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दिल्ली विश्वविद्यालय स्थित इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन। - श्रीनारद मीडिया

दिल्ली विश्वविद्यालय स्थित इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन।

दिल्ली विश्वविद्यालय स्थित इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन।

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दिल्ली के इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय में हिंदी विभाग की ओर से अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन।

महाविद्यालय अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

दिल्ली विश्वविद्यालय स्थित इन्द्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय में हिंदी विभाग एवं भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 01 एवं 02 अगस्त 2024 को किया गया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में लोक का योग और इतिहास में उसके उल्लेख के संदर्भ में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लोक की भूमिका विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में सर्वप्रथम गुरुवार को आए अतिथियों, शोधार्थीयों एवं छात्रों का पंजीकरण करते हुए फाइल, कार्यक्रम की विवरणिका, कलम, नोट बुक, सार-संक्षेपिका एवं भोजन हेतु कूपन का वितरण किया गया।

गौरतलब है कि इन्द्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। इस महाविद्यालय की स्थापना 7 फरवरी 1924 को हुई थी और यह दिल्ली विश्वविद्यालय का प्रथम महिला महाविद्यालय है। इसलिए इस समारोह की गरिमा और बढ़ जाती है।

समय से मुख्य सभागार में उद्घाटन सत्र का आयोजन आरंभ हुआ। उक्त सत्र में सर्वप्रथम मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. श्री प्रकाश सिंह, निदेशक, दक्षिण दिल्ली, परिसर, मुख्य अतिथि प्रो.कुमुद शर्मा, अध्यक्ष, हिंदी विभाग,दिल्ली विश्वविद्यालय, स्वागत संबोधन महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. पूनम कुमारिया, अंतर्राष्ट्रीय अतिथि डॉ. राजीव रंजन, एशियाई भाषा अध्ययन केंद्र, चचियांग यूएन शीयू विदेशी भाषा विश्वविद्यालय चीन, बीज वक्ता के रूप में प्रो. ओम प्रकाश सिंह सेवानिवृत्त वरिष्ठ आलोचक, जेएनयू, आईसीएचआर के प्रतिनिधि डॉ. नौशाद अली, उपनिदेशक, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के कर कमलों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ संगोष्ठी प्रारंभ हुई।

इसके बाद महाविद्यालय की छात्राओं ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलगीत को प्रस्तुत किया साथ ही छात्राओं ने गुजराती नृत्य और कश्मीरी नृत्य प्रस्तुत करके लोक की पूरी आभा को सभागार में प्रकट कर दिया। मंचासीन अतिथियों को अंग वस्त्र एवं पुष्प पादप देकर सम्मानित किया गया। सत्र का सफल संचालन कार्यक्रम की संयोजक डाॅ. सीमा सिंह, सहायक प्रोफेसर, हिंदी विभाग, इन्द्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय ने किया।


उद्घाटन सत्र के बाद भोजन के लिए सभी शिक्षक,शोधार्थी और छात्र एवी लेक्चर भवन में एकत्रित हुए और लज़ीज़ व्यंजनों का लुफ्त उठाया। इसके बाद सभागार में प्रथम सत्र की विधिवत शुरुआत हुई। जिसके अध्यक्ष प्रो. राम मोहन पाठक, विशिष्ट वक्ता प्रो. सुधीर प्रताप सिंह, विशिष्ट अतिथि डॉ. प्रेमलता वैष्णव, वक्ता के रूप में डॉ. प्रतिभा राणा और डॉक्टर रवि शेखर उपस्थित रहे।

इस सत्र के विषय ‘लोक साहित्य और इतिहास’ पर वक्ताओं ने अपने सारगर्भित उद्बोधन से सभी के ज्ञान में बढ़ोतरी की। इसके साथ ही दो समानांतर सत्रों का भी आयोजन किया गया। जिनमें शोधार्थीयों, छात्रों और शिक्षकों ने अपने शोध पत्र का वाचन किया। इसमें प्रथम सत्र की अध्यक्ष डॉ. पूनम थी तो दूसरे सत्र की अध्यक्ष डॉ. भुवाल थी।

इसके बाद द्वितीय सत्र का आयोजन संगोष्ठी हाल में ही किया गया। जिसका विषय ‘हिंदी की बालियां में स्वाधीनता की झलक’ थी, इस सत्र के अध्यक्ष प्रो. कृष्ण कुमार कौशिक, विशिष्ट वक्ता प्रो. दर्शन पाण्डेय, विशिष्ट अतिथि प्रो. सतीश कुमार, वक्ता के रूप में डॉ. मालती और डॉ. पुरुषोत्तम कुंदे थे। सभी ने अपने वक्तव्य से सभागार में उपस्थित गुणीजनों का ज्ञानवर्धन किया।

