सभी बच्चे स्वभाव से अच्छे होते हैं। उस अच्छे स्वभाव को उभारने, सींचने-संजोने और विकसित करने की जरूरत है।”’तोत्तो -चान’ तेत्सुको कुरोयानागी

सभी बच्चे स्वभाव से अच्छे होते हैं। उस अच्छे स्वभाव को उभारने, सींचने-संजोने और विकसित करने की जरूरत है।”’तोत्तो -चान’ तेत्सुको कुरोयानागी

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

…तोमोए स्कूल के हेडमास्टर श्रीकोबायशी का यह भरोसा अंत तक बना रहा। अंत को विस्तार दिया खिड़की से दुनिया निहारने वाली लड़की तोत्तो-चान ने।
दुनिया के ग्लैमर से इतर अपना काम करना है। आसपास के शोर के साथ बिना किसी प्रतिक्रिया के अपना काम करना है। भीड़ हो, अकेले हों…बिना किसी की परवाह किए अपना काम करना है। तमाम तरह की मायावी क्रियाओं के सामने भी चुप होकर अपना काम करना है। तारीफ और उपेक्षा, दोनों में ही तटस्थ होकर काम करना है…
रोज की तरह आज पूरे दिन ऑफिस में रंग भरते रहे। निकलते-निकलते कह रहे हैं- ‘अब कोई काम छूटा नहीं है।’
दोपहर में फाइलों के बीच से अचानक कहते हैं-
‘रश्मि! अच्छे से काम करना है। तीन साल से ज्यादा शोध में नहीं लगाना है।’


मैं खीझ उठी। आज के दिन भी यही बात। अरे! कुछ और कहते। हाँ! कहने भर की देरी और पार्टी के लिए कह दिया…’,जाओ! तुम लोगों को जो भी खाना है, ले लो।’
बात यहाँ तक ठीक है। लेकिन यह कहना कि, ‘तुम लोग ऑर्डिनेंस ठीक से पढ़ लो, अपनी-अपनी छुट्टियाँ उसी के अनुसार लेना।’
सच, मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। आपके पास और कोई बात नहीं है, मैं सोच रही थी।
आख़िर, आज का काम खत्म हुआ। फोटू लेने के समय भी बचे रह गये काम के बारे में ही सोचा होगा।(मुझे ऐसा लगता है।)


यह राजेन्द्र सर हैं। हिन्दी विभाग के अध्यक्ष, ‘मानविकी एवं भाषा संकाय’ के अधिष्ठाता, ‘लोक कला एवं संस्कृति निष्पादन केंद्र’ के समन्वयक। (मैं तो गज़ब लालची हूँ। यह लिखना कैसे भूल सकती हूँ ‘मेरे शोध निर्देशक’)
शोध निर्देशक की भूमिका में पहली बार जो कहा-
‘रश्मि! तुम कभी किसी के लिए गलत नहीं सोचोगी और न कुछ करोगी।’
हर बार कहते हैं,’खूब पढ़ो, ईमानदारी से अपना काम करो।’
हम सबकुछ कर सकते हैं लेकिन किसी का भाग्य नहीं लिख सकते हैं। आपसे सीखा है-
“मांगी हुई खुशियों से किसका भला होता है
जो आपका है ज़रूर अदा होता है।”
मेहनत,ईमानदारी और अपने काम के प्रति लगन दुनिया में कहीं भी रचने की, सीखने की, रंगने की शक्ति है। आपने जिसके लिए मेहनत की है, दुनिया का कोई भी शोर उस रास्ते में अँधेरा नहीं भर सकता है।
शोर होगा, बद्दुआ मिलेगी, घृणा-उपेक्षा से नवाजा जाएगा लेकिन प्राप्य तो आपका कार्य है। अपने आईने के सामने खड़े होने की शक्ति…खुद से बात करने का साहस।


बीते दो सालों में बहुत कुछ सीखा है आपसे। सीख रही हूँ…सीखने से कोई रोक भी नहीं सकता।
आज उत्सव का दिन है। आपके कार्यों के लिए ‘भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान’,शिमला से बुलावा आया है। ‘लोक रंग’ से आप सभी को जोड़ेंगे। दो साल की यह यात्रा आपके लिए सुखद हो। आप स्वस्थ और सक्रिय रहें।
मुबारक़ दिन की मुबारक़बाद सभी की ओर से।
‘नदी के द्वीप’ उपन्यास की पंक्ति याद आ रही है-
“तुम्हें जो राह दिखती है उस पर चलो, गौरा। धैर्य के साथ, साहस के साथ और हां जो तुमसे सहमत नहीं हैं उनके प्रति उदारता के साथ जो बाधक हैं उनके प्रति करुणा के साथ।”

आभार-रश्मि सिंह

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