क्या मैं काल कवलित हो गई – जिप्सी कैफ़े।

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युवा दिवस पर विशेष आलेख।

✍️राजेश पाण्डेय

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जी नमस्कार। मैं बिहार में सीवान नगर स्थित जिप्सी कैफ़े हूं। मैं अपने भौगोलिक स्थिति से आपको अवगत कराउं तो मेरे पूर्व दिशा में सड़क एवं अहमदिया मस्जिद है जबकि पश्चिम में सड़क व इंडोर स्टेडियम का परिसर है तो उत्तर में इंडोर स्टेडियम और पश्चिम में सड़क एवं डीएवी राजकीय मध्य विद्यालय व कस्तूरबा विद्यालय आवास स्थित है। मेरी ऐतिहासिक स्थिति यह हैं कि मैं सीवान में पहली बार कैफ़े की संस्कृति लेकर आई थी।

कैफे मूल रुप से फांसीसी शब्द है।

कैफ़े मूल रूप से फ्रांसीसी शब्द है जिसका अर्थ काॅफी होता है। शब्द बीज होते हैं, जो अपने साथ वृक्षवट संस्कार को लेकर उपस्थित होते हैं।
मैं मूल रूप से बड़े महानगरों की तरह सीवान में भी 21वीं सदी के पहले दशक से एक महानगरीय संस्कृति का प्रवेश करना चाहती थी। यही वह दौर था जब मोबाइल युवा पीढ़ी के हाथ में आ गई थी और वह नए-नए उच्श्रृंखलता के तहत अपने नये-नये कार्य करने हेतु आतुर था।

मेरी लोकप्रियता का आलम यह था कि मेरी फुल बुकिंग सदैव हुआ करती थी। पहली बार मेरे पर्दे लगे केबिन में मित्र- दोस्त- यार अपने-अपने पुरुष मित्र, महिला मित्र के साथ आते थे, घंटे व्यतीत करते थे, कई प्रकार के जलपान एवं भोजन का आनंद उठाते थे। मेरे अहाते में संध्या का समय, भौतिक वातावरण, लाइट की चमक, कृत्रिम रोशनी से परिसर चमक उठता था। खुले आकाश के तले‌ चांदनी रात में रात्रि भोजन व जलपान का उत्तम प्रबंध होता था। देर रात तक यहां गोष्टी- मंत्रणाओं का दौर चला‌ करता था।


नगर के तनाव में मेरी संलिप्तता होती रही।

दक्षिण टोला हमारे निकट होने के कारण कभी-कभी थोड़ी बहुत तनाव की स्थिति पैदा हो जाती थी परंतु हमारे संचालक अशोक तिवारी जी इसे बखूबी संभाल लिया करते थे।
आवश्यकता पड़ने पर पूरे अधिकारियों के जलपान एवं भोजन की व्यवस्था हमारे यहां से उपलब्ध कराई जाती थी। हमारे अहाते में कार्यक्रम करने हेतु इंडोर स्टेडियम का परिसर आगुंतकों को और मनोहारी बनाता था। आपको तो यह अवश्य याद होगा कि हिंदुस्तान दैनिक समाचार पत्र के द्वारा कवि सम्मेलन इसी परिसर में स्वर्गीय राजदेव रंजन ने कराया था। इसमें एक बड़ा सा कमरा था जिसे सभागार के रूप में उपयोग होता था। शादी- विवाह एवं छोटे-बड़े कार्यक्रम का भी मैं साक्ष्य प्रस्तुत करती रहती थी।

बड़े-बड़े अच्छे-बुरे कार्य का मैं साक्ष्य रही।

हमारे परिसर में ही बैठकर सीवान के बड़े-बड़े कार्य हेतु योजना बनाई जाती थी। हमारे संचालक अशोक तिवारी जी का कद काफी ऊंचा हो गया था। यही वह समय था जब सीवान में बड़ी तेजी से भू-माफिया पैर पसार रहे थे। हमारे संचालक भी भूमि में पैसा निवेश कर रहे थे। सीवान में उस‌ समय तेज-तर्रार सुधीर कुमार एसडीपीओ अपने पद पर थे, वहीं नगर थाने में पोलिनदर सिंह, महेश शर्मा, जेपी शर्मा जैसे पुलिस निरीक्षक भी तैनात रहे। यह वह दौर था जब बिहार में नीतीश की सरकार आ गई थी और अपराध का तरीका बदलता जा रहा था। अब माफिया भूमि के कारोबार में लिप्त होते जा रहे थे।

दिल्ली से सीवान आने पर आयुर्वेदिक महाविद्यालय के छात्रों के साथ लेखक भी कभी-कभी रात्रि भोजन हेतु मेरे परिसर में अपने कदमताल करते थे परन्तु उनकी पारखी नजर सब लोगों से अलग होती थी और ऐसा लगता था कि वह अपने अन्वेषण से हमारे बारे‌ में अवश्य कुछ ढूंढ रहे थे।

मेरा वैभव धूमिल होता गया।

बहरहाल एक दशक से अधिक समय तक मैं कई प्रकार की गतिविधियों का केंद्र बनी रही। हमारे यहां कहा भी गया है कि एक युग यानी बारह वर्ष का समय पर्याप्त होता है आपके लिए। इसके बाद अच्छे या बुरे कर्म भविष्य में आपके कार्य को लेकर प्रवेश करते है। समय बितने के साथ संचालक के पीछे कई तरह के लोग पड़ गए। मेरा अस्तित्व भी धूमिल होने लगा। मेरे बारे में कई तरह की खबरें भी आने लगी और मेरा वैभव का अवसान निकट आने लगा।

अंततः विधानसभा में प्रश्न उठाया गया और मेरे किराए को कम बताते हुए राजस्व की हानि का तर्क दिया गया। ऐसे में मेरे किराया को बढ़ाकर हजार नहीं, लाख रुपए में कर दिया गया। अब इतना किराया सरकार को देकर कौन कार्य करने वाला था? अब मैं बंद पड़ी हूं आप मेरी हालत को अच्छी तरह देख सकते हैं।आप सभी से आग्रह है कि मेरे बारे में सोचिए ताकि मेरा वैभव लौट आये।
आपकी जिप्सी कैफ़े।

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