इस सत्र के साथ ही दो समानांतर सत्रों का आयोजन किया गया जिसमें शिक्षक, शोधार्थीयों एवं छात्रों ने अपने शोध पत्र का वाचन किया। इसमें प्रथम सत्र की अध्यक्ष प्रो. सीमा सिंह रही तो दूसरे सत्र की अध्यक्ष डॉ. लता थी।समारोह में शाम के समय मुख्य सभागार में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। जिसमें लोक कलाकार डाॅ. मन्नू यादव द्वारा कजरी गायन, ब्रह्मपाल जी ने हरियाणावी रागनी और राजस्थान से आए कलाकारों ने कठपुतली नृत्य प्रस्तुत करके सभी का मन मोह लिया। सभी कलाकारों का महाविद्यालय परिवार द्वारा सम्मान किया गया।

संगोष्ठी के दूसरे दिन तृतीय सत्र के अंतर्गत ‘लोक और शास्त्र के आलोक में भारतीय स्वाधीन चेतना’ विषय पर वक्तव्य प्रस्तुत किया गया। उक्त सत्र के अध्यक्ष प्रो. करूणाशंकर उपाध्याय , अध्यक्ष, हिंदी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय मुंबई, विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ. अजीत कुमार पुरी, विशिष्ट अतिथि के रूप में दरभंगा विश्वविद्यालय से आई प्रो. लावण्या कीर्ति सिंह काव्या, वक्ता के रूप में डॉ. महात्मा पाण्डेय ने अपने उद्बोधन से सभी को मुग्ध किया।
इसके साथ ही दो समानांतर सत्रों का आयोजन किया गया। जिसमें शिक्षक, शोधार्थी और छात्रों ने अपने शोध पत्रों का वाचन किया। प्रथम सत्र के अध्यक्ष डॉ. प्रेमलता वैष्णव एवं द्वितीय सत्र के अध्यक्ष डॉ. कुसुम नैपसिक रही।

वहीं चौथे सत्र, जिसका विषय ‘लोक स्मृति में 1857 और हिंदी साहित्य’ के अध्यक्ष प्रो. सिद्धार्थ शंकर, विशिष्ट अतिथि प्रो. ओमप्रकाश भारती, विशिष्ट वक्ता डॉ. स्नेह लता नेगी, वक्ता के रूप में डॉ. सारिका कालर और डाॅ. सतीश पावडे रहे।


इसके साथ ही दो समानांतर सत्रों का भी आयोजन किया गया। प्रथम सत्र के अध्यक्ष डॉ. शगुन अग्रवाल और द्वितीय सत्र के अध्यक्ष डॉ. नित प्रिया प्रलय थी। इसके बाद भोजन अवकाश का समय रहा। तत्पश्चात पंचम सत्र के विषय ‘इतिहास के स्रोत स्वाधीनता संग्राम और साहित्य’ विषय पर वार्ता हुई। जिसके अध्यक्ष प्रो. हरीश अरोड़ा, विशिष्ट के रूप में प्रो. प्रदीप, विशिष्ट अतिथि रूप में डॉ. विकास कुमार पाठक एवं वक्ता के रूप में डॉ. अभय कुमार उपस्थित रहे। इस सत्र के समानांतर भी दो सत्रों का आयोजन किया गया। प्रथम सत्र की अध्यक्ष डॉ. पापोरी कोया और दूसरे सत्र की अध्यक्ष डॉ. वंदना कुमारी रही। जिसमें शोध पत्रों का वाचन किया गया.

समारोह का समापन मुख्य सभागार भवन में आयोजित किया गया। जिसमें संगोष्ठी की समन्वयक प्रो. पूनम कुमरिया, प्राचार्या, अध्यक्ष प्रो. मुख्य अतिथि प्रो. महेंद्रपाल शर्मा, जामिया मिलिया इस्लामिया, अंतर्राष्ट्रीय अतिथि परवीन रानी, डिप्टी मेयर, हरट्समेरे, लंदन, विशिष्ट वक्ता प्रो. संध्या सिंह, अध्यक्ष, एनसीईआरटी, डीईई, दिल्ली, विशिष्ट अतिथि के रूप में बुद्धा चंद्रशेखर, मुख्य समन्वयक अधिकारी, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद और मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. संतोषा कुमार, निदेशक, सामाजिक विज्ञान संकाय, मुक्त विश्वविद्यालय प्रयागराज उपस्थित रहे।

इस सत्र में महाविद्यालय की सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रीति ने पूरे समारोह का सार-संक्षेप प्रस्तुत किया। छात्रा ने मंच का संचालन किया एवं छात्राओं ने विश्वविद्यालय के कुलगीत को भी गाया। सबसे अंतिम में राष्ट्रगान के साथ सफल संगोष्ठी का समापन किया गया। तत्पश्चात सभी शिक्षकों, शोधार्थीयों और छात्रों को उनके प्रमाण पत्र दिए गए। महाविद्यालय की छात्राओं ने जिस निष्ठा के साथ संगोष्ठी में अहर्निश कार्य किया उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है।

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