यह सब भारतीय जनता पार्टी की साज़िश है-ममता बनर्जी

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

रामनवमी पर देश के कुछ राज्यों में हिंसा हुई। महाराष्ट्र, गुजरात और पश्चिम बंगाल में रामनवमी की शोभायात्रा पर पथराव और तोड़फोड़ की कई घटनाएँ हुईं। गुजरात के वडोदरा, पश्चिम बंगाल के हावड़ा और महाराष्ट्र के औरंगाबाद जो अब शंभाजीनगर हो गया है, वहाँ अलग- अलग इलाक़ों में झड़पें हुईं। गुजरात में जो हुआ, उपद्रवियों ने हमला किया। महाराष्ट्र में भी उपद्रवियों ने ही अशांति फैलाई लेकिन पश्चिम बंगाल में मामला ही अलग है।

वहाँ की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि यह सब भारतीय जनता पार्टी की साज़िश है। वह हर मौक़े पर, हर त्योहार पर ऐसा करती है ताकि पश्चिम बंगाल को अशांत दिखाया जा सके। यह बताया जा सके कि पश्चिम बंगाल की क़ानून व्यवस्था ठीक नहीं है। जब उनसे पूछा गया कि पुलिस भी इस दौरान कुछ क्यों नहीं कर पाई तो ममता का जवाब था कि इन लोगों ने यानी शोभायात्रा निकालने वालों ने इतना उपद्रव मचाया कि पुलिस भी कुछ कर नहीं पा रही थी।

बल्कि ममता ने यह भी कहा कि भाजपा की ओर से दंगे फैलाने के लिए लोग बाहर से बुलाए गए हैं।

यह पूछने पर कि अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ उपद्रवी तत्वों ने शोभायात्रा पर पथराव किया और कुछ वाहनों को भी फूंक डाला? ममता ने कहा नहीं। अल्पसंख्यक समुदाय ने ऐसा कुछ भी नहीं किया क्योंकि वे सब तो रमज़ान और रोज़ा में व्यस्त हैं। उनके पास इस सबके लिए वक्त ही नहीं है।

कुल मिलाकर शोभायात्रा पर पथराव और वाहनों पर हमलों का दोष भी ममता शोभायात्रा निकालने वालों पर यानी हिन्दुओं पर ही मढ़ रही हैं। मुख्यमंत्री जैसे ज़िम्मेदार पद पर बैठकर तो कम से कम इस तरह के एकतरफ़ा बयान नहीं देना चाहिए। ममता का कहना तो यह भी है कि मुस्लिम इलाक़ों से शोभायात्रा निकाली ही क्यों? अब क्या ममता जी इलाक़ों का भी बँटवारा कर देना चाहती हैं? कि ये इलाक़ा मुस्लिमों का है, यहाँ हिन्दू न जाएँ और वो इलाक़ा हिन्दुओं का है, वहाँ मुस्लिम न जाएँ!

इस तरह के एकतरफ़ा विचार कभी भी समग्र समाज का भला नहीं कर सकते। बल्कि इस तरह के बयानों के कारण हिंसात्मक घटनाओं को बल मिलता है और हिंसा फैलाने वाले असामाजिक तत्वों को प्रोत्साहन भी मिलता है। यही नहीं, ज़िम्मेदार राजनेताओें के बयानों से ही पुलिस और प्रशासन की मंशा भी जब तब बदलती रहती है। पुलिस भी वैसा ही व्यवहार करने लगती है जैसे बयान ऊपर से आते हैं। कम से कम ऐसी बयानबाज़ी से हर किसी को बचना चाहिए, चाहे वह शोभायात्रा का अवसर हो या जुलूस का मौक़ा।

 

 

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