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अक्षय/ आंवला नवमी है इस दिन को शास्त्रों में धातृ या धात्री और आंवला नवमी क्‍यों  कहा जाता है  - श्रीनारद मीडिया

अक्षय/ आंवला नवमी है इस दिन को शास्त्रों में धातृ या धात्री और आंवला नवमी क्‍यों  कहा जाता है 

अक्षय/ आंवला नवमी है इस दिन को शास्त्रों में धातृ या धात्री और आंवला नवमी क्‍यों  कहा जाता है

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आलेख – धर्मेंद्र रस्तोगी, स्वतंत्र पत्रकार

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

आज 21 नवम्बर 2023 को कार्तिक शुक्ल नवमी यानि अक्षय/ आंवला नवमी है इस दिन को शास्त्रों में धातृ या धात्री और आंवला नवमी भी कहा जाता है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान बताया गया है।

 

मान्यता है कि अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु एवं शिव जी का निवास होता है। इसलिए अक्षय नवमी के दिन प्रातः उठकर धातृ के वृक्ष के नीचे साफ-सफाई करनी चाहिए। आंवले के वृक्ष की पूजा दूध, फूल एवं धूप से करनी चाहिए। यह पर्व हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है।अक्षय नवमी का शास्त्रों में वही महत्व बताया गया है जो वैशाख मास की तृतीया का है।

शास्त्रों के अनुसार अक्षय नवमी के दिन किया गया पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है। इस दिन जो भी शुभ कार्य जैसे- दान, पूजा, भक्ति, सेवा किया जाता है उनका पुण्य कई जन्मों तक प्राप्त होता है। इसी प्रकार इस दिन कोई भी शास्त्र विरूद्घ कार्य किया जाए तो उसका दंड भी कई जन्मों तक भुगतना पड़ता है। इसलिए अक्षय नवमी के दिन ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए।

 

जिससे किसी को कष्ट पहुंचे। इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर ब्राह्मणों को खिलाना चाहिए इसके बाद स्वयं भोजन करना चाहिए। भोजन के समय पूर्व दिशा की ओर मुंह रखें। शास्त्रों में बताया गया है कि भोजन के समय थाली में आंवले का पत्ता गिरे तो यह बहुत ही शुभ माना जाता है। थाली में आंवले का पत्ता गिरने से यह माना जाता है धातृ के वृक्ष की पूजा एवं इसके वृक्ष के नीचे भोजन करने की प्रथा की शुरूआत करने वाली माता लक्ष्मी मानी जाती हैं।

इस संदर्भ में कथा है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर भ्रमण करने आयीं। रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी एवं बेल का गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है। क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है, तो बेल शिव को अतिप्रिय है।

आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिन्ह मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले की वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। इसी समय से यह परंपरा चली आ रही है।

 

अक्षय नवमी के दिन अगर आंवले की पूजा करना और आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव नहीं हो तो इस दिन से आंवला जरूर खाना प्रारंभ कर देना चाहिए। क्योंकि इस समय से आंवला आना प्रारम्भ हो जाता हैं जो कि आंवला एकादशी (होली से 4 दिन पहले ) तक हरा मिलता है। इस समय ताजे कम से कम 1 आंवले का सेवन जरूर करे इसके बाद एकत्रित कर रख ले व अगले आमलकी नवमी तक मुरब्बे या सुखाकर नित्य प्रयोग करना चाहिए क्योकि आमला एक ऐसी औषधि है जो आपको बुढापा नहीं आने देती हैं।

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