तनाव के बीच ड्रैगन का कानून वाला दांव,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
चीन ने एक नया सीमा कानून पास किया है जिसमें कहीं भी विस्तारवाद शब्द का जिक्र नहीं है। लेकिन इस कानून के जरिये चीन की सेना को अतिक्रमण की छूट दे दी है। जिससे वो अपनी सीमाओं की रक्षा के नाम पर सैन्य कानून कार्रवाई कर सकती है। ये कानून चीन की सरकार और सेना को ये अधिकार देता है कि वो अतिक्रमण रोकने के नाम पर एक्शन ले सकता है।
लेकिन सच्चाई ये है कि चीन खुद अतिक्रमण और विस्तारवाद की नीति पर चलता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या चीन का कानून भारत के लिए चिंता का विषय है, कब से ये कानून लागू होगा और इसका असर भारत-चीन सीमा विवाद पर कितना पड़ेगा। चीन को इस कानून की जरूरत आखिर क्यों पड़ गई। चीन के इस कानून की पूरी जानकारी लेना या समझना बहुत जरूरी है।
भारत ने जताई आपत्ति
भारत ने चीन पर ‘एकतरफा’ ढंग से नया भूमि सीमा कानून लाने के लिये निशाना साधते हुए कहा कि वह उम्मीद करता है कि चीन कानून के परिप्रेक्ष में ऐसा कोई कदम उठाने से बचेगा जिससे भारत चीन सीमा क्षेत्रों में स्थिति में एकतरफा ढंग से बदलाव आ सकता हो। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि चीन का कानून लाने का निर्णय चिंता का विषय है क्योंकि इस विधान का सीमा प्रबंधन पर वर्तमान द्विपक्षीय समझौतों तथा सीमा से जुड़े सम्पूर्ण प्रश्नों पर प्रभाव पड़ सकता है।
बागची ने कहा, ‘‘ चीन का एकतरफा ढंग से कानून लाने के निर्णय का सीमा प्रबंधन पर हमारी वर्तमान द्विपक्षीय व्यवस्थाओं तथा सीमा से जुड़े सवालों पर प्रभाव पड़ेगा जो हमारे लिये चिंता का विषय है।’’ उन्होंने कहा कि ऐसे ‘एकतरफा कदम’ का दोनों पक्षों के बीच पूर्व में हुई व्यवस्थाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए चाहे सीमा का सवाल हो या वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर अमन एवं शांति बनाये रखने का विषय हो। बागची ने कहा कि इसके साथ ही नया कानून पारित होने का हमारे विचार से तथाकथित रूप से 1963 के चीन पाकिस्तान सीमा समझौते को कोई वैधता नहीं मिलती है जिसे भारत सरकार लगातार अवैध और अमान्य कहती है.
चीन का इन देशों से बढ़ेगा टकराव
- भारत-चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है, ऐसे में कई भारतीय क्षेत्रों पर चीन अपना दावा करता रहा है। चीन ने न सिर्फ भारत के 43 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा किया है बल्कि वह देश के कई इलाकों पर अपने अवैध दावे करता है। जो तिब्बत-शिनजियांग को जोड़ने के साथ-साथ रणनीतिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण है। चीन अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का हिस्सा मानता है और इसके 90,000 स्क्वायर किलोमीटर पर अपना दावा करता है।
- चीन और म्यांमार 1960 के सीमा समझौते के आधार पर 2,185 किलोमीटर लंबा बॉर्डर साझा करते हैं। चीन ऐतिहासिक आधार पर म्यांमार के कुछ हिस्सों का दावा करता है।
- मंगोलिया, चीन के साथ 4677 किमी की सीमा साझा करता है, जो दोनों देशों के लिए सबसे लंबा है। चीन सीमा पर अपना दावा ठोकने से भी बाज नहीं आता।
- चीन और वियतनाम के बीच 1,300 किमी लंबी सीमा है। चीन ऐतिहासिक आधार पर वियतनाम के बड़े हिस्से पर दावा करता है।
- चीन यूं तो पूरे ताइवान पर ही दावा करता है, लेकिन विवाद विशेष रूप से मैकड्सफील्ड बैंक, पार्सल आइलैंड्स, स्कारबोरो शोअल, दक्षिण चीन सागर के कुछ हिस्सों, स्प्रैटली द्वीप समूह पर है।
- चीन और नेपाल 1,415 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं, जिसे 1961 की संधि के अनुसार सीमांकित किया गया था। 1788 से 1792 तक हुए चीन-नेपाल युद्ध के बाद भी ड्रैगन नेपाल के कुछ हिस्सों का दावा करता है।
- चीन-भूटान के बीच नया विवाद पूर्वी भूटान में स्थित सतेंग वन्यजीव अभयारण्य को लेकर है। दोनों देश 495 वर्ग किमी के विवादित क्षेत्र के साथ लगभग 470 किमी की सीमा साझा करते हैं।
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