भारत में हरित क्रांति व श्वेत क्रांति के बाद तीसरी बड़ी क्रांति है मेडिकल इनोवेटर बनना है–हरिवंश.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
रोबिन शर्मा की नई किताब में नोबल विजेता लेखिका शिम्बोर्स्का का एक उद्धरण है। आशय है कि इंसान खुद को उतना ही जानता है, जितनी उसकी परीक्षा हो चुकी है। यानी इंसान अपनी क्षमता से तब तक अपरिचित है, जब तक वह चुनौतियों से नहीं घिरता। संसार कोविड की महाविपत्ति से उबरता लग रहा है। अंतहीन निराशा, पल-पल मौत और अनास्था के क्षणों में संकल्प, पुनर्निर्माण और स्वभिमान की गाथा भारत में कैसे लिखी गई? यह जानना उस महापरीक्षा के परिणाम से रूबरू होना है।
वैज्ञानिक डॉ. जितेंद्र शर्मा की पुस्तक आई है ‘मेड इन लॉकडाउन’ (2022)। शर्मा आंध्रप्रदेश मेडिकल टेक्नोलॉजी जोन, विशाखापट्टनम (एएमटीजेड) के संस्थापक सीइओ और एमडी हैं। 2020 में मौत धरती पर उतर आई। तब आरटीपीसीआर किट सिर्फ दस हजार बनते थे। मोटा अनुमान हुआ, 50 हजार वेंटिलेटर, 10 लाख आरटीपीसीआर किट, 50 लाख पीपीई कीट व N-95 मास्क की रोजाना जरूरत है। फिर करोड़ों की जरूरत पड़ी। भारत में वेंटिलेटर नहीं बनता था।
दुनिया के बड़े मुल्कों ने वेंटिलेटर समेत अन्य चीजें आयात प्रतिबंधित सूची में डाल दीं। भारत सरकार और एएमटीजेड ने मिलकर संसार को स्तब्ध किया। डॉ. शर्मा कहते हैं, यह अंधकार में उम्मीद, अनिश्चितता में विश्वास और उम्मीद में आस्था का नया युग है। आज भारत, मेडिकल यंत्रों का इनोवेशन हब बन रहा है। वैज्ञानिक कह रहे हैं, हरित क्रांति, दूध क्रांति के बाद यह तीसरी बड़ी क्रांति। देश में ही जरूरत के वेंटिलेटर, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, N-95 मास्क, आरटीपीसीआर किट रोज बनने लगे। यह जानना देश के पुरुषार्थ, कर्म, संकल्प और क्षमता को समझना है।
इसी तरह आईएएस तरुण पिथोडे की पुस्तक है, ‘द बैटल अगेंस्ट कोविड : डायरी ऑफ ए ब्यूरोक्रेट’ (2022)। इस महासुनामी को नियंत्रित करने की यह अनकही महागाथा है। कोविड के उस भयावह दौर में तरुण भोपाल में (2019-20) कलेक्टर थे। उन्होंने उन भयावह क्षणों में देश भर में फैले अपने आईएएस मित्रों से हुई बातों का विवरण दिया है। तरुण अनजाने नायकों की झलक देते हैं।
चाहे असम के ग्वालपाड़ा की डीसी वरणाली हों या झाड़ग्राम (बंगाल) की कलेक्टर आयशा रानी, सभी नई इबारत लिखने में लगे थे। बांका (बिहार) के जिलाधिकारी कुंदन कुमार के अभिनव प्रयोगों ने स्थिति बदली। अन्य राज्यों से लौटे लोगों ने नई जिंदगी शुरू की। नोएडा, सूरत व अन्य हिस्सों से घर आए लोगों ने ‘नवप्रवर्तन’ के तहत नए युग की नींव डाली।
ऐसे ही प्रेरक तथ्यों से भरी प्रियम गांधी मोदी की पुस्तक है, ‘ए नेशन टु प्रोटेक्ट : लीडिंग इंडिया थ्रू कोविड क्राइसिस’ (2022)। उन दिनों विशेषज्ञों और विदेशी प्रकाशनों ने भारत के ‘कयामत’ के दौर की चर्चा की। तब आत्मनिर्भरता के संकल्प से चीजों ने करवट ली। बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियां अपनी शर्तों से देश को बंधक बनाना चाहती थीं। पर केंद्र ने फाइजर, मॉडर्ना वगैरह से चर्चा बंद नहीं की। भारत ने इस चाल को समझा। स्वदेशी टीके का सपना साकार किया। 2021 के मध्य तक भारत 80 लाख टीके रोज बनाने लगा।
रोबिन शर्मा अपनी नई किताब में इंसानी जज्बात, संकल्प, क्षमता समझने के लिए ऋषि पतंजलि को उद्धृत करते हैं। पतंजलि कहते हैं, जब आप किसी महान मकसद से प्रेरित होते हैं, तो मस्तिष्क अपनी सीमाओं के पार जाता है। ऊर्जा, चेतना, प्रतिभा जीवंत हो जाते हैं। ऐसे ही मानस से देश ने इस दौर का मुकाबला किया। मौत के फन पर भारत ने कैसे नई लकीर खींची, असम का एक विवरण तरुण पिथोडे की पुस्तक में है।
असम के ग्वालपाड़ा की कलक्टर ने एक काम सौंपा इंजीनियर को। रातोंरात अनेक शौचालय बनाने का। सुबह प्रगति देख कर स्तब्ध। पूछा कैसे हुआ? इंजीनियर ने कहा, मैडम हम लाचित की धरती के हैं। हमारे लिए कोई काम असंभव नहीं। लाचित बरफूकन इतिहास नायक हैं, जिन्होंने सगे चाचा का मुल्क के प्रति फर्ज न अदा करने के कारण सिर उतार लिया था।
बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियां अपनी शर्तों से देश को बंधक बनाना चाहती थीं। पर केंद्र सरकार ने फाइजर, मॉडर्ना वगैरह से चर्चा बंद नहीं की। चाल को समझा। स्वदेशी टीके का सपना साकार किया। 2021 के मध्य तक हम 80 लाख टीके रोज बना रहे थे।
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