दशक के अंतिम दौर में जब कोरोना ने चीन की धरती से पूरे विश्व में हलचल मचाई तो कोरोनिअल्स जन्मे और आज जब वह लगभग पांच वर्ष के हो चुके हैं तो उनमें और मिलेनियल्स में तुलना करने पर काफी अंतर मिल रहा है, यह बात अलग है कि अभी कोरोनिअल्स पर रिसर्च जारी है।

मोबाइल एडिक्शन से बचाना होगा

जेन बीटा की शुरुआत भारत तथा आस्ट्रेलिया से हुई है। भारत में जेन बीटा का पहला बच्चा एक जनवरी की रात को 12:03 को मिजोरम में पैदा हुआ, नाम रखा गया है फ्रैंकी, जबकि दूसरे बच्चे ऑस्ट्रेलिया तथा कनाडा में हुए हैं। समाजशास्त्री तथा मनोवैज्ञानिकों की चिंता इस बात पर है कि जो बच्चे ‘ब्लू लाइट’ के दौर में जन्में हैं वह दो पीढ़ियों के मामूली से अंतर में जन्में अपनों के बीच किस तरह से सामाजिक-आर्थिक तथा मानवीयता को आत्मसात कर पाएंगे?

दरअसल इन बच्चों के पालन-पोषण में सर्वाधिक परेशानी उनके पैरेंट्स को हो सकती है। ऐसी स्थिति में अभिभावकों को देखना होगा कि जेन बीटा के बच्चे बड़ों प्रति आदरभाव रखें। इसके लिए उन्हें इंटरनेट की दुनिया अर्थात मोबाइल एडिक्शन से बचाना सबसे बड़ी चुनौती है। कोरोनिअल्स को देख लें। यह बच्चे जितना मोबाइल प्रेमी हैं उतने दूसरी पीढ़ी के बच्चे नहीं। शायद यही कारण है कि स्कूलों से लेकर मंदिर तक बच्चों को मोबाइल में डूबा देखा जा सकता है।

स्वाभाविक बंधन निभाएं

जेन बीटा के बच्चों की परवरिश में इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि वह हमारे सदियों से चले आ रहे सामाजिक बंधनों को उसी स्वीकार्यता से आत्मसात करें। घर-परिवार में समय-समय पर होने वाले कार्यक्रमों में रस्मों-रिवाजों को भी यह गंभीरता से लें, रिश्ते-नाते निभाने का गुर इन्हें अपने मिलेनियल्स दादी-दादी, माता-पिता या नाना-नानी जैसे संबंधियों से लेने सीखने होंगे।

परिवार के संस्कार इनके भीतर एआई के तूफान कैसे भरे जाएं यह भी माता-पिता के लिए कम चुनौती नहीं होगी। बच्चों के बीच जेनरेशन गैप के दौरान चिड़चिड़ाने की समस्या सर्वाधिक रहती है, इन हालातों में इससे कैसे बच पाएंगे? यह पूरे समाज के लिए एक ऐसा विषय है जिस पर अभी से काम करना होगा।

जेन बीटा के बच्चों की शिक्षा-दीक्षा उतनी ही महत्वपूर्ण रहेगी जितनी इनकी सामाजिक परवरिश। बच्चों के हाथों में जब मोबाइल हो तो इन्हें इंटरनेट से बचा पाना मुश्किल ही है। हां, यह बात जरूर इन्हें समझाई जानी चाहिए कि केवल रील या उस जैसे दूसरे मनोरंजन के साधनों से पढ़ाई नहीं हो सकती। जब डिजिटल फ्रॉड अर्थात साइबर क्राइम गली-गली तक पनप चुका है तब के लिए भी सतर्क रहना होगा कि कहीं यह पीढ़ी अपना महत्वपूर्ण समय इसमें ही ना खो दे।

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