रूस-यूक्रेन विवाद के बीच कई चीजें हो सकती हैं महंगी!
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
रूस-यूक्रेन सैन्य संघर्ष (Russia Ukraine War) से देश के व्यापार पर असर पड़ेगा। निर्यातकों का कहना है कि इस वॉर से खेपों की आवाजाही, भुगतान और तेल की कीमतों पर असर पड़ना स्वाभाविक है, जिससे कई चीजें महंगी हो जाएंगी। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन (FIEO) ने कहा कि उन्होंने निर्यातकों से कहा है कि वे अपनी खेप या माल को उस क्षेत्र में रखें जो काला सागर का रास्ता अपनाते हैं। FIEO के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा कि रूस, यूक्रेन और अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों में स्वेज नहर और काला सागर से माल की आवाजाही होती है। उन्होंने कहा कि व्यापार पर इसका कितना प्रभाव पड़ेगा यह युद्ध की अवधि पर निर्भर करेगी।
सहाय ने कहा, यह व्यापार के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि अभी COVID-19 महामारी से उबरने का समय था और व्यापार इससे उबर रहे थे। निर्यातक उस क्षेत्र में अपने व्यापार से निपटने में सतर्क हैं। यह लड़ाई माल की आवाजाही, भुगतान और तेल की कीमतों दोनों को प्रभावित करेगा।
मुंबई के एक निर्यातक शरद कुमार सराफ ने कहा कि मौजूदा संकट से देश के निर्यात पर असर पड़ेगा, क्योंकि पश्चिम रूस पर प्रतिबंध लगा रहा है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा यूक्रेन में एक सैन्य अभियान की घोषणा के बाद यूक्रेन में स्थिति बिगड़ गई है, जिससे दोनों देशों के बीच पूर्ण पैमाने पर सैन्य टकराव की संभावना पर गंभीर चिंताएं पैदा हो गईं। पुतिन की घोषणा के बाद, यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने कहा कि एक ‘आक्रमण’ यूरोप में “बड़े युद्ध” की शुरुआत हो सकता है।
रूस से भारत में क्या होता है आयात-निर्यात
भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार इस वित्त वर्ष में अब तक 9.4 अरब अमेरिकी डॉलर रहा, जो 2020-21 में 8.1 अरब अमेरिकी डॉलर था। रूस से भारत ईंधन, खनिज तेल, मोती, कीमती या अर्ध-कीमती पत्थर, परमाणु रिएक्टर, बॉयलर, मशीनरी और यांत्रिक उपकरण, विद्युत मशीनरी और उपकरण और उर्वरक आयात करता है। जबकि भारत से रूस को प्रमुख निर्यात वस्तुओं में फार्मास्युटिकल उत्पाद, विद्युत मशीनरी और उपकरण, जैविक रसायन और वाहन शामिल हैं।
रूस-यूक्रेन संकट (Russia Ukraine Crisis) से भारत को वैश्विक बाजारों में अधिक गेहूं निर्यात करने का मौका मिल सकता है। सूत्रों ने कहा कि घरेलू निर्यातकों को इस मौके का फायदा उठाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत का केंद्रीय पूल 24.2 मिलियन टन है, जो बफर और रणनीतिक जरूरतों से दोगुना है। दुनिया के गेहूं के निर्यात का एक चौथाई से अधिक रूस और यूक्रेन से आता है। रूस गेंहू का विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक है, जिसका अंतरराष्ट्रीय निर्यात में 18 प्रतिशत से अधिक का योगदान है। 2019 में रूस और यूक्रेन ने मिलकर दुनिया के एक चौथाई (25.4 प्रतिशत) से अधिक गेहूं का निर्यात किया। सूत्रों ने कहा कि मिस्र, तुर्की और बांग्लादेश ने रूस के आधे से ज्यादा गेहूं खरीदा।
मिस्र दुनिया में गेहूं का सबसे बड़ा आयातक है। यह अपनी 100 मिलियन से अधिक की आबादी को खिलाने के लिए सालाना 4 अरब डॉलर से अधिक खर्च करता है। रूस और यूक्रेन मिस्र की आयातित गेहूं की 70 प्रतिशत से अधिक मांग को पूरा करते हैं। तुर्की रूसी और यूक्रेनी गेहूं पर भी एक बड़ा खर्च करने वाला देश है, जिसका 74 प्रतिशत आयात 2019 में उन दोनों देशों से 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आयात के साथ हुआ है।
सूत्रों ने कहा, यूक्रेन में संकट भारत को अधिक गेहूं निर्यात करने का अवसर दे सकता है, बशर्ते हम और अधिक निर्यात करें, क्योंकि हमारा केंद्रीय पूल 24.2 मिलियन टन है, जो बफर और रणनीतिक जरूरतों से दोगुना है।
सबसे अधिक डॉलर मूल्य के गेहूं का निर्यात करने वाले शीर्ष पांच देशों में रूस (7.9 अरब अमेरिकी डॉलर), संयुक्त राज्य अमेरिका (6.32 अरब अमेरिकी डॉलर), कनाडा (6.3 अरब अमेरिकी डॉलर), फ्रांस (4.5 अरब अमेरिकी डॉलर) और यूक्रेन (3.6 अरब डॉलर) शामिल हैं।
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