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मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति - श्रीनारद मीडिया

मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति

मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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ज्ञानेश कुमार को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यकाल) विधेयक, 2023 के तहत मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) नियुक्त किया गया है।

  • चयन समिति के एक सदस्य ने आपत्ति जताई कि चयन प्रक्रिया ने अनूप बरनवाल केस, 2023 में उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों को नज़रअंदाज किया है।

वर्ष 2023 के विधेयक के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: यह अधिनियम मुख्य निर्वाचन आयुक्त/निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, कार्यकाल, सेवा शर्तों और निर्वाचन आयोग की प्रक्रियाओं को विनियमित करने के लिये निर्वाचन आयोग (निर्वाचन आयुक्‍त सेवा शर्त और कारबार का संव्‍यवहार) अधिनियम, 1991 को प्रतिस्थापित करता है।
  • न्यायिक पृष्ठभूमि: यह अधिनियम उच्चतम न्यायालय (SC) के हस्तक्षेप के बाद आया, जब विभिन्न याचिकाओं में मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और निर्वाचन आयुक्तों (EC) की नियुक्ति में केंद्र सरकार की विशेष शक्ति को चुनौती दी गई।
    • अनूप बरनवाल केस, 2023 में उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया कि प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और मुख्य न्यायाधीश का एक पैनल संसद द्वारा कानून पारित होने तक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का चयन करेगा।
    • फैसले से पहले, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी।
  • प्रमुख प्रावधान:
    • चयन समिति: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक चयन समिति की सिफारिश के आधार पर की जाएगी, जिसमें निम्नलिखित शामिल होंगे:
      • प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)।
      • लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष (LOP) (या सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता)।
      • प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत केंद्रीय कैबिनेट मंत्री।
  • खोज समिति: कानून मंत्री और दो वरिष्ठ सचिवों के नेतृत्व में एक खोज समिति पाँच उम्मीदवारों की सूची बनाती है।
    • अधिनियम की धारा 8 चयन समिति को सूचीबद्ध पाँच नामों के अतिरिक्त अन्य नामों पर भी विचार करने का अधिकार प्रदान करती है।
  • पात्रता मानदंड: जो व्यक्ति केंद्र सरकार के वर्तमान या पूर्व सचिव के पद पर है या रहा हो, वे सीईसी और ईसी के रूप में नियुक्त होने के पात्र होंगे। ऐसे व्यक्तियों के पास चुनाव प्रबंधन और संचालन में विशेषज्ञता होनी चाहिये।
  • वेतन, कार्यकाल और पुनर्नियुक्ति: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का वेतन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होगा तथा सीईसी और अन्य ईसी छह वर्ष की अवधि के लिये या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर बने रहेंगे।
    • सीईसी और ईसी को दोबारा नियुक्त नहीं किया जा सकता। अगर किसी ईसी को सीईसी नियुक्त किया जाता है तो उसका कुल कार्यकाल छह वर्ष से अधिक नहीं हो सकता।
    • सरकारी पेंशन ( दिव्यांगता पेंशन को छोड़कर) प्राप्त करने वाले सीईसी या ईसी का वेतन प्राप्त पेंशन की राशि से कम हो जाएगा।
  • निष्कासन और त्यागपत्र: मुख्य निर्वाचन आयुक्त को केवल सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान तरीके से ही उसके कार्यालय से हटाया जा सकता है, जबकि निर्वाचन आयुक्त को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर हटाया जा सकता है।
    • दोनों राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र सौंप सकते हैं।

अधिनियम के समक्ष प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?

  • सी.जे.आई. का बहिष्कार: अधिनियम, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त पैनल (प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता, सी.जे.आई.) को प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री की समिति से प्रतिस्थापित करता है, जिससे कार्यपालिका को चयन प्रक्रिया पर हावी होने की अनुमति मिलती है।
  • शक्ति पृथक्करण का उल्लंघन: इस अधिनियम को सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाकर्त्ताओं द्वारा चुनौती दी जा रही है, जिसमें तर्क दिया गया है कि क्या संसद के पास कानून या अध्यादेश के माध्यम से अनूप बरनवाल मामले, 2023 में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के फैसले को रद्द करने या संशोधित करने का कानूनी अधिकार है।
  • चयन समिति में रिक्तियाँ: अधिनियम चयन समिति को रिक्तियों के बावजूद कार्य करने की अनुमति देता है। 
    • यदि लोकसभा भंग होने के कारण विपक्ष के नेता का पद रिक्त होता है, तो उम्मीदवारों के चयन के लिये केवल प्रधानमंत्री और एक केंद्रीय मंत्री ही बचे रहेंगे, जिससे प्रभावी रूप से निर्णय और वर्ष 2023 अधिनियम दोनों को दरकिनार कर दिया जाएगा।
  • स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों को कमज़ोर करना: चूँकि कार्यपालिका के पास तीन में से दो वोट होते हैं, इसलिये अधिनियम निर्वाचन आयोगों की स्वतंत्रता और सत्तारूढ़ पार्टी के साथ संभावित तालमेल पर चिंता उत्पन्न करता है, जो स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों को कमज़ोर कर सकता है।
  • EC की विश्वसनीयता पर प्रभाव: CEC और EC प्रत्याशी के लिये अधिनियम की सर्च कमिटी की नियुक्ति से पहले ही कार्यकारी प्रभाव बढ़ाने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ता है।
    • निर्वाचन आयोग के चयन में कथित पूर्वाग्रह भारतीय लोकतंत्र को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है, क्योंकि चुनाव राजनीतिक शक्ति का निर्धारण करते हैं।
    • आगे की राह

      • चयन प्रक्रिया की समीक्षा: अनूप बरनवाल केस, 2023 के अनुसार चयन समिति में मुख्य न्यायाधीश की भूमिका को बहाल करने से प्रक्रिया में एक तटस्थ तत्व शामिल हो जाएगा, जिससे राजनीतिक पूर्वाग्रह का जोखिम कम हो जाएगा।
        • कार्यपालिका के प्रभुत्व को कम करने के लिये चयन समिति में सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या लोकसभा अध्यक्ष को शामिल किया जा सकता है।
      • निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता को मज़बूत करना: गोस्वामी समिति (1990) ने हितों के टकराव को रोकने एवं निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये मुख्य निर्वाचन आयुक्तों तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों को सरकारी पदों पर आसीन होने से वंचित करने की सलाह दी थी।
      • वित्तीय स्वायत्तता: निर्वाचन आयोग का व्यय भारत की संचित निधि (CFI) पर ‘भारित’ होना चाहिये ताकि मतदान के माध्यम से इसमें परिवर्तन या कमी न की जा सके।
      • मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों के बीच समानता: चुनाव सुधारों पर 255वें विधि आयोग (2015) की रिपोर्ट में निर्वाचन आयुक्तों को मुख्य निर्वाचन आयुक्त के समान संरक्षण देने के क्रम में अनुच्छेद 324(5) में संशोधन करने की सिफारिश की गई थी, जिससे निष्पक्षता के साथ बाहरी प्रभाव के प्रति प्रतिरोध सुनिश्चित हो सके।
        • अनुच्छेद 324(5) में मुख्य निर्वाचन आयुक्त को पद से हटाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की तरह महाभियोग चलाने का प्रावधान किया गया है, जबकि मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर निर्वाचन आयुक्तों को हटाया जा सकता है, जिससे ये अधिक असुरक्षित हो जाते हैं।
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