ग्रामीण अंचल में कायम है राह बाबा की पूजा की प्राचीन परंपरा,लोक परंपरा की कई मान्यताएं
श्रीनारद मीडिया, सीवान(बिहार):
ग्रामीण अंचल में राह (राहू) बाबा की पूजा की परंपरा आज भी जीवंत है. श्रद्धालुओं की माने तो सदियों से राहू बाबा की पूजा की समृद्ध परंपरा कायम है. इस पूजा में भगत अपने आराध्य देव राह बाबा को रिझाने के लिए विशेष वाद्य यंत्र हुड़का के साथ भक्ति गीतों का अनोखे अंदाज में गायन किया जाता है.गायन-वादन से राह का आह्वान कर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है.श्रद्धालुओं के अनुसार दुसाध जाति के लोगों के घर जब भी कोई शुभ कार्य होना होता है तो यज्ञ से पूर्व राह बाबा की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है.बताया जाता है कि प्रखंड के पहाड़पुर के रामप्रवेश मांझी के घर लॉकडाउन के नियमों के तहत परिजनों ने हर्षोल्लास के बीच राह बाबा का तीन दिवसीय अनुष्ठान का आयोजन किया गया. इस दौरान यूपी के रामपुर फैक्टरी के भगत संतोष पासवान द्वारा राह बाबा की पूजा की शुरुआत सिवान बांधने व सभी देवी देवतओं के स्थानों में विधिवत पूजा-अर्चना के साथ की गयी. इस पूजा की विशेषता यह है कि भगत जी द्वारा भगवान राहु को खुश करने के लिए सभी दिशाओं व शरीर के सभी अंगों को तलवार से बंधा जाता है.श्रद्धालु रामप्रवेश मांझी ने बताया कि कोरोना के चलते इस अनुष्ठान में भगत जी के अलावे केवल परिवार के सदस्यों ने ही भाग लिया.उन्होंने बताया कि इस अनुष्ठान को लेकर कुछ लोक मान्यताएं हैं. राह बाबा के पश्चात भगत भागते हैं. यदि उन्हें यज्ञकर्ता द्वारा पकड़ लिया जाता है तो पूजा सफल मानी जाती है. उसी प्रकार दुध को उबालने पर जब दुध पूरी तरह उफान मारने लगे तो यज्ञ की सिद्धि मानी जाती है. श्रद्दालुओं के अनुसार इसी दुध से प्रसाद बनाया जाता है जो परिजनों व शुभचिंतकों के बीच वितरित किया जाता है. बहरहाल, सदियों से चली आ रही राह बाबा की पूजा की परंपरा आज भी ग्रामीण अंचल में कायम है. श्रद्धालु इसे शौर्य व वीरता से जोड़कर देखते हैं.
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