सारे तीर्थ बार-बार, गंगासागर एक बार….
हुगली नदी के किनारे लगने जा रहा है गंगा सागर मेला
गंगा सागर स्नान से 100 अश्वमेध यज्ञ जैसा पुण्य फल मिलता है
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
मकर संक्रांति के पावन अवसर पर गंगा सागर की तीर्थ यात्रा और स्नान का अत्यधिक महत्व है. हिंदू धर्म में गंगा सागर को मोक्ष का स्थान माना गया है. इस पर्व पर लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं और मोक्ष की प्राप्ति की इच्छा के साथ सागर संगम में पुण्य स्नान करते हैं. मकर संक्रांति के दौरान गंगा-यमुना के किनारों पर मेले आयोजित होते हैं. देश का प्रसिद्ध गंगा सागर मेला भी इस अवसर पर आयोजित किया जाता है.
गंगा सागर मेला मकर संक्रांति से कुछ दिन पूर्व आरंभ होता है और पर्व के समापन के बाद समाप्त होता है. इस वर्ष मकर संक्रांति पर गंगा सागर में स्नान 14 जनवरी को होगा. वहीं, गंगा सागर मेला 10 जनवरी 2025 से प्रारंभ होकर 18 जनवरी 2025 तक चलेगा. इस अवधि में लाखों श्रद्धालु यहां आकर स्नान और धार्मिक अनुष्ठान करेंगे.
गंगा सागर स्नान का महत्व
मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा सागर में स्नान को अत्यधिक पुण्यकारी माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन यहां स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. गंगा सागर में स्नान के पश्चात श्रद्धालु सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं और समुद्र में नारियल तथा पूजा सामग्री का समर्पण करते हैं. ऐसा विश्वास है कि मकर संक्रांति पर गंगा सागर में स्नान करने से इच्छाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है. गंगा सागर का मेला हुगली नदी के उस किनारे पर आयोजित होता है, जहां गंगा नदी बंगाल की खाड़ी में मिलती है. यही संगम स्थल गंगा सागर के नाम से जाना जाता है.
मकर संक्रांति पर क्यों लगता है गंगासागर मेला
मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा सागर में स्नान का पौराणिक महत्व अत्यधिक है. पौराणिक कथा के अनुसार, जब माता गंगा भगवान शिव की जटा से निकलकर धरती पर आईं, तब उन्होंने भागीरथ के साथ मिलकर कपिल मुनि के आश्रम में जाकर सागर में विलीन हो गईं. यह घटना संक्रांति के दिन हुई थी. मां गंगा के पवित्र जल से राजा सागर के साठ हजार शापित पुत्रों का उद्धार हुआ. इस महत्वपूर्ण घटना की स्मृति में गंगा सागर तीर्थ का नाम प्रसिद्ध हुआ. यहां हर वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है. मान्यता है कि इस पवित्र दिन स्नान करने से 100 अश्वमेध यज्ञ करने के समान पुण्य की प्राप्ति होती है.
कब और कहां लगता है ये मेला?
गंगासागर मेला या गंगा सागर स्नान का आयोजन हर साल जनवरी महीने में मकर संक्रांति के आसपास होता है. हिंदुओं धर्म बीच इसका बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है. हर साल, गंगासागर मेले में दुनिया भर से लाखों लोग स्नान के लिए पहुंचते हैं. यह मेला पश्चिम बंगाल राज्य के सागर द्वीप या ‘सागर द्वीप’ में आयोजित किया जाता है. गंगासागर मेला मकर संक्रांति से कुछ दिन पहले शुरू होता है, और संक्रांति होने के बाद इसका समापन हो जाता है. यह मेला साल में एक ही बार लगता है.
हिंदू धर्म में बहुत खास है गंगा सागर स्नान
गंगा सागर स्नान हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है. बंगाल में ये मेला बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. मान्यता है कि गंगा सागर स्नान से 100 अश्वमेध यज्ञ जैसा पुण्य फल मिल जाता है. इसके साथ ही पापों से मुक्ति मिलती है. ज्योतिष शास्त्र की माने तो यह वह दिन है, जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है. हिंदू संस्कृति के अनुसार, यह दिन अच्छे समय की शुरुआत का प्रतीक है. इसके बाद सभी शुभ कार्य जैसे विवाह, सगाई, और अन्य चीजें की शुरुआत की जा सकती हैं.
कैसे करते हैं गंगा सागर स्नान?
1. भक्त सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठते हैं, और गंगा स्नान के दिन गंगा नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं. वे भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इसके बाद अनुष्ठान शुरू होता है. 2. अनुष्ठान पूरा करने के बाद, लोग कपिल मुनि की पूजा करते हैं और देसी घी का दिया जलाते हैं. 3. कुछ लोग गंगा स्नान के दिन यज्ञ और हवन भी करते हैं. 4. श्रद्धालु गंगा स्नान के दिन उपवास भी रखते हैं. 5. गंगा स्नान के इस दिन भक्त देवी गंगा के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं और अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगते हैं. जो उन्होंने जाने-अनजाने में किए होंगे.
क्या है गंगा सागर मेले का पौराणिक इतिहास?
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, एक बार राजा सगर विश्व विजय के लिए अश्वमेध यज्ञकर रहे थे. स्वर्ग के स्वामी,राजा इंद्र ने यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया. इसके बाद घोड़े को पाताल लोक में कपिल मुनि के आश्रम के पास बांध दिया.जब राजा सगर के पुत्र घोड़े को लेने आए और उसे कपिल मुनि के आश्रम के पास पाया, तो उन्होंने कपिल मुनि के साथ चोर जैसा व्यवहार किया. कपिल मुनि (भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं) इससे गुस्सा हुए.
उन्होंने लड़कों को श्राप देकर उन्हें राख में बदल दिया. राजा सगर के पोते भगीरथ ने वर्षों तक तपस्या की और पवित्र गंगा से अपने पूर्वजों की राख पर प्रवाहित करने का अनुरोध किया. पवित्र गंगा ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और स्वर्ग से नीचे आकर राजा सगर के पुत्रों की राख को धो डाला.उनके पूर्वजों की आत्माओं को मुक्ति मिल गयी. यही कारण है कि मोक्ष पाने और पुराने पापों से मुक्ति पाने के लिए लाखों लोग पहुंचते हैं.
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