देश में कृषि उत्पादकता के साथ-साथ उत्पादन में भी वृद्धि हुई है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत आज कृषि उत्पादों के मामले में आत्मनिर्भर ही नहीं है, बल्कि कई जिंसों का निर्यात भी करता है। 1961 में जब देश अकाल के मुहाने पर था तब खाद्य सुरक्षा तो दूर जनता का पेट भरने के लिए पर्याप्त अनाज भी नहीं था। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकारों ने प्रयास शुरू किए। बांध बने, सिंचाई की व्यवस्था हुई और तकनीक के समावेश के साथ कृषि पैदावार में वृद्धि होती चली गई।

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दुग्ध उत्पादन के मामले में पहले स्थान पर: दुग्ध और दुग्ध उत्पाद निर्माता ब्रांड अमूल के संस्थापक वर्गीज कुरियन ने आपरेशन फ्लड की शुरुआत की थी। इसे श्वेत क्रांति भी कहा जाता है। इसके दम पर 1998 में अमेरिका को पछाड़ भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बना। यूएस डिपार्टमेंट आफ एग्रीकल्चर के मुताबिक, 2021 में भारत ने 19.9 करोड़ टन दुग्ध उत्पादन किया था। हम न सिर्फ दुनिया के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक हैं, बल्कि वैश्विक उत्पादन में 20 फीसद से ज्यादा हिस्सेदारी रखते हैं।

हरित क्रांति: कृषि विज्ञानी नार्मन बोरलाग और एमएस स्वामीनाथन ने 1965-66 में देश में हरित क्रांति की शुरुआत की। उन संसाधनों का विकास किया, जिनके जरिये कृषि उत्पादन को बढ़ाया जा सकता था। आज कृषि उत्पादकता के साथ-साथ उत्पादन में भी वृद्धि हुई है।

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पीली व नीली क्रांति: पीली क्रांति देश में तिलहन के उत्पादन से संबंधित है, जबकि नीली क्रांति मछलियों और अन्य जलीय जीव पालन से संबंधित है। वैश्विक मछली उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी सात फीसद से ज्यादा है। मत्स्य उद्योग भारत की जीडीपी में 1.1 और कृषि आधारित जीडीपी में 5.15 फीसद से ज्यादा का योगदान देता है। मत्स्य पालन में भारत विश्व में दूसरे पायदान पर है।

हमें स्वयं को आज के दिन एक शांतिपूर्ण किंतु ऐसे सपने को साकार करने के प्रति पुन: समर्पित करना चाहिए जिसने हमारे राष्ट्रपिता और स्वतंत्रता संग्राम के अनेक नेताओं और सैनिकों को अपने देश में एक वर्गहीन, सहकारी, मुक्त और प्रसन्नचित समाज की स्थापना के सपने को साकार करने की प्रेरणा दी। हमें इस दिन यह याद रखना चाहिए कि आज का दिन आनंद मनाने की तुलना में समर्पण का दिन है।

डा राजेंद्र प्रसाद, देश के पहले राष्ट्रपति

भारत ने हजारों वषों से शांति पूर्वक अपना अस्तित्व बनाए रखा। यहां जीवन तब भी था जब ग्रीस अस्तित्व में नहीं आया था . . . इससे भी पहले जब इतिहास का कोई अभिलेख नहीं मिलता और परंपराओं ने उस अंधियारे भूतकाल में जाने की हिम्मत नहीं की। तब से लेकर अब तक विचारों के बाद नए विचार यहां से उभर कर आते रहे और प्रत्येक बोले गए शब्द के साथ आशीर्वाद और इसके पूर्व शांति का संदेश जुड़ा रहा। हम दुनिया के किसी भी राष्ट्र पर विजेता नहीं रहे हैं और यह आशीर्वाद हमारे सिर पर है और इसलिए हम जीवित हैं।

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