क्या म्यांमार से कुकियों की घुसपैठ मैतेई और नगाओं को चिंतित कर रही है?

क्या म्यांमार से कुकियों की घुसपैठ मैतेई और नगाओं को चिंतित कर रही है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मणिपुर की जमीनी स्थिति समझने के लिए कुछ तथ्यों और संगीन सच्चाइयों पर नजर डालना जरूरी है। पहली बात यह है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के द्वारा अभी तक दिए गए बयानों से स्पष्ट संकेत मिलता है कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को बर्खास्त नहीं किया जाएगा।

जब 60 विधायकों की विधानसभा में 54 विधायक एनडीए के हों तो बीरेन को बर्खास्त करने की कोई राजनीतिक बाध्यता नहीं है। दूसरे, पूर्वोत्तर के छोटे राज्यों में राजनीतिक वर्ग की चाहे जो विचारधारा हो, अमूमन वह केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी से बिगाड़ नहीं करना चाहता है। जब केंद्र में कांग्रेस का राज हुआ करता था तो पूर्वोत्तर की अनेक छोटी पार्टियां कांग्रेस की ही लाइन पर चलती थीं।

मणिपुर के राजनीतिक-वर्ग के हित 2024 के लोकसभा चुनाव-परिणामों से जुड़े हैं। जितना छोटा राज्य होता है, उसमें अच्छे नेताओं की उतनी ही कमी होती है। मणिपुर में भाजपा के पास बीरेन से बेहतर कोई अन्य नेता नहीं है। हालांकि सीआरपीएफ के पूर्व प्रमुख कुलदीप सिंह को मणिपुर भेजकर अमित शाह ने बीरेन सिंह के पर जरूर कतर दिए हैं।

दु:खद सच्चाई यह है कि मणिपुर की त्रासद घटनाओं के बाद बीरेन सिंह मैतेइयों के और ताकतवर नेता बनकर उभरे हैं। शुरू में जब मणिपुर कोर्ट का विवादित ऑर्डर आया और कुकी समूह अधिकाधिक संगठित होने लगे तो मैतेई असुरक्षित महसूस करने लगे थे और बीरेन सिंह ने इसी का दोहन किया।

वास्तव में पिछले कुछ महीनों से पूर्वोत्तर के उभरते हुए राजनीतिक-सितारे हेमंता बिस्वा सरमा से उनके सम्बंध अच्छे नहीं थे और असम राइफल्स की भूमिका को भी मणिपुर पुलिस द्वारा पसंद नहीं किया जा रहा था। बीरेन को पार्टी की प्रादेशिक इकाई की ओर से भी असहमतियों का सामना करना पड़ रहा था और कुकी विधायकों के वे निशाने पर थे।

आज यह स्थिति है कि अगर मणिपुर में हिंसा की और घटनाएं होती हैं तो जरूर बीरेन सिंह मोदी-शाह के लिए असुविधाजनक बन जाएंगे, लेकिन अगर मणिपुर राष्ट्रीय खबरों से दूर हो जाता है तो बीरेन सिंह राजनीतिक रूप से पहले से और मजबूत होंगे। भाजपा को मणिपुर में अपना एक योगी आदित्यनाथ मिल जाएगा। वे स्थानीय हिंदुओं के सबसे ताकतवर नेता के रूप उभरेंगे।

मणिपुर में भाजपा इसलिए भी नाजुक स्थिति में हैं, क्योंकि 2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने कुकी जनजातियों से कई वादे किए थे। आज अगर वहां भाजपा सत्ता में है तो इसीलिए क्योंकि उसे जनजाति-समूहों के खासे वोट मिले हैं और वे ही आज वहां जारी हिंसा के शिकार हो रहे हैं। ऐसे में मोदी कोई स्पष्ट रुख नहीं अख्तियार कर सकते हैं, क्योंकि कुकी जनजातियां और मैतेई- दोनों ही पड़ोसी राज्यों में भी फैले हैं।

उनके किसी भी बयान का असर मणिपुर के साथ ही मिजोरम, नगालैंड और मेघालय में भी भाजपा के राजनीतिक भविष्य पर पड़ सकता है। वहीं अगर बीरेन सिंह को हटाया जाता है तो भाजपा को हिंदुओं के प्रतिकार का सामना करना पड़ सकता है। असम को छोड़ दें तो पूर्वोत्तर के राज्यों में वोटरों की किसी एक पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता नहीं होती।

यह भी याद रखें कि मणिपुर की महाभारत केवल जमीन के लिए है। इम्फाल घाटी राज्य के बीचोबीच है और वह मात्र 1864 वर्ग किमी का है। यहां मैतेई रहते हैं, जो कि राज्य की आबादी का 52% हैं। जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में 34 जनजाति-समुदाय रहते हैं, जिनमें कुकी और नगा भी हैं। वहां मणिपुर की 90% भूमि है।

जमीन और लोगों का यह ऐतिहासिक रूप से असंतुलित-विभाजन है। मैतेई लोग अपने ही राज्य के 90% एरिया में जमीनें तक नहीं खरीद सकते हैं। दूसरी तरफ, आदिवासियों को भी अपनी भूमि और आजीविका का बचाव करना है। प्रधानमंत्री तो क्या, कोई भी स्थानीय नेता इस समस्या का तुरत-फुरत में समाधान नहीं खोज सकता।

मणिपुर का समाज आपस में बहुत बुरी तरह से विभाजित है और मौजूदा हिंसा से हालात और बदतर ही हुए हैं। संघ ने भी अभी तक वहां धर्मांतरण और भाषा से सम्बंधित मसलों पर ही काम किया है। कुकी लोग अफीम की खेती में भी बड़े पैमाने पर संलिप्त हैं, जिससे ड्रग-ट्रैफिकिंग में भी मणिपुर महत्वपूर्ण हो जाता है। अंतरराष्ट्रीय ड्रग-रूट चीन-म्यांमार-मणिपुर-बांग्लादेश-खाड़ी देशों का है।

भाजपा के हिंदुत्ववादी कैडर के पास अभी मणिपुर संघर्ष का कोई तात्कालिक समाधान नहीं है, लेकिन उसे लगता है कि अगर बीरेन सिंह वहां बने रहे तो पार्टी भी अपना अस्तित्व कायम रख पाएगी। इन मायनों में मणिपुर में भले ही भाजपा की नैतिक हार हुई हो, लेकिन अगर वह इस संकट का सामना कर पाई तो वहां अपना एक नया राजनीतिक अध्याय भी खोल सकेगी!

हिंदू मैतेई और ईसाई कुकी जनजातियां समझौते करके जीने को राजी नहीं हैं। मणिपुर की 34 जनजातियों की रुचि अपने आरक्षण-कोटा को बचाने में है। म्यांमार से कुकियों की घुसपैठ भी मैतेई और नगाओं को चिंतित कर रही है।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!