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अल्ला अलख एकै अहैं , दूजा नाही कोय : जगजीवन साहब

अल्ला अलख एकै अहैं , दूजा नाही कोय : जगजीवन साहब

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श्रीनारद मीडिया, लक्ष्‍मण सिंह, बाराबंकी (यूपी):

यह जनपद आदिकाल से ही अपनी वक्ष स्थली में अपने गौरवशाली अतीत को संजोए हुए है जहां पर अनेकों सूफी संतों व सिद्ध महात्माओं ने जन्म लेकर के संपूर्ण मानव जाति को सांप्रदायिक सद्भावना का संदेश दिया । इन सिद्ध महात्मा में जो रब है वही राम है का संदेश देने वाले अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त देवा के सूफी संत हाजी वारिस अली शाह बाबा कस्बा बदोसराय के हजरत मलामत शाह बाबा हेतमापुर के बाबा नारायन दास श्री कोटवा धाम के सतनामी संप्रदाय के संस्थापक समर्थ साई जगजीवन साहब ने सांप्रदायिक सद्भावना की अलख जगाई ।

आज से करीब साढे 350 वर्ष पहले जब देश में सबसे क्रूरतम और अत्याचारी औरंगजेब का शासन था लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए तरह-तरह की यातनाएं दी जाती थी समाज में छुआछूत पाखंड सती प्रथा बाल विवाह मूर्ति पूजा तथा अन्य कर्मों का प्रचलन अपनी चरम सीमा पर था ऐसी विषम परिस्थितियों में ग्राम सरदहा की पवित्र माटी में ठाकुर गंगाराम के यहां विक्रमी संवत 1727 माघ मास की शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि को समर्थ साई जगजीवन साहब का अवतार हुआ आप की माता का नाम केवला देवी था जो चंदेल वंशी क्षत्रिय कहलाते थे 18 वर्ष की अवस्था में आपका विवाह मोतिन देवी के साथ हुआ जिससे आपको चार पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई चार पुत्र स्वामी जी के समय में ही स्वर्गवासी हो गए आप के पुत्रों में जलाली दास उच्च कोटि के संत हुए हैं ।

करीब 38 वर्ष की अवस्था में गोंडा जिले के गुड़सरी नामक ग्राम में विश्वेश्वर पुरी से आपने दीक्षा लिया तत्पश्चात 4 पावा 14 गद्दी 33 महंत 36 सुमिरनी सहित आपने सतनामी संप्रदाय की नींव डाली जिसमें सभी वर्ग के लोगों को स्थान मिला । जीवन प्रयंत सांप्रदायिक सद्भावना का संदेश देते हुए करीब 90 वर्ष की अवस्था में आप विक्रमी संवत 1817 में ब्रह्मलीन हो गए ।

जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर रामनगर टिकैतनगर रोड पर कोटवाधाम में समर्थ साई जगजीवन साहब की तपोस्थली है जहां पर माघ मास की शुक्ल पक्ष सप्तमी व कार्तिक मास की पूर्णिमा को विशाल मेला लगता है जिसमें देश के कोने-कोने से सतनामी संप्रदाय के भक्त आकर माथा टेक कर मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं लोगों के द्वारा सच्चे मन से मांगी गई मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है ऐसा लोगों का विश्वास है ।

गृहस्थ जीवन में रहकर ईश्वर की भक्ति किए जाने पर बल देते हुए आपने कहा –

हर जोतै हरि का भजै , सत्य का दाना खाय ।
जगजीवनदास सांची कहै सो नर बैकुंठ जाय ।।

एक ईश्वर की भक्ति पर बल देते हुए आपने कहा –

अल्ला अलख एकै अहै , दूजा नाही कोय ।
जगजीवन जो दूजा कहै, दोजख परखिए सोय ।।

सभी धर्मों की कौमी एकता पर बल देते हुए आपने सही कहा –

हांड़ चाम का पीजरा , तामे कियो अचार ।
एक बरन मा सब अहैं, ब्राह्मण तुरक चमार ।

कलयुग में ब्राह्मणों के द्वारा मांस भक्षण का विरोध करते आप ने संदेश दिया –

पोथी पढि पढि जग मुआ, पंडित भये प्रवीन ।
नेम अचार षट कर्म करि, भछै मांस अरु मीन ।।

कलयुग केरे बृहाना , सूखे हाड़ चबाहि ।

पै लागत सुख मानही राम कहत मरि जाहि ।।

इस प्रकार से स्वामी जी का जीवन दर्शन आज भी लोगों के मध्य में प्रासंगिक बना हुआ है स्वामी जी का विचार था कि पत्थर और कांस्य की पूजा से मोक्ष प्राप्ति संभव नहीं है ईश्वर की सत्य रूप में की गई भक्ति उसके मोक्ष का कारण बन सकती है ।

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